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गुजरात: इस राज्यसभा चुनाव दल बदल विरोधी कानून की खामियां फिर हुई उजागर
गुजरात में इस बार राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए मतदान के बाद जो हालात पैदा हुए हैं चुनाव की आचार सहिंता व दल बदल विरोधी कानून
नई दिल्ली: गुजरात में इस बार राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए मतदान के बाद जो हालात पैदा हुए हैं चुनाव की आचार सहिंता व दल बदल विरोधी कानून की खामियों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट राज्यसभा चुनावों की वोटिंग में गड़बड़ी या पार्टी के निर्देशों के खिलाफ वोट करने को दल बदल विरोधी कानून की परिधि से बाहर का मामला मानता है।
राज्यसभा चुनाव में गुजरात के ताजा दंगल को मिलाकर पिछले दो साल में यह चौथा चुनाव है जब दल बदल विरोधी कानून के तहत दोषी विधायकों पर दल बदल विरोधी कानून के तहत कारवाई की मांग उठी है। जून 2016 में कर्नाटक में दो विधायकों का स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद वहां राज्यसभा चुनाव विवादों में घिरा था तो हरियाणा में एक सीट पर हुए चुनाव में पेन की स्याही बदले जाने की वजह से पूरा चुनाव ही विवादों में घिरा था। हरियाणा के उस विवादस्पद चुनाव में भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा व कांग्रेस उम्मीदवार आरके आनंद के बीच मुकबला हुआ था। इसमें अलग पेन का इस्तेमाल करने वाले कांग्रेस विधायकों के वोट निरस्त होने के बाद भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा विजयी घोषित हुए हुए थे।
झारखंड तीसरा प्रदेश है जो जून 2016 को हुए चुनाव में राज्यसभा चुनाव में करोड़ों रूपयों की खरीद फरोख्त के लिए चर्चा में आया था।
ज्ञात रहे कि संविधान के दसवें अनुच्छेद में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के मामले में संबंधित सदस्य की सदस्यता उसी सूरत में जाएगी यदि किसी सदस्य ने पार्टी नेतृत्व के निर्देशों की अवहेलना करने पर अपना वोट दिया हो। गुजरात में कांग्रेस सदस्य द्वारा पार्टी के अधिकृत प्रतिनिधि को वोट दिखाए बगैर चुनाव में उम्मीदवार अमित शाह को दिखाने का आरोप लगा है। चुनाव आयोग व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में कई बार इस तथ्य को दोहराया गया है कि पार्टी निर्देशों के खिलाफ वोट करने वाले विधायकों के खिलाफ दल बदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई कतई मुमकिन नहीं है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुसार कोई पार्टी ऐसा व्हिप जारी नहीं कर सकती। हालांकि चुनाव आयोग का मानना है कि राज्यसभा चुनाव के साथ ही राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग का मामला विधानसभा या लोकसभा के भीतर हुई वोटिंग से अलग है क्योंकि उसे संविधान की नजर में सदन के बाहर की वोंटिंग माना जाता है।