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राजस्थान: नि:शुल्क पशु दवा योजना में 'भेड़' चाल सबसे तेज रही
कपिल भट्ट
जयपुर: भेड़चाल के बारे में कई किस्से-कहानियां, कहावत-मुहावरे चर्चित हैं। अक्सर आमलोगों से लेकर सरकार में बैठे हुक्मरानों तक पर गाहे-बगाहे भेड़चाल में शामिल होने की तोहमतें लगती रहती हैं। लेकिन हम यहां भेड़चाल मुहावरे जैसी कोई बात नहीं कर रहे हैं।
हम तो दरअसल यह बता रहे हैं कि पालतू पशुओं के लिए सरकार की ओर से चलाई जा रही एक योजना में भेड़ों की चाल सबसे तेज रही है। जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान में पशुओं के लिए चलाई जा रही नि:शुल्क दवा योजना की। यह योजना भेड़-बकरियों के लिए सबसे मुफीद साबित हुई है। राजस्थान की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में एक यह योजना भी थी जिसे सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अगस्त 2012 में लागू किया था। इसमें सबसे ज्यादा सेवा भेड़-बकरियों की हुई है।
सबसे ज्यादा दवाइयां भेड़-बकरियों ने खाई
हाल ही में सरकार ने इस योजना का आंकलन कराया है, जिसमें यह बात सामने आई है कि सबसे ज्यादा दवाइयां भेड़-बकरियों ने खाई है। योजना के अन्तर्गत हाल के दो वर्षों में राज्य में जितने पशुओं को मुफ्त दवा दी गई या इलाज किया गया, उनमें 70 फीसदी भेड़-बकरियां ही थीं। सरकार की ओर से कराए गए आंकलन के मुताबिक, इन दो सालों के दौरान इस योजना के तहत दो करोड़ 14 लाख 15 हजार पशुओं की मुफ्त चिकित्सा की गई जिनमें एक करोड़ 48 लाख 6 हजार तो भेड़-बकरियां ही थीं। 15.67 प्रतिशत के साथ भैंस दूसरे स्थान पर रही। इन दो सालों में 33.56 लाख भैंसों का मुफ्त इलाज किया गया। कुछ समय पहले राज्य पशु घोषित किया गया ऊंट भी इस मामले में पीछे ही रहा। इन दो सालों में 93 हजार ऊंटों का मुफ्त उपचार किया गया। राजस्थान में पिछले एक दशक के दौरान ऊंटों की तादाद तेजी से गिरी है। मुफ्त इलाज लेने में सबसे पीछे घोड़े रहे। मात्र 33,000 घोड़ों का ही इलाज हुआ। वैसे देखा जाए तो राजस्थान के पशुधन का सबसे बड़ा हिस्सा भेड़-बकरियां ही हैं।
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तमाम कमियां भी उजागर हुईं
योजना का आंकलन करने में कई कठिनाइयां भी महसूस की गई जिनमें चिकित्सा केन्द्रों पर पर्याप्त स्टाफ का अभाव, आपातकालीन स्थिति तथा रेफर केस में जानवर को पशु स्वास्थ्य केन्द्र ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं होना, पशु चिकित्सा केन्द्रों पर औषधि कक्ष एवं रखरखाव की उचित व्यवस्था नहीं होना, पशु चिकित्सा केन्द्रों का निरीक्षण नहीं करना, पशु चिकित्सा केन्द्रों का समय पर तथा नियमित रूप से नहीं खुलना आदि का भी जिक्र किया गया है। इन कारणों से केन्द्रों पर योजनाओं का क्रियान्वयन सुचारू रूप से नहीं हो पाता और ग्रामीणों को असुविधा होती है।
गौरतलब है कि राजस्थान पशु प्रधान राज्य है और यहां पानी की कमी और रेगिस्तान के कारण बहुत ही थोड़े भूभाग पर ही खेती हो पाती है। ऐसे में यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पशुओं पर ही ज्यादा निर्भर है, मगर यहां पशुओं से जुड़ी योजनाएं लालफीताशाही का शिकार हो रही हैं।