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कच्ची शराब और चुनाव का सियासी कनेक्शन, पुलिस के संरक्षण में संचालित कारोबार
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर। चुनाव और कच्ची शराब की कोई कनेक्शन हो सकता है क्या! ये सवाल भले ही लोगों को चौंकाए, लेकिन गांव की सियासत को करीब से देखने वालों को इस हकीकत को लेकर कोई अचरज नहीं दिखेगा। कच्ची शराब जहां वोट सहेजने का औंजार है, वहीं बड़े वर्ग के लिए रोजगार भी। इन्हीं मजबूरियों को फायदा उठाकर पुलिस और आबकारी विभाग का गठजोड़ हर साल करोड़ों की कमाई करता है।
इसके साझेदार प्रशासनिक अफसरों के साथ सफेदपोश भी होते हैं। कुशीनगर और सहारनपुर में कच्ची शराब से हुई मौतों के बाद हंगामा बरपा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घटना के पीछे जहां समाजवादी पार्टी की साजिश नजर आ रही है। वहीं आबकारी और पुलिस विभाग के अफसरों को अब सभी उन जगहों पर कच्ची शराब बनती दिख रही है, जहां कल तक वह रामराज्य होने की बात कर रहे थे।
लोकसभा चुनाव को चंद दिन ही बचे हैं। जाहिर है वोट सहेजने को लेकर शराब का खेल नेताओं ने शुरू कर दिया है। नेताओं के संरक्षण में शराब की भट्ठियां धधकने लगी हैं। दावतों का दौर भी चलने लगा है। कुशीनगर और सहारनपुर में हुई 100 से अधिक मौतों का भले ही सीधे तौर पर सियासी कनेक्शन नहीं दिख रहा हो, लेकिन मौतों के पीछे सियासी दखल अवश्य है।
योगी आदित्यनाथ ने करीब दो साल पहले यूपी की सत्ता संभाली थी तो प्रदेश में शराब से होने वाली आय करीब 10 हजार करोड़ थी। महज दो साल में यह आकड़ा 29 हजार करोड़ पहुंच चुका है। आबकारी मंत्री से लेकर आबकारी विभाग के अधिकारी ताल ठोंक पर कच्ची पर अंकुश और आबकारी एक्ट में बदलाव को इसकी वजह बता रहे थे, लेकिन जहरीली शराब से मौतों के बाद राज्यसभा से लेकर विधानसभा में हो रहे हंगामे के बाद जिम्मेदारों को कोई जवाब नहीं सूझ रहा है। आबकारी विभाग से लेकर पुलिस को उन सभी जगहों पर शराब की भट्ठियां मिल रही हैं, जहां वह कारोबार बंद होने का दावा कर रहे थे।
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गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, संतकबीर नगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर आदि जिलों में नदियां, ताल कच्ची शराब के कारोबारियों के ठिकाने बन चुके हैं। गोरखपुर शहर में राजघाट थाना क्षेत्र में अमरूद का घना बाग है। यहां वर्षों से पुलिस के संरक्षण में कच्ची का कारोबार संचालित हो रहा है। जहरीली शराब से मौतों के बाद सियासी बवाल मचा तो आबकारी विभाग और पुलिस को 40 कुंतल लहन और 200 लीटर शराब भी मिल गई। गोरखपुर और बस्ती मंडल में सिर्फ 3 दिन में हजारों लीटर शराब पकड़ी जा चुकी है। 100 से अधिक मुकदमे भी पुलिस और आबकारी विभाग ने दर्ज किए हैं। आबकारी विभाग के ही एक अफसर बताते हैं कि बेरोजगारी कच्ची के कारोबार की बड़ी वजह है।
ऐसा नहीं है कि सरकारी ठेकों पर मिलने वाली देसी शराब और कच्ची के दाम में अधिक का अंतर है। हकीकत यह है कि कच्ची के कारोबार से हजारों लोगों की रोजीरोटी चलती है। जब तक विधवा महिलाओं के पुनर्वास के प्रयास नहीं होंगे तब तक प्रभावी अंकुश लगना संभव नहीं दिखता है।
