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Unsung Hero दीपक महाजन: मां की मौत ने इन्हें बना दिया जीवन का ‘रखवाला’

Aditya Mishra
Published on: 17 July 2018 7:02 PM IST
Unsung Hero दीपक महाजन: मां की मौत ने इन्हें बना दिया जीवन का ‘रखवाला’
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लखनऊ: दीपक महाजन राजधानी के रुरल डिपार्टमेंट में प्रशासनिक अधिकारी की पोस्ट पर तैनात है। गवर्नमेंट जॉब में होने के बाद भी वे पिछले 14 सालों से गरीब बच्चों और लावारिस लोगों की मदद करने का काम कर रहे है। मां की मौत ने उन्हें दूसरों के जीवन का रखवाला बना दिया है। वे अब तक 40 बार ब्लड डोनेट कर चुके है। जिन लोगों के घरवाले किसी बीमारी के कारण हॉस्पिटल में एडमिट है। ऐसे परिवारों को सप्ताह में एक दिन शुक्रवार को नि:शुल्क राशन भी मुहैया कराते है।

समाजिक कार्यों में उनके योगदान को देखते हुए यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या उन्हें सम्मानित कर चुके है। दीपक महाजन ने newstrack.com से बात की और अपनी अनटोल्ड स्टोरी को बयां किया।

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ऐसे बीता था बचपन

मेरा जन्म 27 मार्च 1960 को वाराणसी में हुआ था। पिता सुशील महाजन रेलवे में ऑफिसर और मां राज दुलारी हाउस वाइफ थी। दोनों की अब डेथ हो चुकी है।

घर में हम चार भाई -बहन है। मैं उनमें सेकेण्ड नम्बर का हूं। पिता सरकारी जॉब में थे। इसलिए कभी भी किसी भी तरह की फैनेंसियल प्रॉब्लम फेस नहीं करनी पड़ी। बचपन काफी अच्छे से बीता था।

मेरा मन पढ़ाई के अलावा लोगों की मदद करने में कुछ ज्यादा ही लगता था। मैं स्कूल- कालेज और मुहल्ले में रहने वाले दोस्तों की मदद कर दिया करता था। घर के अलावा आस पडोस के लोग भी मेरे इस काम से काफी खुश रहते थे। सभी मुझें बहुत प्यार करते थे।

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मां से मिली थी सेवाभाव की प्रेरणा

जरूरतमंद लोगों की सेवा करने की प्रेरणा मुझें मेरी मां से बचपन से ही मिली थी। मैं जब छोटा था तब एक मुस्लिम युवक मेरे मुहल्ले में रोज लोगों के घरों में पीतल के बर्तन रगने के लिया आया करता था। धीरे –धीरे लोगों के घरों में पीतल के बर्तन का इस्तेमाल होना कम होने लगा।

उसके बाद मुस्लिम युवक को काम मिलना भी बंद हो गया। वह पहले मेरे घर पर भी पीतल के बर्तन को रंगने के लिया आया करता था। तब मैं उसे मामा कहकर पुकारता था। जब उसे काम मिलना बंद हो गया।

उसके बाद वह रोज की जगह अब महीने में एक या दो दिन आने लगा। एक दिन मेरी मां ने उसे बुलाकर पूछा कि वह अब पहले की तरह रोज क्यों नहीं आता है। तब उसने बताया कि उसे पहले की तरह काम नहीं मिल रहा है। कई दिन तो परिवार के लोगों को भूखे पेट सोना पड़ता है।

ये सुनकर मां की आंखे भर आई। उसने उसे कुछ पैसे और अनाज देते हुए कहा कि जब भी जरूरत महसूस हो वो उसके पास आ जाया करे। मुझें असल प्रेरणा अपनी मां से ही मिली थी।

मेरी मां मरने के समय काफी बुजुर्ग हो चली थी। मैं उसकी खूब सेवा करता था। उसकी तकलीफ मुझसें देखी नहीं जाती थी। मैंने बचपन में ही ठान लिया था कि मैं बड़ा होकर जरूरतमंद लोगों की सेवा करूंगा।

