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गांव से संसद तक.....कुछ ऐसा रहा रामनाथ कोविंद का सफर

जिले के डेरापुर ब्लाक के एक छोटे से गांव परोख में एक ऐसे दीपक का जन्म हुआ जिसका बचपन अंधेरे में बीता। लेकिन अपने साहस और कार्य क्षमता के बल पर वह ऐसा चमका की पूरा देश उनको सलाम कर रहा है। यह शख्सियत है रामनाथ कोविंद की। जब वह पहली बार राज्य

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Published on: 21 July 2017 4:45 PM IST
गांव से संसद तक.....कुछ ऐसा रहा रामनाथ कोविंद का सफर
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सुमित शर्मा

कानपुर: जिले के डेरापुर ब्लाक के एक छोटे से गांव परोख में एक ऐसे दीपक का जन्म हुआ जिसका बचपन अंधेरे में बीता। लेकिन अपने साहस और कार्य क्षमता के बल पर वह ऐसा चमका की पूरा देश उनको सलाम कर रहा है। यह शख्सियत है रामनाथ कोविंद की। जब वह पहली बार राज्यसभा सांसद बनकर आए तो ग्रामीणों ने उन्हें सिक्के से तौलने का फैसला किया। आसपास के गांवों से सिक्के जमा किये गए। लेकिन कोविंद ने खुद को सिक्के से नहीं तुलवाया बल्कि यह सिक्के उन्होंने गरीब लड़कियों की शादी के लिए दान कर दिए।

रामनाथ कोविंद के पिता मैकूलाल, पत्नी फूलमती के साथ मिट्टी के घर में छप्पर डाल कर रहते थे। परिवार में पांच बेटे मोहन लाल, शिव बालक राम, रामस्वरूप, प्यारे लाल, रामनाथ और दो बेटियां पार्वती व गुमता थीं। जीवन यापन के लिए एक छप्पर के नीचे परचून की दुकान थी। मैकूलाल पूरी तरह से भूमिहीन थे। इनके पास एक बीघा भी जमीन नहीं थी। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे तो उस दुकान से पूरे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। बड़े बेटे मोहन लाल को चरखे से बने हुए कपड़े बाजार में बेचने के काम में लगाया। मैकूलाल एक धोती पहने थे और उसी को ओढ़ते थे और 24 घन्टे राम-राम का जाप किया करते थे।

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रिटायर्ड बीडीओ भोले शंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि उस समय जमींदारों का राज था। उन्होंने बताया कि परोख ग्राम सभा है इसमें 5 मजरे- सिन्निपुर, धुकलपुर, मल्हन पुरवा, निर्मल का पुरवा ,पंडित पुरवा और नारायण पुरवा आते हैं। परोख की बात की जाये तो यहां की आबादी लगभग 10 हजार है। जिसमें ठाकुर व ब्राह्मण सबसे ज्यादा हैं। इसके बाद पिछड़ी जाति के लोग हैं। उन्होंने बताया कि रामनाथ कोविंद ने गांव के प्राइमरी स्कूल में 5वीं तक पढाई की और उसके बाद छह किलोमीटर दूर खानपुर गांव के स्कूल से 8वीं तक की शिक्षा प्राप्त की।

कानपुर से उन्होंने इंटर, बीए और एलएलबी किया और फिर वकालत करने दिल्ली चले गए। वकालत के दौरान उनकी मुलाकर मोरारजी देसाई से हुई और वह उनके पीए बन गए। इसके बाद उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के समय में उनका काम काज भी देखा। रामनाथ ने भोगनीपुर विधानसभा से चुनाव भी लड़ा था लेकिन उनको सफलता नहीं मिली। इसके बाद वह राज्य सभा सांसद बन गए।

रामनाथ के चचेरे भाई अनिल के मुताबिक वह हमेशा गांव के लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। जब से उनका नाम राष्ट्रपति के लिए घोषित हुआ है गांव में 24 घंटे बिजली आने लगी है। एक हास्पिटल भी पास कराया है।

बाबा से रोजगार की आस

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से परोख समेत पूरे कानपुर देहात को बहुत आशाएं हैं। डेरापुर बहुत ही पिछड़ा इलाका है यहां की उबड़ खाबड़ भौगोलिक स्थिति इस बात को दर्शाती है। परोख समेत सैकड़ों गांव के लोग खेती पर निर्भर हैं। यदि फसल चौपट हुई तो लोगों को संकट का सामना करना पड़ता है।

ज्यादातर युवा रोजगार नहीं होने की वजह से दूसरे शहरों में जाकर नौकरी करते हैं। परोख गांव रामनाथ कोविंद को बाबा कहता है और अब युवाओं को बाबा से बहुत आशा है। उनका मानना है कि अब बाबा हमारे गांव के विकास के साथ - साथ हमारे लिए कोई ऐसा प्लांट भी लगवाने की सिफारिश करेंगे, जिससे युवाओं को बाहर नहीं जाना पड़े।

