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चंद्रमा की उड़ान भरेगा ‘गगनयान‘ महिला समेत 3 लोग करेंगे अंतरिक्ष की सैर

Rishi
Published on: 29 Aug 2018 12:55 PM GMT
चंद्रमा की उड़ान भरेगा ‘गगनयान‘ महिला समेत 3 लोग करेंगे अंतरिक्ष की सैर
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प्रमोद भार्गव

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा पर चंद्रयान 2 भेजने की तिथी का ऐलान कर दिया है। इसरो के अध्यक्ष के शिवम और अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने मीडिया को बताया कि 3 जनवरी 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा के लिए रवाना होगा, जो 16 फरवरी 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र की धरती पर उतरेगा। इस यान का 600 किलोग्राम वजन भी बढ़ाया गया है। दरअसल, प्रयोगों के दौरान ज्ञात हुआ कि उपग्रह से जब चंद्रमा पर उतरने वाला हिस्सा बाहर आएगा तो यह हिलने लगेगा। लिहाजा इसका भार बढ़ाने की जरूरत पड़ी। अब इसका उपग्रह समेत कुल वजन 38 क्विंटल के करीब होगा। इसके अतिरिक्त भारत 2022 में ‘मानव-मिशन‘ के तहत ‘गगनयान‘ के माध्यम से अंतरिक्ष में एक महिला समेत दो वैज्ञानिकों को भेजेगा। यदि भारत इस मिशन में कामयाबी हासिल कर लेता है तो ऐसा करने वाला वह दुनिया का चौथा देश हो जाएगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपने मानवयुक्त यान भेजने में सफलता पाई है। गगनयान अभियान में 10,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस यान का भार 7 टन, ऊंचाई 7 मीटर और करीब 4 मीटर व्यास की गोलाई होगी।

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‘गगनयान‘ जीएसएलबी (एमके-3) राॅकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा। इसे धरती की सतह से 300-400 किमी की दूरी वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। सात दिन तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान को अरब-सागर, बंगाल की खाड़ी अथवा जमीन पर उतारा जाएगा। इस संबंध में पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से भी मदद ली जाएगी। शर्मा ऐसे पहले भारतीय हैं, जिन्होंने अप्रैल 1984 में सोयुज-टी 11 से अंतरिक्ष में गए थे। यह यान रूस ने छोड़ा था।

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो पहली बार अपने यान को चंद्रमा के दक्षिणी धुव पर उतारने की कोशिश में है। याद रहे भारत द्वारा 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 ने ही दुनिया में पहली बार चंद्रमा पर पानी होने की खोज की है। चंद्रयान-2 इसी अभियान का विस्तार है। यह अभियान मानव को चांद पर उतारने जैसा ही चमत्कारिक होगा। इस अभियान की लागत करीब 800 करोड़ रूपए आएगी। चांद पर उतरने वाला यान अब तक चंद्रमा के अछूते हिस्से दक्षिणी धुव्र के रहस्यों को खंगालेगा। चंद्रयान-2 इसरों का पहला ऐसा यान है, जो किसी दूसरे ग्रह की जमीन पर अपना यान उतारेगा।

दक्षिणी धुव पर यान को भेजने का उद्देश्य इसलिए अहम है, क्योंकि यह स्थल दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए अब तक रहस्यमयी बना हुआ है। यहां की चट्टानें 10 लाख साल से भी ज्यादा पुरानी बताई गई हैं। इतनी प्राचीन चट्टानों के अध्ययनों से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को समझने में मदद मिल सकती है। इससे इतर इस पर लक्ष्य साधने का अन्य उद्देश्य चंद्रमा के इस क्षेत्र का अब तक अछूता रहना भी है। दक्षिणी धुव पर अब तक कोई भी यान नहीं उतारा गया है। अब तक के अभियानों में ज्यादातर यान चंद्रमा की भूमध्य रेखा के आसपास ही उतरते रहे हैं। चांद पर उतरने की दिलचस्पी इसलिए भी है, क्योंकि यहां एक तो पानी उपलब्ध होने की संभावना जुड़ गई है, दूसरे यहां ऊर्जा उत्सर्जन की संभावनाओं को भी तलाशा जा रहा है। ऊर्जा और पानी दो ही ऐसे प्रकृति के अनूठे तत्व है, जो मनुष्य को गतिशील बनाए रख सकते हैं।

