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Jammu Kashmir Historical Issues: विभाजन से आतंकवाद तक, एक नजर कश्मीर के ऐतिहासिक मुद्दे पर
Jammu Kashmir Historical Issues: काश्मीर मुद्दा भारत की अखंडता, आत्मसम्मान और सुरक्षा से जुड़ा है। यह एक ऐसा विवाद है जो ऐतिहासिक भूलों, धार्मिक राजनीति, और भू-राजनीतिक हितों से उत्पन्न हुआ है।
Jammu Kashmir Historical Issues
Jammu Kashmir Historical Issues: कश्मीर(Kashmir), यह केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और अस्मिता से जुड़ा एक ऐसा विषय है, जो दशकों से उपमहाद्वीप की राजनीति, इतिहास और संवेदनशीलता के केंद्र में रहा है। यह मुद्दा केवल सीमाओं का नहीं, बल्कि असंख्य बलिदानों, संघर्षों और कूटनीतिक उलझनों की कहानी है। भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे पुराना और जटिल विवाद बन चुका कश्मीर मसला, न केवल हजारों निर्दोष जानों की बलि ले चुका है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की शांति और विकास पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
यह लेख कश्मीर विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, 1947 में भारत-विभाजन के समय की परिस्थिति, अब तक घटित प्रमुख घटनाओं, और इस मुद्दे के अंतरराष्ट्रीय पक्षों पर गहराई से प्रकाश डालेगा।
ब्रिटिश भारत में काश्मीर की स्थिति(Status of Kashmir in British India)
प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46) के बाद, 9 मार्च 1846 को लाहौर संधि के तहत सिख साम्राज्य को कश्मीर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा। इसके कुछ ही दिनों बाद, 16 मार्च 1846 को अमृतसर संधि के माध्यम से ब्रिटिशों ने कश्मीर को 75 लाख रुपये में महाराजा गुलाब सिंह के अधीन कर दिया, जिससे कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत के रूप में स्थापित हुआ। इस रियासत को बाहरी मामलों में ब्रिटिशों के अधीन रहना पड़ा, जबकि आंतरिक शासन डोगरा शासकों के हाथ में रहा। 1858 के भारत सरकार अधिनियम के बाद जब ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष शासन शुरू हुआ, तब कश्मीर को भी सहायक संधि प्रणाली के तहत स्वायत्तता मिली। डोगरा शासकों ने 1947 तक कश्मीर पर शासन जारी रखा और अपनी स्वतंत्र सेना, कर प्रणाली तथा प्रशासनिक ढाँचा बनाए रखा। अमृतसर संधि में कश्मीर का वैधानिक रूप से हस्तांतरण हुआ था, जिसे सांकेतिक रूप में "खरीद" कहा जाता है, क्योंकि यह युद्ध हर्जाने के रूप में की गई राशि के बदले में हुआ था। यह संपूर्ण घटनाक्रम ब्रिटिश राज की रियासत नीति और उस दौर की भू-राजनीतिक रणनीतियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
विभाजन और काश्मीर(Partition and Kashmir)
1947 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अंतर्गत सभी रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि वे भारत, पाकिस्तान (Pakistan)में विलय करें या स्वतंत्र रहें। अधिकांश रियासतों ने स्वतंत्रता से पूर्व ही अपने निर्णय ले लिए थे, परंतु जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 15 अगस्त 1947 तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया। कश्मीर की लगभग 77% मुस्लिम जनसंख्या के बावजूद, वहां हिंदू डोगरा वंश का शासन था। हरि सिंह कश्मीर को स्वतंत्र रखना चाहते थे ताकि भारत या पाकिस्तान में विलय से उत्पन्न सांप्रदायिक तनाव और हिंसा से बचा जा सके। इस बीच, पाकिस्तान ने कश्मीर पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक नाकेबंदी की, जबकि भारत ने शांतिपूर्ण वार्ता का प्रयास किया। परंतु 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना के समर्थन से पठान कबायलियों ने कश्मीर पर हमला कर मुजफ्फराबाद से बारामूला होते हुए श्रीनगर की ओर कूच कर दिया। जब वे श्रीनगर से मात्र 50 किमी दूर थे, तब महाराजा ने भारत से सैन्य सहायता मांगी। भारत ने शर्त रखी कि वह तभी हस्तक्षेप करेगा जब महाराजा ‘विलय पत्र’(Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर करें। 26 अक्टूबर को हस्ताक्षर के पश्चात, 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर पहुँची और हमलावरों को पीछे हटाया। पाकिस्तान ने इस विलय को “धोखाधड़ी” बताया क्योंकि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र था, परंतु भारत का पक्ष था कि यह कानूनी रूप से मान्य विलय था। इस युद्ध के बाद 1948 में युद्धविराम हुआ और लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) की स्थापना हुई, जो आज तक एक विवादित सीमा बनी हुई है।
भारत-पाक युद्ध और संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप(India-Pakistan War and United Nations Intervention)