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ऐसे जहरीली हो जाती है शराब
कच्ची शराब को अधिक नशीली बनाने के चक्कर में ये जहरीली हो जाती है। आमतौर पर इसे बनाने में गुड़, शीरा और लहन का इस्तेमाल होता है। लहन को मिट्टी में दबा दिया जाता है। इसमें यूरिया और बेशरम बेल की पत्तियां डाली जाती हैं। अधिक नशीली बनाने के लिए इसमें ऑक्सीटोसिन तक मिला दिया जाता है, जो मौत का कारण बनती है। कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल मिलाने की वजह से मिथाइल अल्कोहल बन जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि मिथाइल शरीर में जाते ही केमिकल रिएक्शन तेज होता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है, जबकि कुछ लोगों में यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है यानी कि शराब का हर घूंट उन्हें मौत के करीब ले जाता है।
अंकुश लगाने वालों को नहीं मिलता समर्थन
गोरखपुर में अवैध शराब के खिलाफ पहली बार व्यापक अभियान 2010 में शुरू हुआ था। तब तत्कालीन डीआईजी असीम अरुण ने अंडर ट्रेनिंग दरोगाओं की टीम बनाकर अवैध शराब के खिलाफ मोर्चा खोला था, लेकिन शराब माफियाओं के दखल के बाद डीआईजी का तबादला करा दिया गया। वहीं गोरखपुर-बस्ती मंडल में कई महिला समूहों ने कच्ची के खिलाफ मोर्चा खोला, लेकिन उन्हें शराब माफियाओं के दखल से बराबर हतोत्साहित किया जाता है। गोरखपुर के लहसड़ी क्षेत्र में दुर्गावती पिछले 10 साल से कच्ची के खिलाफ अभियान चला रही हैं। कच्ची कारोबारियों ने दुर्गावती के खिलाफ कई फर्जी मुकदमे करा दिए हैं, लेकिन वह आज भी कच्ची बनने की सूचना देने से परहेज नहीं करती हैं। वहीं धुनधुन कोठा की जोन्हिया देवी कच्ची के खिलाफ अभिया
मौत, जांच और लीपापोती
जहरीली शराब से जब भी मौतें होती हैं तो कुछ रस्में अनिवार्य रूप से होती हैं। मसलन, सियासी दलों का आरोप प्रत्यारोप, आबकारी और पुलिस विभाग की छापेमारी, सरकार की तरफ से दो लाख का मुआवजा और बिसरा को सुरक्षित करना, लेकिन जैसे ही मामला ठंडा होता है, सभी जिम्मेदार खामोशी ओढ़ लेते हैं।
कुशीनगर के तमकुही क्षेत्र में 48 घंटे के अंदर जहरीली शराब से 11 मौतों के बाद सियासत जोरों पर है। आला अफसरों ने तरयासुजान थाने के थानेदार विनय पाठक, हल्का चौकी इंचार्ज भीखू यादव, हेड कांस्टेबल कमलेश यादव और कांस्टेबल अनिल कुमार को निलंबित कर दिया है। वहीं आबकारी विभाग के निरीक्षक हृदय नारायण पांडेय, दो हेड कांस्टेबल प्रह्लाद सिंह, राजेश तिवारी, हल्का सिपाही रामानन्द श्रीवास्तव, रवीन्द्र कुमार को सस्पेंड किया गया है। मामला थमता नहीं देख जिला आबकारी अधिकारी को भी संस्पेंड कर दिया गया। वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव के दौरान गोरखपुर के पिपराइच क्षेत्र में जहरीली शराब पीने से सात लोगों की मौत हो गई थी।
