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मोदी के एक डिनर ने तोड़ दिया विपक्ष का गठबंधन? मोदी के बुलावे पर पहुंचीं विपक्ष की तीन ‘शक्तियां’,पाक की खुली पोल !
PM Modi diplomatic dinner: मेहमान थे विपक्ष की तीन मजबूत आवाज़ें—प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया सुले और एमके कनिमोझी। वो तीन चेहरे जो संसद से लेकर टीवी डिबेट्स तक मोदी सरकार पर हमलावर दिखती हैं। लेकिन इस रात वे सिर्फ विपक्षी नेता नहीं थीं, बल्कि भारत की 'डिप्लोमैटिक ब्रांड एंबेसडर' बनकर लौटी थीं।
PM Modi diplomatic dinner: राजनीति में कुछ तस्वीरें वक्त से पहले भविष्य का संकेत दे जाती हैं। दिल्ली की एक ऐसी ही शाम में, जब देशभर के टीवी चैनलों पर पहलगाम हमले और 'ऑपरेशन सिंदूर' की गूंज थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर एक बिल्कुल अलग किस्म का 'डिप्लोमैटिक डिनर' चल रहा था। प्लेटों में क्या परोसा गया, उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प यह था कि किन्हें मेज़ पर बुलाया गया। मेहमान थे विपक्ष की तीन मजबूत आवाज़ें—प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया सुले और एमके कनिमोझी। वो तीन चेहरे जो संसद से लेकर टीवी डिबेट्स तक मोदी सरकार पर हमलावर दिखती हैं। लेकिन इस रात वे सिर्फ विपक्षी नेता नहीं थीं, बल्कि भारत की 'डिप्लोमैटिक ब्रांड एंबेसडर' बनकर लौटी थीं।
यह मुलाकात महज औपचारिक नहीं थी। इसमें रणनीति भी थी, सियासत भी और संदेश भी। पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को दुनिया के सामने बेनकाब करने का जो काम भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के जरिए सीमा पार किया, उसे संसद के भीतर और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन महिला नेताओं ने अंजाम दिया। और अब वापसी पर मोदी ने उन्हें डिनर डिप्लोमेसी के जरिए राजनीति के शतरंज पर एक नई चाल के तौर पर इस्तेमाल किया।
विपक्ष को साथ लेकर चला मोदी मंत्र
यह दृश्य भारतीय राजनीति के लिए असामान्य था। जो महिलाएं संसद में मोदी सरकार के खिलाफ सबसे तीखी आवाज़ मानी जाती हैं, वे ही पाकिस्तान के खिलाफ भारत के केस को दुनिया भर में मजबूती से पेश कर रही थीं। सुप्रिया सुले—एनसीपी की नेता और शरद पवार की बेटी, एमके कनिमोझी—डीएमके सांसद और करुणानिधि की बेटी, प्रियंका चतुर्वेदी—शिवसेना (यूबीटी) की नेता और उद्धव ठाकरे की भरोसेमंद। मोदी सरकार के खिलाफ इनकी आवाज संसद से लेकर सोशल मीडिया तक गूंजती रही है।
लेकिन यही तीनों जब दुनिया के ताकतवर देशों के नेताओं से मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ भारत का पक्ष रखती हैं तो यह विपक्ष और सत्ता के बीच एक नए किस्म की सियासत की शुरुआत लगती है। प्रधानमंत्री मोदी ने सिर्फ इन्हें प्रतिनिधिमंडल में शामिल ही नहीं किया बल्कि सुप्रिया सुले और कनिमोझी को डेलिगेशन की अगुवाई करने की जिम्मेदारी दी। यह दिखाने के लिए काफी था कि इस बार भारत आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ सैनिक या कूटनीतिक नहीं, बल्कि सर्वदलीय और सर्वसमावेशी जंग लड़ रहा है।
'महिला शक्ति' से पाकिस्तान को जवाब
डिनर डिप्लोमेसी में खास बात यह थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से इन तीनों से मुलाकात कर उनके अनुभव सुने। कनिमोझी ने पीएम मोदी को तमिल संस्कृति का प्रतीक अंगवस्त्रम भेंट किया, जिसे पीएम ने आदर के साथ स्वीकारा। सुप्रिया सुले ने यशवंतराव चव्हाण पर लिखी किताबें भेंट कीं, तो प्रियंका चतुर्वेदी ने यूरोप में अपने अनुभव साझा किए। लेकिन असली कहानी तो इनके बयानों में दिखी। सुप्रिया सुले ने सार्वजनिक तौर पर पीएम मोदी का धन्यवाद करते हुए लिखा कि भारत की एकता और अखंडता के लिए ऐसी जिम्मेदारी पाकर वह सम्मानित महसूस कर रही हैं। प्रियंका चतुर्वेदी ने भी पीएम मोदी से मुलाकात को 'उत्साहवर्धक' बताया। ये बयान विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच की खाइयों को कुछ देर के लिए भरते नजर आए।