रामदेव से मुलाकात के बाद लाइफ में आया ये ट्विस्ट

मेरे जन्म के बाद ही मेरा पूरा परिवार लखनऊ में आकर बस गया था। मेरी पढ़ाई लखनऊ में ही पूरी हुई। 1980 में केकेसी कालेज से बीकॉम करने के बाद गवर्नमेंट जॉब के लिए अप्लाई किया।

मुझें उसी साल रुरल डिपार्टमेंट में जॉब मिली गई। 1992 में मेरी शादी हो गई। उसके बाद भी समाजिक कार्यों में मेरी रूचि कम नहीं हुई।

दिन हो या रात, गर्मी हो या ठंडा अगर किसी जरूरतमंद का मेरे नम्बर पर फोन आता या मुझें जानकारी मिलती तो मैं उसी टाइम उसकी मदद के लिए घर छोड़ देता था।

2004 में एक प्रोग्राम के दौरान बाबा रामदेव से मुलाक़ात करने के बाद मेरी लाइफ में बहुत ज्यादा चेंज आ गया। मैं पहले से योग सीख रखा था।

रामदेव ने मुझसें कहा कि मैं लोगों को नि:शुल्क योग की ट्रेनिंग दू। उनकी बातों को मानकर मैं लखनऊ के इंदिरा नगर में बने पार्क में लोगों को योग सिखाना शुरू कर दिया।

पांच लोगों से मैंने योग सिखाना शुरू किया। धीरे –धीरे मेरे इसमें बढ़ोतरी होती चली गई। मुझें स्कूल –कालेज और कुछ संस्थानों से भी लोगों को योग सिखाने के लिए बुलाया जाने लगा।

मैं लखनऊ के अलावा , गुजरात, उतराखंड, देहरादून, पंजाब समेत कई अन्य शहरों में जाकर लोगों को नि:शुल्क योग की ट्रेनिंग देने लगा।

गृहस्थ जीवन से ले लिया था संन्यास

मैं 2004-05 में गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर उतराखंड आ गया। वहां पर मैं कुष्ठ रोगियों की सेवा करने लगा। कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक चला लेकिन बाद मैंने देखा कि यहां पर सेवा के नाम पर पैसा कमाया जा रहा है। फिर मेरा मन वहां से हटने को हुआ।

तीन महीने तक उतराखंड में रहने के बाद मैं वापस अपने गृहस्थ जीवन में लौट आया। मैंने अपनी नौकरी से रिजाइन नहीं किया था। इसलिए मैंने दोबारा से काम करना शुरू कर दिया।

लोगों की मदद के लिए बनाई खुद की ये संस्था

उतराखंड से आने के बाद भी समाज सेवा से मेरा लगाव बिल्कुल भी कम नहीं हुआ। मैंने कुछ समाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर लखनऊ में काम करना शुरू किया।

लेकिन कुछ दिन में मैंने पाया कि अधिकांश संस्थाएं समाज सेवा के नाम पर लोगों से गलत तरह से पैसा वसूल रही है और उसका दुरपयोग कर रही है।

मैंने 2016 में दिव्य सेवा फाउंडेशन के नाम से अपना एक संगठन बनाया। इसका मकसद जरुरतमंदों की मदद करना था।

59 साल की उम्र में कर रहे है ये काम

लोगों को नि:शुल्क ब्लड मुहैया कराने के लिए लखनऊ ब्लड कमांडों और उत्तर प्रदेश ब्लड कमांडों के नाम से दो वाटसएप ग्रुप बनाया है। कोई भी जरुरतमन्द व्यक्ति ‘दिव्य सेवा फाउंडेशन’ के मोबाइल नम्बर -9450111567 पर सम्पर्क करके ब्लड प्राप्त कर सकता है।

ऐसे परिवार जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और जो अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते। हमारी संस्था ऐसे लोगों को पढ़ाई में हर संभव मदद करती है।

अगर किसी के घर में कोई बीमार है और उसके परिवार के पास राशन खरीदने के पैसे नहीं है ऐसे लोगों को ये संस्था नि:शुल्क, चावल, आटा, दाल तेल, चीनी और बिस्कुट भी मुहैया कराती है।

दीपक की दो बेटियां है। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। उन्होंने अपना और अपनी बेटी दोनों का बॉडी डोनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा रखा है।



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Aditya Mishra

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