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हिमाचल में धूमल हारे, बदले सियासी समीकरण, नड्डा का शोर ज्यादा
दो विधान सभा चुनावों में बीजेपी की जीत ने जहां पार्टी के लोगों को मुहं मीठा करने का मौका दिया वहीं हिमाचल के एक परिणाम ने कुछ स्वाद फीका कर दिया।हिमाचल प्रदेश
नईदिल्ली:दो विधान सभा चुनावों में बीजेपी की जीत ने जहां पार्टी के लोगों को मुहं मीठा करने का मौका दिया वहीं हिमाचल के एक परिणाम ने कुछ स्वाद फीका कर दिया।हिमाचल प्रदेश की सभी 68 विधानसभा सीटों के परिणाम आ गए हैं।बीजेपी ने 44 सीटोें पर जीत दर्ज की है। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी स्पष्ट बहुमत को हासिल कर लिया है।सुजानपुर सीट पर बीजेपी के सीएम पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल कांग्रेस के उम्मीदवार राजिन्दर सिंह से हार गए हैं। इस परिणाम से बीजेपी में एक नयी खोज शुरू हो गई।
हिमाचल प्रदेश में भले ही बीजेपी ने जीत हासिल की हो, लेकिन दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और तीन बार से विधायक सतपाल सिंह सत्ती भी ऊना सीट से चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस उम्मीदवार सतपाल सिंह रायजादा ने उन्हें 3196 वोट से हराया। हालॉकि सीएम धूमल की हार के बाद पाटी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि हम जन भावनाओं का आदर और सम्मान करते हैं।इसके आगे के निर्णय के लिए आज पार्टी की बोर्ड मीटिंग में फैसला लिया जाएगा । हार के बाद प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि उनकी व्यक्तिगत हार इस बड़ी जीत में मायने नहीं रखती है।धूमल ने यह भी कहा कि हार जीत जिंदगी का हिस्सा हैं।
हिमाचल में धूमल हारे, बदले सियासी समीकरण, नड्डा का शोर ज्यादा
हिमाचल में बीजेपी को जो झटका लगा उससे वहां पर प्रदेश की कमान किसे सौंपी जाय इसके लिए मंथन शुरू हो गया है। जेपी नड्डा का नाम इसके बाद वहां के सीएम के लिए चर्चा में आ गया। इसके पहले चुनाव के पूर्व भी नड्डा को वहां के सीएम के तौर प्रोजेक्ट करने की भी चर्चा जोरों पर थी।लेकिन ऐन वक्त पर प्रेम कुमार धूमल को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। धूमल के नाम के ऐलान से सबसे ज्यादा झटका जेपी नड्डा खेमे को ही लगा था।
सियासी समीकरण को देखते हुए धूमल को चुनाव के मैदान में उतार दिया गया।हिमाचल प्रदेश की सियासत में राजपूत समुदाय सबसे अहम है। राज्य में सबसे ज्यादा करीब 37 फीसदी राजपूत मतदाता हैं।18 फीसदी ब्राह्मण इसके बाद आते हैं। प्रेम कुमार धूमल राजपूत समुदाय से आते हैं तो वहीं जेपी नड्डा ब्राह्मण है। यहां ऐसे वक्त में पार्टी की असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यहां यह सवाल अहम है कि पार्टी सपाट तारीके इस पर निर्णय नहीं ले सकती है या नहीं क्यों कि हिमाचल के जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले सीए पर वह दांव लगायेगी या फिर संगठन अपनी रणनीति को अपने तरह से आगे बढ़ाता रहेगा।