दरसअल अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यानों को भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और शंकाओ से भरी होती है। यदि अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा सा ही लड़खड़ा जाए तो कोई भी चंद्र-अभियान या तो चंद्रमा पर जाकर ध्वस्त हो जाता है, या फिर अंतरिक्ष में कहीं भटक जाता है। इसे न तो खोजा जा सकता है और न ही नियंत्रित करके दोबारा लक्ष्य पर लाया जा सकता है। 1960 के दशक में जब अमेरिका ने उपग्रह भेजे थे, तब उसके शुरु के छह प्रक्षेपण के प्रयास असफल रहे थे। अविभाजित सोवियत संघ ने 1959 से 1976 के बीच 29 अभियानों को अंजाम दिया। इनमें से नौ असफल रहे थे। 1959 में रूस ने पहला उपग्रह भेजकर इस प्रतिस्पर्धा को गति दे दी थी। तब से लेकर अब तक 67 चंद्र-अभियान हो चुके हैं, लेकिन चंद्रमा के बारे में कोई विषेश जानकारी नहीं जुटाई जा सकी थी। इस होड़ का ही नतीजा रहा कि अमेरिका के तत्कालीन राश्ट्रपति जाॅन एफ कैनेडी ने चंद्रमा पर मानव भेजने का संकल्प ले लिया।

20 जुलाई 1969 को अमेरिका ने यह ऐतिहासिक उपलब्धि वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को चंद्रमा पर उतारकर प्राप्त भी कर ली। इसी से कदमताल मिलाते हुए रूस ने 3 अप्रैल 1984 को वैज्ञानिक स्नेकालोव, मालिशेव बाईकानूर और राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यान सोयूज टी-11 में बिठाकर चंद्रमा पर भेजने की सफलता हासिल की। इस कड़ी में चीन 2003 में मानवयुक्त यान चंद्रमा पर उतारने में सफल हो चुका है।

रूस और अमेरिका कालांतर में चंद्र-अभियानों से इसलिए पीछे हट गए, क्योंकि एक तो ये अत्याधिक खर्चीले थे, दूसरे मानवयुक्त यान भेजने के बावजूद चंद्रमा के खगोलीय रहस्यों के नए खुलासे नहीं हो पाए। वहां मानव बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी नहीं तलाशी जा सकीं। गोया, दोनों ही देशों की होड़ बिना किसी परिणाम पर पहुंचे ठंडी पड़ती चली गई। किंतु 90 के दशक में चंद्रमा को लेकर फिर से दुनिया के सक्षम देशों की दिलचस्पी बढ़ने लगी। ऐसा तब हुआ जब चंद्रमा पर बर्फीले पानी और भविष्य के ईंधन के रूप में हिलियम-3 की बड़ी मात्रा में उपलब्ध होने की जानकारियां मिलने लगीं।

वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि ऊर्जा उत्पादन की फ्यूजन तकनीक के व्यावहारिक होते ही ईंधन के स्रोत के रूप में चांद की उपयोगिता बढ़ जाएगी। यह स्थिति आने वाले दो दशकों के भीतर बन सकती है। गोया, भविष्य में उन्हीं देशों को यह ईंधन उपलब्ध हो पाएगा, जो अभी से चंद्रमा तक के यातायात को सस्ता और उपयोगी बनाने में जुटे हैं। ऐसे में जापान और भारत का साथ आना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि चंद्रमा के परिप्रेक्ष्य में दोनों की प्रौद्योगिकी दक्षता परस्पर पूरक सिद्ध हो रही है। मंगल हो या फिर चंद्रमा कम लागत के अतंरिक्ष यान भेजने में भारत ने विशेष दक्षता प्राप्त कर ली है। दूसरी तरफ जापान ने हाल ही चंद्रमा पर 50 किमी लंबी एक ऐसी प्राकृतिक सुरंग खोज निकाली है, जिससे भयंकर लावा फूट रहा है। चंद्रमा की सतह पर रेडिएशन से युक्त यह लावा ही अग्नि रूपी वह तत्व है, जो चंद्रमा पर मनुष्य के टिके रहने की बुनियादी शर्तों में से एक है। इन लावा सुरंगों के ईद-गिर्द ही ऐसा परिवेष बनाया जाना संभव है, जहां मनुष्य जीवन-रक्षा के कृत्रिम उपकरणों से मुक्त रहते हुए, प्राकृतिक रूप से जीवन-यापन कर सकेगा।

इधर भारत के चंद्रयान-1 और अमेरिकी नासा के लुनर रीकाॅनाइसेंस आॅर्बिटर ने हाल ही में ऐसी जानकारियां भेजी हैं, जिसने चंद्रमा पर चैतरफा पानी उपलब्ध होने के संकेत मिलते हैं। गोया, चंद्रमा की सतह पर पानी किसी एक भू-भाग में नहीं, बल्कि हर तरफ फैला हुआ है। इससे पहले की जानकारियों से सिर्फ यह ज्ञात हो रहा था कि चंद्रमा के धु्रवीय अक्षांश पर अधिक मात्रा में पानी है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा पर दिनों के अनुसार भी पानी की मात्रा बढ़ती व घटती रहती है। पृथ्वी के साढ़े उनतीस दिन के बराबर चंद्रमा का एक दिन होता है।

‘नेचर जिओ साइंस जर्नल‘ में छपे लेख के मुताबिक चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति का ज्ञान होने के साथ ही, इसके प्रयोग के नए तरीके ढूढ़े जाएंगे। इस पानी को पीने लायक बनाने के लिए नए शोध होंगे। इसे हाइड्रोजन और आॅक्सीजन में विघटित कर सांस लेने लायक वातावरण निर्मित करने की भी कोशिशें होंगी। इसी पानी को विघटित कर इसे राॅकेट के ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाएगा। दरअसल किसी भी ग्रह पर मनुष्य के रहने के लिए जरुरी है कि उस ग्रह से सूरज की दूरी इतनी हो कि वहां की सतह का तापमान पानी को तरल रूप में बनाए रखने के लायक हो।

दरअसल चंद्रयान-1 ने पानी के जो डाटा भेजे हैं, उनके विष्लेशण से पानी में ओएच (हाइड्रोक्सिल) पाए जाने की उम्मीद बढ़ी है। ओएच, एच-2 ओ से अधिक सक्रिय है। नतीजतन तुरंत किसी अन्य यौगिक से जुड़ जाता है। किसी भी ग्रह पर रहने के लिए यह भी जरूरी है कि वहां का तापमान न तो बेहद गर्म हो और न ही ठंडा। ऐसे ही ग्रह का आकार पृथ्वी के द्रव्यमान के अनुसार ही होना चाहिए, वरना गुरुत्वाकर्षण एक समस्या के रूप में आड़े आ सकता है। बहरहाल फिलहाल केवल आशा और उम्मीदों पर काम हो रहा है। भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं का सफर बहुत लंबा होने के साथ संभावनाओं और आशंकाओं से भी जुड़ा है। गोया, जो अनंत ब्रह्माण्ड को खंगाल रहे हैं, वे ही ऐसे स्थलों पर पहुंच सकते हैं, जहां शंकालु और निराशावादी पहुंचने का विचार भी नहीं कर सकते हैं ? इस नाते चंद्रयान-2 और मानवयुक्त गगनयान अभियानों का स्वागत करने की जरूरत है।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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