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‘टूटी साइकिल और दूध का पीपा…’ तबेले से मुख्यमंत्री के सिंहासन तक; लालू ने कैसे बनाया सियासत का साम्राज्य
Lalu Prasad Yadav Birthday: यह कहानी एक ऐसे नेता है, जिसकी सियासी यात्रा तबेले से शुरू होकर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंची।
Lalu Prasad Yadav Birthday
Lalu Prasad Yadav Birthday: कभी एक टूटी हुई साइकिल पर दूध का पीपा लादकर गांव-गांव बेचने वाला लड़का, आज भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित नामों में से एक है। यह कहानी एक ऐसे नेता है, जिसकी सियासी यात्रा तबेले से शुरू होकर बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंची। जिनकी बोलचाल की अंदाज़, हंसी-मज़ाक और देसीपन ने न केवल बिहार को बल्कि देशभर के हर राज्य के लोगों को प्रभावित किया।
ये कहानी है लालू प्रसाद यादव की जो आज राजनीति का एक मिसाल है क्योंकि यदि इरादे मजबूत हों और जनता से जुड़ाव गहरा और सच्चा हो, तो कोई भी ‘शून्य’ से ‘शिखर’ तक पहुँच सकता है।
एक चरवाहा, एक छात्र नेता
लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज ज़िले के फुलवरिया गांव में हुआ था। उनका परिवार आर्थिक रूप से बहुत दुर्बल था। उनके पिता किसान थे जो गांव में रहकर ही खेती किया करते थे और तबेले में काम करते थे। बचपन से ही लालू ने गरीबी को बहुत पास से देखा। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातक किया और वहीं छात्र राजनीति में अपना पहला कदम रखा। साल 1970 के दशक में जब जयप्रकाश नारायण का ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन चला, तब लालू ने इसमें सबसे आगे बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसी आंदोलन के दौरान वे जनता के बीच काफी प्रसिद्ध हुए और उन्हें एक संघर्षशील युवा नेता के रूप में पहचान मिल गयी।
राजनीति में पहला कदम?
साल 1977 में, मात्र 29 साल की उम्र में लालू प्रसाद यादव छपरा से लोकसभा चुनाव जीते और संसद में पहला कदम रखा। यह इमरजेंसी के बाद का वक़्त था, जब जनता कांग्रेस के खिलाफ संघर्ष कर रही थी। लालू जनता पार्टी के टिकट पर जीतकर आए और संसद के सबसे युवा सांसदों में से एक बन गए। राजनीति में उनकी देसी अंदाज़, हाजिरजवाबी और जनता से सीधा संवाद उन्हें औरों से बेहद अलग बनाकर रखता था। लालू आम जनता की भाषा में बोलते थे, जिससे गरीब और ग्रामीण तबके में उनकी लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ी।
बिहार की राजनीति में उभरता नाम
साल 1980 और 1985 के विधानसभा चुनावों में लालू विधायक बन गए और 1989 में लोकसभा में फिर से कदम रखा। इसी साल उन्होंने बिहार में जनता दल का मजबूत आधार तैयार किया। वे एक ऐसे नेता के रूप में उभरकर सामने आये जो पिछड़े वर्गों, विशेषकर यादव और मुस्लिम समुदाय के बीच बहुत प्रसिद्ध थे। लालू की राजनीति ‘समाजिक न्याय’ पर केंद्रित थी। उन्होंने नारा दिया—"भूरा बाल साफ करो", जिसका साफ़ मतलब ये था कि ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ इन सभी ऊंची जातियों का वर्चस्व नष्ट करना। उस वक़्त यह नारा उनके विरोधियों के लिए विवादित बयान बन गया था, लेकिन पिछड़े वर्गों ने इसे खुलकर समर्थन दिया।
मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफर...
