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Rahul Gandhi Exposed Maharashtra Election: राहुल गांधी ने सरकार के आंकड़ों में झोल का किया खुलासा, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली मैच फिक्सिंग की तरह
Rahul Gandhi Exposed Maharashtra Election: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का यह आलेख न्यूजट्रैक ने सोशल मीडिया से साभार लेकर प्रकाशित किया है।
Rahul Gandhi (Social Media)
Rahul Gandhi Exposed Maharashtra Election: मैंने तीन फरवरी को संसद और उसके बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में पिछले साल महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को लेकर चिंता जाहिर की थी। चुनावों को लेकर मैंने पहले भी संदेह जताया। मैं यह नहीं कह रहा कि हर चुनाव में हर जगह धांधली होती है, पर महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। मैं छोटी-मोटी गड़बड़ियों की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संस्थानों पर कब्जा कर बड़े पैमाने पर की जा रही धांधलियों की बात कर रहा हूं। पहले भी चुनावों में कुछ अजीब तरह की चीजें होती थी, पर 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पूरी तरह विचित्र था। इसमें इतनी भयंकर धांधली हुई कि छुपाने की तमाम कोशिश के बाद भी गड़बड़ी के स्पष्ट सुबूत दिखते हैं। यदि गैर-अधिकारिक जानकारी छोड़ दें, तो भी आधिकारिक आंकड़ों से ही गड़बड़ियों का पूरा खेल सामने आ जाता है।
अंपायर तय करने वाली समिति में हेराफेरीः
पहले चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 से यह सुनिश्चित किया गया कि चुनाव आयुक्त प्रधानमंत्री और गृहमंत्री द्वारा 2-1 के बहुमत से चुने जाएं और चयन समिति के तीसरे सदस्य अर्थात नेता विपक्ष के वोट को अप्रभावी किया जा सके। यानी जिन लोगों को चुनाव लड़ना है, वही 'अंपायर' भी तय कर रहे हैं। सबसे पहले तो चयन समिति से देश के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर उनकी जगह कैबिनेट मंत्री को लाने का फैसला गले नहीं उतरता। आखिर चयन समिति से एक निष्पक्ष निर्णायक को हटाकर कोई अपनी पसंद का सदस्य क्यों लाना चाहेगा? जैसे ही आप यह सवाल खुद से पूछेंगे, आपको जवाब मिल जाएगा।
फर्जी वोटरों के साथ मतदाता सूची में वृद्धिः
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी। पांच साल बाद मई 2024 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 9.29 करोड़ हुई। इसके सिर्फ पांच माह बाद नवंबर, 2024 के विधानसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 9.70 करोड़ हो गई। यानी पांच साल में 31 लाख की मामूली वृद्धि, वहीं सिर्फ पांच माह में 41 लाख की जबरदस्त बढ़ोतरी। वोटरों की संख्या 9.70 करोड़ पहुंचना असामान्य है, क्योंकि सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र के वयस्कों की कुल आबादी 9.54 करोड़ है।
मतदान प्रतिशत बढ़ा-चढ़ाकर दिखानाः
ज्यादातर वोटरों और आब्जर्वर के लिए बाकी जगह की तरह महाराष्ट्र में मतदान बिल्कुल सामान्य था। लोगों ने पंक्तिबद्ध होकर मतदान किया और घर चले गए। जो शाम पांच बजे तक मतदान केंद्रों के अंदर पहुंच चुके थे, उन्हें मतदान करने की अनुमति थी। किसी मतदान केंद्र पर ज्यादा भीड़ या लंबी कतारों की खबर नहीं आई, पर चुनाव आयोग के अनुसार मतदान का दिन कहीं अधिक नाटकीय रहा। शाम पांच बजे तक मतदान प्रतिशत 58.22 था। मतदान खत्म होने के बाद भी मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ता रहा। अगली सुबह जो आखिरी आंकड़ा आया, वह 66.05 प्रतिशत था। यानी 7.83 प्रतिशत को भारी बढ़ोतरी हुई, जो करीब 76 लाख वोटों के बराबर है। वोट प्रतिशत में ऐसी बढ़ोतरी महाराष्ट्र के पहले के किसी भी विधानसभा चुनाव से कहीं ज्यादा थी।
इसे इससे समझा जा सकता है:
2009 के विधानसभा चुनाव में प्रोविजनल और अंतिम मतदान प्रतिशत के बीच केवल 0.50 प्रतिशत का अंतर था। 2014 में यह 1.08 प्रतिशत रहा। 2019 में 0.64 प्रतिशत, लेकिन 2024 में यह अंतर कई गुना बढ़ गया।
चुनिंदा जगहों पर फर्जी वोटिंगः