प्राथमिक जांच में पता चला कि विरोधी के घर चल रही दावत में एक-दूसरे प्रत्याशी ने जहरीली शराब परोस दी थी। इसके बाद उसे जेल भेज दिया गया। हंगामा होने के बाद जहरीली शराब का सैंपल जांच के लिए भेजा गया, लेकिन उसकी रिपोर्ट को लेकर किसी अधिकारी के पास कोई जानकारी नहीं है। 2015 में खोराबार में जहरीली शराब पीने से पोस्टमैन की मौत हुई थी। पोस्टमैन श्रवण कुमार का शव शराब कारोबारी में तख्ते पर मिला था। इस मामले की भी पुलिस ने लीपापोती कर दी।
मुख्यमंत्री को सपा की साजिश का अंदेशा
जहरीली मौतों पर सियासी घेराबंदी शुरू हो गई है। बचाव की मुद्रा में दिख रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौतों के पीछे सपा की साजिश बता रहे हैं। योगी का कहना है कि मौतों की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया गया है। इसमें किसी की शरारत लग रही है। पहले भी इस तरह की घटना आजमगढ़ में सामने आई थी।
जांच के बाद इसमें समाजवादी पार्टी का नाम सामने आया था। सरकार इस एंगल से भी पूरे मामले की जांच कर रही है। प्रदेश के आबकारी मंत्री जयप्रताप सिंह जहरीली शराब से हुई मौतों को चूक तो बता रहे हैं, लेकिन अपना दामन बचाने के लिए साजिश का भी छौंक दे रहे हैं। आबकारी मंत्री का कहना है कि आबकारी विभाग से बड़ी चूक हुई है। शराब में चूहे मारने वाली दवा मिलाने की आशंका है जिसकी जांच की जा रही है। क्षेत्रीय विधायक एवं कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू का कहना है कि बीते दो जनवरी को मुख्यमंत्री को पत्र देकर तमकुही क्षेत्र में अवैध शराब और स्मैक का कारोबार होने और इसमें पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत होने का सबूत दिया था। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। अब क्या मुआवजा देने से महिलाओं का सुहाग लौटेगा? जिन थानों पर शराब का कारोबार पकड़ा जा रहा है, वहां के थानेदार को संस्पेंड करना चाहिए।
चुनावी मौसम में सबकी आंखें बंद
इसमें कोई संदेह नहीं कि गोरखपुर और बस्ती मंडल में कच्ची का कारोबार पर 50 फीसदी तक अंकुश लगा था, लेकिन चुनावी मौसम में सभी ने आंखें बंद कर रखी थीं। सिर्फ मुख्यमंत्री के जिले में कच्ची का कारोबार 50 करोड़ रुपये के आसपास बताया जा रहा है। बिहार में शराबबंदी के चलते देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज और बलिया जैसे पड़ोसी जिलों में भी 150 करोड़ से अधिक का कच्ची शराब का कारोबार है। यह धंधा तब है जब पिछले दो वर्षों में गोरखपुर और आसपास के जिलों में 50 करोड़ से अधिक कीमत की हरियाणा, पंजाब या गोवा की शराब पकड़ी गई है। वहीं बिहार के पड़ोसी जिलों में आबकारी विभाग की शराब की दुकानों पर बिक्री में 200 से 300 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। दरअसल, गांव में कच्ची शराब की भट्ठी आबकारी विभाग, पुलिस, स्थानीय ग्राम प्रधान या दबंगों के बल में धधकती हैं।
इस धंधे में दलित और खटिक बिरादरी के लोग अधिक हैं। वोटबैंक को देखते हुए भी नेताओं का इस धंधे को खामोश संरक्षण मिल जाता है। दिलचस्प यह है कि कच्ची के कारोबार के 60 फीसदी हिस्से पर महिलाओं का कब्जा है। इनमें भी तमाम ऐसी विधवा महिलाएं हैं जिनके पतियों की मौत कच्ची शराब पीने से हुई है। नेता से लेकर पुलिस तक इन महिलाओं को बेचारा बताकर सरंक्षण देती है, तो दूसरी तरफ अपनी जेब भी भरती है।