काश्मीर के विलय के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध 1947 से 1948 तक चला। 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों द्वारा कश्मीर पर आक्रमण के बाद महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर को भारत में विलय के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया और कश्मीर की रक्षा की। भारत ने जनवरी 1948 में यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया, जिसके परिणामस्वरूप 13 अगस्त 1948 को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित किया। इसमें पाकिस्तान को अपने सैनिकों और कबायली लड़ाकों को हटाने तथा भारत को न्यूनतम सैन्य उपस्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया गया। 21 अप्रैल 1948 को पारित प्रस्ताव 47 के तहत जनमत संग्रह की शर्त जोड़ी गई, जो पाकिस्तान की ओर से सेना न हटाने के कारण कभी लागू नहीं हो सका। 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम के साथ कश्मीर का भूभाग भारत (लगभग 60%) और पाकिस्तान (लगभग 40%, जिसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या PoK कहा जाता है) के बीच विभाजित हो गया। इस युद्धविराम रेखा को 1972 के शिमला समझौते के बाद नियंत्रण रेखा (LoC) का नाम दिया गया। पाकिस्तान की असहयोगात्मक भूमिका और प्रस्तावों की अवहेलना ने जनमत संग्रह की संभावना समाप्त कर दी। कई विश्लेषक इस घटनाक्रम को लेकर नेहरू की रणनीति की आलोचना करते हैं, यह मानते हुए कि यदि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मामला न उठाया होता तो वह उस समय अधिक भूभाग अपने नियंत्रण में ले सकता था।
संवैधानिक घटनाएँ और दूसरा युद्ध(Constitutional events and the second war)
अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान सभा द्वारा 17 अक्टूबर 1949 को अपनाया गया और यह 26 जनवरी 1950 से प्रभाव में आया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त हुआ, जिससे राज्य को अपना संविधान बनाने, अलग झंडा रखने, और भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को सीमित करने का अधिकार मिला। केंद्र सरकार केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार जैसे विषयों पर कानून बना सकती थी, और राज्य की सहमति के बिना कोई अन्य केंद्रीय कानून या संवैधानिक प्रावधान लागू नहीं हो सकते थे। यह अनुच्छेद दरअसल जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की शर्तों के अनुरूप एक अस्थायी व्यवस्था थी, जो समय के साथ स्थायी स्वरूप लेती गई, जब तक कि इसे 2019 में समाप्त नहीं किया गया।
1965 में पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर के माध्यम से कश्मीर में घुसपैठ कर विद्रोह भड़काने की कोशिश की, जिससे भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया। युद्ध के बाद 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में (जो अब उज्बेकिस्तान में है) समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्ष युद्धपूर्व स्थिति पर लौटने और शांति बनाए रखने पर सहमत हुए। हालांकि इस युद्ध की कोई स्पष्ट विजेता घोषित नहीं हुई, लेकिन पाकिस्तान की घुसपैठ की योजना विफल रही। ताशकंद समझौता कश्मीर विवाद का समाधान नहीं कर सका, बल्कि केवल तत्काल युद्धविराम सुनिश्चित करने तक सीमित रहा।
1971 युद्ध और शिमला समझौता(1971 War and the Shimla Agreement)
16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक रूप से हराया और ढाका में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग 93,000 सैनिकों और नागरिकों ने आत्मसमर्पण किया, जबकि भारत ने 3,000 से अधिक जानें गंवाईं और पाकिस्तान को 9,000 सैनिकों की हानि हुई, साथ ही 25,000 घायल हुए। युद्ध के बाद, 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने युद्धपूर्व सीमाओं को स्वीकार किया और नियंत्रण रेखा (LoC) को मान्यता दी। शिमला समझौते के अनुच्छेद 1(ii) में यह तय किया गया कि कश्मीर समेत सभी विवादों को दोनों देशों द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से और द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाया जाएगा। हालांकि, पाकिस्तान ने बाद में कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना जारी रखा, जो शिमला समझौते की भावना के विपरीत था। शिमला समझौते के बावजूद, पाकिस्तान ने 1990 के दशक से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की।
1989 के बाद आतंकवाद की शुरुआत(Beginning of terrorism after 1989)
