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अलविदा 2017: नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड- 3 करोड़ मामले लंबित छोड़ गया बीता साल

2017 को अलविदा कहते हुए आम लोगों को शीघ्र न्याय दिलाने के केंद्र व राज्य सरकारों का सपना अभी कोसों दूर दिख रहा है। सरकारी व अदालतों मे जल्द से जल्द मामले निपटाने के जजों के दावों के बावजूद देश में लगभग तीन करोड़ मामले देशभर की विभिन्न अदालतों में न्याय की इंतजार में लंबित

Anoop Ojha
Published on: 30 Dec 2017 9:15 PM IST
अलविदा 2017: नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड- 3 करोड़ मामले लंबित छोड़ गया बीता साल
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उमाकांत लखेड़ा

नई दिल्ली : 2017 को अलविदा कहते हुए आम लोगों को शीघ्र न्याय दिलाने के केंद्र व राज्य सरकारों का सपना अभी कोसों दूर दिख रहा है। सरकारी व अदालतों मे जल्द से जल्द मामले निपटाने के जजों के दावों के बावजूद देश में लगभग तीन करोड़ मामले देशभर की विभिन्न अदालतों में न्याय की इंतजार में लंबित हैं।

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के अनुसार देश की 2.50 प्रतिशत आबादी इस अन्याय का शिकार है क्योंकि अदालतों में कई-कई सालों तक वे न्याय पाने को तरस रहे हैं। ग्रिड ने एक ऐसा ई-कोर्ट ड्राइव तैयार की है जिसमें जिलों और अधीनस्थ अदालतों में लंबित कोर्ट केसों का कंप्यूटरीकृत डाटा उपलब्ध है।

सरकार का कहना है कि निचली अदालतों में सबसे ज्यादा मामले अटके होने का सबसे बड़ा कारण ज्यूडिशियल अधिकारियों की भारी कमी का होना है। यहां तक कि देश के विभिन्न हाईकोर्टों में 40 प्रतिशत जजों के पद रिक्त पड़े हैं जबकि जिला और उनके अधीन आने वाली अदालतों में जजों के 26 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली पड़े हैं।

सुप्रीम कोर्ट में भी जजों के खाली पदों को नहीं भरा गया है। मौजूदा वक्त में 31 पद स्वीकृत हैं लेकिन अब भी 28 जजों से ही पूरे देश से आने वाले मामलों का बोझ इन्हीं जजों पर है। हाईकोर्टों में मुख्य न्यायाधीश के नौ पद खाली हैं। कार्यवाहक न्यायाधीशों से उनका काम चलाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट जो मामलों को जल्द से जल्द निपटाने के लिए जाना जाता है वहां 18 दिसंबर तक प्राप्त डाटा के अनुसार 54,714 मामले फैसले के इंतजार में लंबित हैं। हालांकि उच्च अदालतों में जजों की किल्लत के मामले में सरकार इस बहाने जिम्मेदारी से बचती है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कालोजियम ने उच्च न्यायालयों में रिक्त पदों को भरे जाने के मामले में कोई प्रस्ताव नहीं मिला है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की हालत और भी खराब है। यहां जजों के 160 स्वीकृत पदों के एवज में 26 दिसंबर 2017 तक 51 जजों के पद रिक्त पड़े हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट में भी 72 पदों पर मात्र 39 जज ही कार्यरत हैं। इसी तर्ज पर बंबई हाईकोर्ट में 94 की जगह पर 24 ही जज हैं तो कर्नाटक हाईकोर्ट में 65 की जगह पर 37, मध्य प्रदेश में 53 की जगह 19, दिल्ली में 60 की जगह 23 व राजस्थान हाईकोर्ट में 50 स्वीकृत पदों के एवज में मात्र 15 जजों से ही काम चलाया जा रहा है।

केंद्रीय कानून राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने हाल में संसद में भी जजों की किल्लत के मामले पर कहा कि 2016 में सुप्रीम कोर्ट में 4 तथा 14 उच्च न्यायालयों में 14 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्तियां हुई हैं। इस साल यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट में 5 उच्च न्यायालयों में 8 मुख्य न्यायाधीश तथा 115 पदों पर जजों की नई नियुक्तियां हुई हैं।

सरकार का दावा है कि न्यायालयों में ढांचागत निर्माण की दिशा में पिछले दो वर्षों में अच्छी प्रगति हुई है। 500 अदालतों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जोड़ा गया है, जिससे सुनवाई और गवाही की प्रक्रिया को गति मिली है। कानून राज्यमंत्री का कहना है कि जिला अदालतों में कोर्ट भवनों व कमरों के अलावा कंप्यूटरीकरण की दिशा में अभूतपूर्व काम हुआ है।



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Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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