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India-Pakistan तनाव के बीच दुश्मन देश को मिली 12 हजार करोड़ की राहत! क्या है ये IMF जिसने की मदद, क्यों देता है कर्ज़, और किस कीमत पर मिलती है ये मदद?
What is IMF: पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिला 1.4 बिलियन डॉलर यानी करीब 12 हज़ार करोड़ रुपये का राहत पैकेज न केवल आर्थिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी देता है कि वैश्विक संस्थाएं किस तरह संघर्षशील राष्ट्रों की मदद करती हैं—या यूं कहें, अपनी शर्तों पर उन्हें राहत देती हैं।
What is IMF
What is IMF: जब सरहदों पर तनाव चरम पर हो, तो हर आर्थिक और कूटनीतिक कदम खास मायने रखता है। भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा टकराव के माहौल में एक ऐसा ही बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मिला 1.4 बिलियन डॉलर यानी करीब 12 हज़ार करोड़ रुपये का राहत पैकेज न केवल आर्थिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी देता है कि वैश्विक संस्थाएं किस तरह संघर्षशील राष्ट्रों की मदद करती हैं—या यूं कहें, अपनी शर्तों पर उन्हें राहत देती हैं।
भारत में यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाल हो चुका है, महंगाई से जनता बेहाल है और विदेशी मुद्रा भंडार घटकर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है तब आखिर IMF क्यों उसके लिए 'देवदूत' बन गया? क्या IMF को नहीं दिख रहा कि पाकिस्तान एक तरफ हथियार खरीद रहा है, आतंकियों को पनाह दे रहा है और दूसरी तरफ मदद की भीख मांग रहा है? इस सवाल के जवाब की तह में जाने के लिए हमें समझना होगा कि IMF आखिर है क्या, इसका पैसा कहां से आता है, यह किस आधार पर कर्ज देता है, और पाकिस्तान जैसे देशों को इससे बार-बार क्यों मदद मिलती है। और इस मदद की असल कीमत क्या होती है?
IMF क्या है?
IMF यानी International Monetary Fund, जिसे हिंदी में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कहा जाता है, किसी भी साधारण संस्था की तरह नहीं है। इसका गठन वर्ष 1944 में अमेरिका के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हुआ था, और इसका औपचारिक संचालन 1945 में शुरू हुआ। इसका मुख्यालय वॉशिंगटन डीसी, अमेरिका में है और आज इसकी सदस्यता 190 देशों के पास है यानी लगभग पूरी दुनिया इस वैश्विक संस्था का हिस्सा है। IMF का असली मकसद था वैश्विक वित्तीय स्थिरता बनाए रखना, सदस्य देशों की आर्थिक तरलता में मदद करना और जब कोई देश आर्थिक संकट में हो, तो उसे उबारना। लेकिन वक्त के साथ इसकी भूमिका केवल आर्थिक मदद देने तक सीमित नहीं रही। IMF अब एक आर्थिक डॉक्टर भी है और एक सख्त नीति गुरु भी।
जब कोई देश IMF के पास जाता है, तो ये बिल्कुल किसी आम बैंक की तरह नहीं होता जहां आप फॉर्म भरें और पैसा मिल जाए। IMF की मदद एक आपातकालीन इलाज की तरह होती है जहां पहले मरीज की हालत गंभीर होनी चाहिए, फिर डॉक्टर उसकी नब्ज देखकर तय करता है कि इलाज कैसा होगा, कितनी कीमत पर और किस नियम के तहत। पाकिस्तान की आर्थिक नब्ज फिलहाल काफी कमजोर है। बढ़ती महंगाई, गिरते विदेशी मुद्रा भंडार, राजनीतिक अस्थिरता और वैश्विक कर्ज़ के दबाव में पाकिस्तान पूरी तरह चरमराया हुआ है। IMF ने पाकिस्तान को जो 1.4 बिलियन डॉलर दिए हैं, वो दरअसल उसी 'बेलआउट पैकेज' का हिस्सा है जो पहले से ही पाकिस्तान को मंज़ूर किया गया था, लेकिन शर्तों के चलते रोका गया था।
IMF के पास इतना पैसा आता कहां से है?