1987 के विवादित विधानसभा चुनावों में धांधली के आरोपों ने जम्मू-कश्मीर में युवा पीढ़ी को उग्रवाद की ओर धकेला, जिससे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) और हिज़्बुल मुजाहिदीन जैसे उग्रवादी संगठनों को बल मिला। पाकिस्तान ने इस संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभाई, इसके इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने हथियारों की तस्करी, प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना (जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में थे), और विद्रोहियों को वित्तीय सहायता प्रदान की। 1989 में हिज़्बुल मुजाहिदीन सक्रिय हुआ, जिसे पाकिस्तान से सीधा समर्थन मिला, जबकि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन 1990 के दशक के उत्तरार्ध में अस्तित्व में आएजो कश्मीर को भारत से छीनने के के लिए आतंकवाद का सहारा लेते आ रहे है।
1990 की शुरुआत में, कश्मीरी पंडितों को अलगाववादी समूहों द्वारा निशाना बनाकर मारा गया, धमकियाँ दी गईं और मस्जिदों से उन्हें घाटी छोड़ने के लिए अल्टीमेटम दिए गए। इसके परिणामस्वरूप लाखों कश्मीरी पंडितों को अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी। इस जातीय सफाए और मानवाधिकार उल्लंघन के चलते कश्मीरी हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति बेहद दयनीय हो गई।
भारत ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 1990 में आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) लागू किया, जिससे सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार प्राप्त हुए। इसके बावजूद, 1990 से 2000 तक इस संघर्ष में 40,000 से अधिक लोग मारे गए। 1994 तक जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने हथियार छोड़ दिए, लेकिन हिज़्बुल मुजाहिदीन और अन्य उग्रवादी समूहों का प्रभाव बना रहा। इस दौरान लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने अपनी गतिविधियाँ तेज़ कर दीं और कश्मीर में आतंकवाद को फैलाने का कार्य किया।
अनुच्छेद 370 का निरसन , एक ऐतिहासिक मोड़(Revocation of Article 370, a historic turning point)
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया। यह कदम ऐतिहासिक था और लंबे समय से प्रतीक्षित भी। इससे काश्मीर पूरी तरह से भारत के सामान्य कानूनों के अधीन आ गया। हालांकि पाकिस्तान ने इस कदम का विरोध किया और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की, लेकिन उसे कोई विशेष समर्थन नहीं मिला।
आज का काश्मीर, चुनौतियाँ और उम्मीदें(Today's Kashmir, Challenges and Hopes)
वैश्विक समुदाय में, अमेरिका ने 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन (अनुच्छेद 370 हटाने) को भारत का आंतरिक मामला माना, और फ्रांस तथा रूस ने भी इसी रुख का समर्थन किया। भारत ने मार्च 2025 में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के "अवैध कब्जे" (PoK) को छोड़ने की मांग दोहराई।
चीन ने कश्मीर मुद्दे पर खास ध्यान नहीं दिया, बल्कि 2020 में गालवान घाटी में हुई झड़प के बाद सीमा विवाद को उछालते हुए इसे अक्साई चिन और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से जोड़ा। साथ ही, चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरने वाली चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर भारत की आपत्तियों को नज़रअंदाज़ किया। इस प्रकार, कश्मीर पर वैश्विक दृष्टिकोण मिश्रित है, जहां विभिन्न देशों ने अलग-अलग रुख अपनाया है।
वर्तमान में काश्मीर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर लौट रहा है। पर्यटन, रोजगार, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में सकारात्मक विकास हो रहा है। लेकिन सुरक्षा चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। पत्थरबाज़ी, सीमापार गोलीबारी, और ड्रोन के माध्यम से हथियार भेजने जैसी घटनाएँ अब भी चिंता का विषय हैं। भारत सरकार ‘नया काश्मीर’ के विजन के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रोजगार और डिजिटल सेवाओं के क्षेत्र में निवेश कर रही है। सुरक्षा बलों की निगरानी और स्थानीय प्रशासन की मुस्तैदी से शांति की ओर कदम बढ़ रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य(International Perspective)
पाकिस्तान(Pakisthan) समय-समय पर काश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और OIC (Organization of Islamic Cooperation) में उठाता रहा है, लेकिन वैश्विक समुदाय भारत के रुख को अधिक महत्व देता है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, और अन्य देशों ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला माना है। चीन ने जरूर लद्दाख क्षेत्र को लेकर चिंता जताई है, खासकर गालवान घाटी की झड़प के बाद। लेकिन यह विवाद काश्मीर से अधिक सीमाओं से जुड़ा हुआ है।