महाराष्ट्र में करीब एक लाख बूध हैं, पर अधिकतर नए मतदाता सिर्फ 12 हजार बूथों पर ही जोड़े गए। ये बूथ उन 85 विधानसभाओं के थे, जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन खराब था। मतलब हर बूथ में शाम पांच बजे के बाद औसतन 600 लोगों ने वोट डाला। यदि हरेक को वोट डालने में एक मिनट भी लगा, तो भी मतदान प्रक्रिया 10 घंटे तक और जारी रहनी चाहिए थी, पर ऐसा कहीं नहीं हुआ। सवाल है कि ये अतिरिक्त वोट आखिर डाले कैसे गए? स्पष्ट है कि इन 85 सीटों में से ज्यादातर पर राजग ने जीत दर्ज की। चुनाव आयोग ने मतदाताओं की इस बढ़ोतरी को 'युवाओं की भागीदारी का स्वागतयोग्य ट्रेंड' बताया, लेकिन यह 'ट्रेंड' सिर्फ उन्हीं 12 हजार बूथों तक सीमित रहा, बाकी 88 हजार बूथों पर नहीं। यदि यह मामला गंभीर नहीं होता तो इसे अच्छा चुटकुला कहकर हंसा जा सकता था। कामठी विधानसभा धांधली की अच्छी केस स्टडी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां 1.36 लाख वोट मिले, जबकि भाजपा को 1.19 लाख। 2024 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर लगभग उतने ही (1.34 लाख) वोट मिले, पर भाजपा के वोट अचानक बढ़कर 1.75 लाख हो गए। यानी 56 हजार वोटों की बढ़ोतरी। यह बढ़त उन 35 हजार नए वोटरों के कारण मिली, जिन्हें दोनों चुनावों के बीच कामठी में जोड़ा गया। लगता है, जिन लोगों ने लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाला और जो नए मतदाता जुड़े, उनमें से सब चुंबकीय ढंग से भाजपा की ओर ही खिंचते चले गए। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि वोट आकर्षित करने वाला चुंबक 'कमल' जैसा था। ऐसे ही तरीकों से भाजपा ने वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में जिन 149 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से 132 जीत लीं। यानी 89 प्रतिशत का स्ट्राइक रेट। यह किसी भी चुनाव में उसका सबसे बेहतर प्रदर्शन था, जबकि सिर्फ पांच माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का स्ट्राइक रेट मात्र 32 प्रतिशत था।
सुबूत छिपाने की कोशिशः
चुनाव आयोग ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब या तो चुप्पी से दिया या फिर आक्रामक रवैया अपनाकर। उसने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की फोटो सहित मतदाता सूची सार्वजनिक करने की मांग सीधे खारिज कर दी। इससे भी गंभीर बात यह रही कि विधानसभा चुनाव के एक माह बाद जब एक हाई कोर्ट ने आयोग को मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज साझा करने का निर्देश दिया, तो केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से सलाह के बाद निर्वाचन संचालन संबंधी नियम, 1961 की धारा 93(2) (ए) में बदलाव कर दिया। इसके जरिए सीसीटीवी और इलेक्ट्रानिक रिकार्ड्स तक पहुंच सीमित कर दी गई। यह बदलाव और इसका समय, दोनों ही बहुत कुछ कहते हैं। हाल में एक जैसे यानी डुप्लीकेट इंपिक नंबर सामने आने के बाद फर्जी मतदाताओं को लेकर चिंताएं और गहरी हो गई हैं। हालांकि असली तस्वीर तो शायद इससे भी ज्यादा गंभीर है।
मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज लोकतंत्र को मजबूत करने के औजार हैं, न कि ताले में बंद रखने वाली सामग्री, खासकर तब, जब लोकतंत्र से खिलवाड़ में हो रहा हो। देश के लोगों को भरोसा दिलाया जाए कि किसी भी रिकार्ड को नष्ट नहीं किया गया और आगे भी नहीं किया जाएगा। अब तो यह भी संदेह है कि ऐसी धांधली कई वर्षों से चलती आ रही है। यदि रिकार्ड्स की गहराई से जांच की जाए तो न सिर्फ धोखाधड़ी के तरीके का पता चल सकता है, बल्कि यह भी कि उसमें किन-किन लोगों की भूमिका थी। दुख की बात यह है कि विपक्ष और जनता, दोनों को हर कदम पर इन रिकार्ड्स तक पहुंचने से रोका जा रहा है।
भले ही कोई 'टीम' मैच फिक्स करके 'खेल' जीत जाए, लेकिन इससे संस्थाओं की साख और जनता के भरोसे को हुए नुकसान को फिर से बहाल नहीं किया जा सकता है। मैच फिक्स किये गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं।
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