अब आप सोच रहे होंगे IMF के पास इतना पैसा आता कहां से है? इसका सीधा जवाब है: इसके सदस्य देशों से। हर सदस्य देश IMF में एक तय हिस्सेदारी रखता है, जिसे ‘कोटा (Quota)’ कहा जाता है। जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था, उतना बड़ा कोटा। इस कोटे के मुताबिक ही देश की वोटिंग ताकत और कर्ज़ लेने की क्षमता तय होती है। अमेरिका IMF में सबसे बड़ा शेयरधारक है और सबसे ज़्यादा वोटिंग ताकत भी उसी के पास है। भारत का भी हिस्सा अहम है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों के मुकाबले कम है।
क्या होती है IMF की कर्ज की शर्तें
IMF जब किसी देश को कर्ज़ देता है, तो वह महज़ एक हस्ताक्षर नहीं होता, उसके पीछे एक पूरी कड़ी होती है शर्तों की, जिसे ‘स्ट्रक्चरल एडजस्टमेंट प्रोग्राम्स’ कहा जाता है। इसमें IMF कहता है कि हम तुम्हें पैसा तभी देंगे, जब तुम अपनी सरकारी सब्सिडी घटाओ, टैक्स रिफॉर्म करो, सरकारी खर्च पर लगाम लगाओ, और आर्थिक क्षेत्र को उदार बनाओ। यानी कर्ज़ के बदले में देश को अपने आर्थिक और सामाजिक ढांचे में बड़े बदलाव लाने होते हैं जिनका असर आम आदमी की जेब पर सीधा पड़ता है। तो क्या पाकिस्तान को मिला यह 1.4 बिलियन डॉलर असल में राहत है, या एक नई ज़ंजीर? इसका जवाब वक्त देगा, लेकिन इतिहास बताता है कि IMF से कर्ज़ लेना आसान नहीं, और चुकाना उससे भी मुश्किल।
कौन कौन से देश IMF के सबसे बड़ा कर्जदार
IMF के कर्ज़ का सबसे बड़ा उदाहरण अर्जेंटीना है। अर्जेंटीना अब तक IMF से सबसे ज़्यादा कर्ज़ लेने वाला देश है कुल मिलाकर 40 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा। इसके अलावा मिस्र, यूक्रेन, घाना, श्रीलंका, और यहां तक कि ग्रीस जैसे विकसित देश भी IMF की शरण में जा चुके हैं। भारत ने भी 1991 में विदेशी मुद्रा संकट के दौरान IMF से मदद ली थी, जब देश के पास केवल कुछ हफ्तों के आयात लायक विदेशी मुद्रा बची थी। उस समय भारत ने अपने सोने के भंडार को विदेशों में गिरवी रखकर IMF से कर्ज़ लिया और फिर आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाए।
लेकिन IMF की आलोचनाएं भी कम नहीं हैं। कई विशेषज्ञ कहते हैं कि IMF की शर्तें अक्सर गरीब और विकासशील देशों की रीढ़ तोड़ देती हैं। जब IMF सरकारों को सब्सिडी घटाने और टैक्स बढ़ाने को कहता है, तो उसका असर सीधा जनता की ज़िंदगी पर पड़ता है महंगाई बढ़ती है, रोज़गार घटता है और सामाजिक अशांति जन्म लेती है। यही कारण है कि IMF को कभी-कभी “अंतरराष्ट्रीय कर कटौती कोष” भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी नीतियां अक्सर आम आदमी की तकलीफ बढ़ाती हैं।
अब बात करें कि कौन IMF से कर्ज़ ले सकता है?
कोई भी सदस्य देश, जो आर्थिक संकट में हो। लेकिन उसे यह साबित करना होता है कि वह उस कर्ज़ का सदुपयोग करेगा, और उसे समय पर चुकाने की योजना भी देगा। IMF हर देश की आर्थिक स्थिति की सालाना समीक्षा करता है, और उसे ‘Article IV Consultation’ रिपोर्ट के तहत जांचता है। इसके आधार पर वह तय करता है कि किस देश को कितनी मदद दी जाए, और किन शर्तों पर।
आज पाकिस्तान को IMF से पैसा मिला है, लेकिन यह राहत कितनी स्थायी है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह इस पैसे का उपयोग कैसे करता है—क्या वह सुधार करता है, या फिर उसी पुराने ढर्रे पर चलता है। और यह भी देखना दिलचस्प होगा कि भारत-पाक के मौजूदा तनाव के बीच यह आर्थिक मदद कूटनीतिक समीकरणों पर क्या असर डालेगी। अमेरिका की भूमिका भी सवालों के घेरे में आएगी, क्योंकि IMF में उसकी आवाज़ सबसे बुलंद है।
IMF की कहानी एक गहरे आर्थिक चक्रव्यूह जैसी है जहां एक बार प्रवेश कर लिया जाए, तो बाहर निकलना आसान नहीं होता। यह संस्था एक तरफ आर्थिक जीवनदान देती है, तो दूसरी तरफ आर्थिक अनुशासन की कसौटी पर कसती भी है। पाकिस्तान को जो पैसा मिला है, वह महज़ एक किस्त है उस लंबे सफर की, जहां उसे अपनी आर्थिक व्यवस्था का कायाकल्प करना होगा।
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