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नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर कैसे लगे लगाम, कोर्ट ने EC से मांगा सुझाव
हाई कोर्ट ने विधान सभा चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और वक्ताओं द्वारा भड़काऊ बयानबाजी किए जाने पर गंभीर रूख अपनाया है।
लखनऊ: हाई कोर्ट ने विधान सभा चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और वक्ताओं द्वारा भड़काऊ बयानबाजी किए जाने पर गंभीर रूख अपनाया है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह ऐसे नेताओं के वक्तव्यों पर रोक के लिए गौर करें। कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से कहा कि वह गुरूवार (16 फरवरी) को बताएं कि इन भड़काऊ भाषणों पर नियंत्रण के लिए वह क्या कदम उठा सकता है। यह आदेश जस्टिस ए पी साही और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने स्थानीय वकील अजमल खान द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर पारित किए।
याचिका में कहा गया है कि तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं और वक्ताओं के द्वारा प्रत्याशियों के सहमति से मजहब के नाम पर अपील की जा रही है और बयान जारी किए जा रहे हैं। कहा गया कि इस प्रकार की अपीलों से समाज को भारी नुकसान पहुंच रहा है और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा- 123(3) का उल्लंघन भी है।
याची की ओर से कहा गया कि उक्त प्रावधान के मुताबिक इस प्रकार की अपील भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आती है। बावजूद इसके ऐसे बयान मीडिया के विभिन्न स्वरूपों का इस्तेमाल करते हुए दिए जा रहे हैं।
कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि जो वक्तवय याचिका में दिए गए यदि वह सही हैं तो यह गम्भीर विषय है और चुनाव आयोग को ऐसे वक्तव्यों पर रोक के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। आयोग को सोशल मीडिया समेत मीडिया के विभिन्ना स्वरूपों पर भी ध्यान देना चाहिए।
इन नेताओं के बयान भड़काऊ
याचिका में बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा, सपा के आजम खान, बीजेपी के योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या के बयानों का जिक्र करते हुए हुए आरेाप लगाया गया कि ये नेता लगातार धार्मिक रूप से भड़काउ भाषण दे रहे है और सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए निर्णय की खुल्लमखुल्ला अवहेलना कर रहे हैं। याचिका में उपरेाक्त नेताअेां के साथ ही मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी, खालिद रशीद और कल्बे जव्वाद के भी बयानों का जिक्र किया गया है।