साल 1990 में जनता दल ने बिहार विधानसभा चुनाव में बड़ो जीत दर्ज किया। मुख्यमंत्री के रूप में दो नाम सामने थे एक राम सुंदर दास और दूसरा लालू यादव। पार्टी विधायकों ने भारी बहुमत के साथ लालू के नाम पर मुहर लगाई। उसके बाद 23 मार्च 1990 को लालू प्रसाद यादव ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उस वक़्त लालू के लिए यह ऐतिहासिक पल था क्योंकि पहली बार कोई यादव नेता बिहार की सत्ता में बैठा था। इससे पहले सत्ता पर अधिकतर ऊंची जातियों का वर्चस्व रहा था। लालू ने अपनी सरकार को 'गरीबों की सरकार' के नाम से संबोधित किया। उन्होंने अधिकारियों को सीधे जनता से मिलने के आदेश दिए और खुद भी सड़क पर उतरकर जनता की सभी शिकायतें सुनीं।
मंडल आयोग और OBC राजनीति के मसीहा
1990 का साल भारतीय राजनीति में मंडल आयोग की सिफारिशों के कारण और भी महत्वपूर्ण बन गया था। जब प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने OBC को 27% आरक्षण देने का ऐलान किया, तब पूरे देश में इसका जमकर विरोध हुआ। लेकिन लालू यादव ने बिहार में इसका खुलकर समर्थन किया। उन्होंने कहा—"मंडल कमीशन का विरोध करने वाले वास्तव में गरीबों को उनका हक नहीं देना चाहते।" इससे OBC वर्ग के बीच उनकी लोकप्रियता और भी ज्यादा बढ़ गई।
लालू की जीतें
साल 1995 के विधानसभा चुनावों में लालू ने खुद के दम पर RJD (राष्ट्रीय जनता दल) के लिए बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने 'माई समीकरण' (M–मुस्लिम, Y–यादव) का फार्मूला तैयार किया, जो सालों तक बिहार की राजनीति में सबसे प्रभावशाली रहा।
लालू कहते थे—'भूखों को रोटी दूंगा, पढ़ाई-लिखाई करवाऊंगा, दलितों-पिछड़ों को हक़ दिलवाऊंगा।'
उनकी रैलियां मेला बन जाती थीं, लोग केवल उन्हें सुनने नहीं, बल्कि देखने भी आते थे। उस वक़्त वे एक नेता कम, स्टार ज्यादा लगते थे।
यहां से शुरू हुआ पतन
साल 1996 में लालू प्रसाद यादव का नाम चारा घोटाले में सामने आया। यह घोटाला बिहार के पशुपालन विभाग में हुआ था, जहां करोड़ों रुपये फर्जी बिलों के माध्यम से निकाले गए थे। 1997 में CBI ने लालू के खिलाफ केस दर्ज किया। इस बीच, उन्होंने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठन किया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। यह कदम भारी आलोचनाओं से घिरा रहा, लेकिन उन्होंने इसे 'महिलाओं को सशक्त करने' का मार्ग बताया। हालांकि चारा घोटाले ने उनकी छवि को बहुत गंभीर नुकसान पहुंचाया, लेकिन उनके कट्टर समर्थकों ने उनका साथ नहीं छोड़ा।
संकट के बाद भी मजबूती से डटे रहे
साल 2005 के चुनावों में नीतीश कुमार ने लालू यादव को सत्ता से बाहर कर दिया, लेकिन इसके बाद भी लालू का प्रभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। साल 2004 में उन्हें केंद्र में रेल मंत्री का पदभार मिला और भारतीय रेलवे को मुनाफे में लाकर सबको हैरान कर दिया। उनकी रणनीतियों को हार्वर्ड और IIM जैसे संस्थानों में केस स्टडी के रूप में पढ़ाया गया। उन्होंने कहा—"मैंने रेलवे को भी गाय की तरह पाला है, जैसे बचपन में तबेले में गायों को पाला जाता था।"
आज भी हैं राजनीति के ‘किंगमेकर’
चारा घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद लालू को कई बार जेल जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने राजनीति नहीं आज भी छोड़ी। आज उनके बेटे तेजस्वी यादव RJD की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन लालू अब भी मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं। साल 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में वे एक बार फिर से चर्चा का विषय बने, क्योंकि विपक्षी गठबंधन (INDIA) में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। उनकी राजनीतिक समझ और अनुभव आज भी विपक्षी खेमे की सबसे बड़ी ताकत के रूप में देखे जाते हैं।
लालू एक नेता नहीं, एक आंदोलन हैं
लालू प्रसाद यादव केवल एक नेता नहीं हैं, बल्कि वे एक सोच हैं। उन्होंने बिहार के उस समाज की आवाज उठाई, जो सदियों से दबा-कुचला था। उनकी राजनीति में भले विवाद से घिरी रही हों, लेकिन इसे आज भी नज़रअंदाज़ करना सही नहीं होगा कि उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को एक नया आयाम दिया है। 'तबेले से सिंहासन' तक की यह कहानी आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देती है कि कठिनाई कैसी भी हो, अगर दिल में जनता की सेवा का जुनून हो, तो कोई भी मुकाम नामुमकिन नहीं।
अंत में लालू का एक प्रसिद्ध संवाद ज़रूर पढ़िए जो अक्सर उन्होंने अपने भाषण में बोलै है:
"राजनीति में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता… जनता जिसे चाहे, वही राजा बनता है!" यही सबसे बड़ा कारण है कि टूटी साइकिल पर दूध बेचने वाला लड़का, एक दिन बिहार की सियासत का सम्राट बन गया...
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