सुप्रिया सुले: अफ्रीका और अरब में भारत की आवाज
सुप्रिया सुले के नेतृत्व में कतर, दक्षिण अफ्रीका, इथियोपिया और मिस्र की यात्रा करने वाला प्रतिनिधिमंडल भारत का संदेश साफ लेकर पहुंचा—पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है और इसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने की जरूरत है। सुप्रिया ने यह भी कहा कि भारत सरकार को अब इस वैश्विक पहल को आगे बढ़ाना चाहिए। सुप्रिया का ये बयान भारत सरकार की कूटनीति के लिए ताकतवर संदेश था, क्योंकि यह विपक्ष के ही नेता की ओर से आया था। जब विपक्ष खुद पाकिस्तान को दुनिया के लिए खतरा बता रहा हो, तो भारत का केस कहीं ज्यादा मजबूत हो जाता है।
कनिमोझी: रूस और यूरोप में भारत की पैरवी
कनिमोझी ने रूस, स्लोवेनिया, ग्रीस, लातविया और स्पेन की यात्रा की और हर मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा। उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा है। प्रतिनिधिमंडल ने ऑपरेशन सिंदूर को उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए बताया कि भारत अब जवाबी कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगा। कनिमोझी की छवि तमिलनाडु की एक प्रखर विपक्षी नेता की रही है, लेकिन विदेश में भारत के लिए उनकी आवाज सत्ता और विपक्ष के विभाजन से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित की आवाज बन गई।
प्रियंका चतुर्वेदी: यूरोप में भारत की दहाड़
प्रियंका चतुर्वेदी ने यूरोपीय देशों—फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, बेल्जियम, इटली और डेनमार्क में भारत का पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान IMF से कर्ज लेकर अपने देश में आतंकवाद का नेटवर्क चला रहा है। प्रियंका ने साफ कहा कि ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ शुरुआत है। अगर पाकिस्तान सुधरता नहीं है तो भारत आतंक के अड्डों पर हमला करता रहेगा। प्रियंका के इस बयान ने यूरोपीय नेताओं को यह समझाने का काम किया कि भारत की कार्रवाई 'डिफेंसिव' नहीं, बल्कि 'डिटरेंट' है—यानी हम हमला इसलिए कर रहे हैं ताकि आतंकवाद को रोका जा सके।
डिनर के बहाने कई तीर
पीएम मोदी ने इस डिनर डिप्लोमेसी के जरिए एक तीर से कई निशाने साधे। पहली बात तो यह कि पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में विपक्ष को भी साथ खड़ा कर दिया। दूसरा, विपक्ष के भीतर भी उन चेहरों को जगह दी जो अक्सर सरकार के खिलाफ मुखर रहते हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि एकजुट दिखी। तीसरा, घरेलू राजनीति में विपक्ष के भीतर एक वर्ग को केंद्र के साथ खड़ा करने का प्रयास हुआ। यह डिनर विपक्ष के लिए भी संदेश था—आलोचना अपनी जगह, लेकिन जब बात देश की सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की हो, तो सियासत किनारे रखनी होगी। और यह काम मोदी ने उन नेताओं के जरिए किया जिनकी आवाज टीवी डिबेट्स में अक्सर उनके खिलाफ उठती थी।
अगले चुनावों की जमीन?
इस मुलाकात को सिर्फ डिप्लोमैटिक पहलू से देखना कम होगा। मोदी के इस कदम में अगली सियासी बिसात भी छुपी है। विपक्ष की इन महिला नेताओं के जरिए मोदी ने विपक्ष के अंदर सेंध लगाने की शुरुआत कर दी है। क्या आने वाले वक्त में विपक्ष के कुछ चेहरे सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते दिखेंगे? क्या 'इंडिया गठबंधन' की एकजुटता में सेंध लगेगी? सवाल कई हैं, लेकिन इतना तय है कि मोदी ने डिनर के बहाने एक नई राजनीति की पटकथा लिखनी शुरू कर दी है। विपक्ष की 'विमेन पावर' अब सिर्फ संसद में हल्ला बोलने वाली आवाजें नहीं रहीं, वे भारत की विदेश नीति का चेहरा बन चुकी हैं।सियासत की यही तो खूबसूरती है—जहां ताली भी गूंजती है, और चाल भी चलती है और इस बार चाल चली गई है—'डिनर' की मेज़ पर।
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