परोख गांव के वीरेंदर, नितेश पाल, हरिकेश और निहाल ने बताया कि बाबा राष्ट्रपति बनने के बाद जब गांव आयेंगे तो हम सभी उनके सामने अपनी बात रखेंगे। बाबा से कहेंगे कि यहां एक ऐसा प्लांट लगवा दीजिये जिससे गांव के युवा यहीं पर रहें। खेती भी देखें और प्लांट में नौकरी भी करें ताकि हमें दूसरे राज्यों व शहरों में नौकरी के लिए नहीं जाना पड़े। हमें पूरा विश्वास है कि बाबा हमारी फरियाद जरूर सुनेंगे। हमारे गांव के आसपास एक भी डिग्री कालेज नहीं है, हमें ३० किमी दूर अकबरपुर जाना पड़ता है। इसके लिए हम बाबा से कहेंगे।

भाभी को मां कहकर पुकारते हैं रामनाथ

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का बचपन कांटों से भरा रहा। जब वह मात्र दो साल के थे तभी घर में आग लगने से उनकी मां की मृत्यु हो गयी। घर का पूरा सामान जलकर राख हो गया था। जिस परचून की दुकान से खर्च चलता था वह भी जलकर बर्बाद हो गई। रामनाथ की बड़ी भाभी विद्या देवी ने उन्हें बेटे की तरह पाला था। इसी कारण रामनाथ बड़ी भाभी को मां कह कर पुकारते थे।

गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि जब मैकूलाल के घर में आग लगी तो रामनाथ की मां फूलमती किसी घड़े में रखे पैसे निकालने के लिये गई, लेकिन आग की चपेट में आने के कारण वह बाहर नहीं निकल पाई। जब आग बुझाई गई और शव मिला तो उनका एक हाथ उस घड़े में था।

सब कुछ बर्बाद होने के बाद रामनाथ के बड़े भाई मोहन लाल सभी छोटे भाइयों को लेकर झींझक चले गए और वहां पर किराये का कमरा लेकर रहने लगे। जब मोहन की शादी हुई तो उनकी पत्नी विद्या देवी ने रामनाथ को बेटे की तरह पाला और रामनाथ उन्हें मां कह कर पुकारने लगे। कुछ बड़े होने पर रामनाथ वापस परोख चले गये और पिता के साथ रहकर गांव में ही पढ़ाई करने लगे।

आगे की स्लाइड में पढ़ें कोवोंद के राष्ट्रपति बनने के बाद कैसे मना जश्न...

कोविंद के गांव में जमकर मना जश्न

कानपुर: रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा के बाद उनके गांव में जोरदार जश्न शुरू हो गया। गांव में चारों ओर कोविंद की जय-जयकार के नारे गूंजने लगे। कानपुर देहात के झींझक के मुख्य बाजार से लेकर कोविंद के गांव परौख की चौपालों तक भव्य नजारा देखने को मिला। लोगों ने दिल खोलकर मिठाइयां बांटीं। बाजार में कोविंद के बड़े भाई प्यारेलाल कोविंद की कपड़े की दुकान है। यहां दूसरे व्यापारियों ने कोविंद के भाई को जीत की बधाई दी।

ढोल व डीजे पर लोग खूब नाचे

कोविंद के घर सुबह से लोगों का तांता लग गया। घर के आंगन में एक बड़ा सा टीवी लगाया गया था जिस पर लोग राष्ट्रपति चुनाव की खबरें देख रहे थे। उसके बगल में ही डीजे बज रहा था। ढोल बजाकर भी लोगों ने जीत का जश्न मनाया। राष्ट्रपति चुनाव की काउंटिंग शुरू होते ही लोग जश्न मनाने में जुट गए क्योंकि लोगों जीत पक्की होने का यकीन था। कोविंद की जीत के लिए गांव में एक विशेष हवन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यहां लोगों ने यज्ञ में आहुतियों के साथ कोविंद की जीत की प्रार्थना की। गांव में ढोल पर झूमते युवा और गांव के छोटे बच्चे कोविंद की जीत के नारे लगा रहे थे। जश्न मनाने में महिलाएं भी पीछे नहीं रहीं। महिलाओं ने भी ढोल पर नृत्य किया और गाना गाकर खुशियां मनाईं।

दयानंद विहार में छूटे पटाखे,सफाई शुरू

कानपुर नगर में कोविंद के घर दयानंद विहार में जमकर जीत का जश्न मनाया गया। दयानंद विहार की गलियां संवारी जा रही हैं। कूड़े के ढेर हटा दिए गए हैं। चोक नालियां साफ करा दी गई हैं। यहां बिजली के झूलते तार कसे जा रहे हैं और टूटे खंभे भी बदलने का काम शुरू हो गया है। दयानंद विहार में पटाखे छोड़े गए और मिठाइयां बांटी गयी। मोहल्ले के लोग एक-दूसरे को एडवांस में जीत की बधाई देते दिखाई पड़े। कोविंद ने कुछ समय पहले दयानंद विहार कालोनी में चार कमरों वाला मकान खरीदा था। फिलहाल इसमें कोई नहीं रहता। घर में ताला लगा है और पीछे केयरटेकर रहता है। दयानंद विहार कालोनी की सूरत भी बदलनी शुरू हो गई। नगर निगम और केस्को के अफसर सुबह ही कालोनी पहुंच गए। नगर निगम ने कालोनी के नुक्कड़ के कूड़ाघर को साफ कर दिया है। गलियों में विशेष सफाई कराई गई। नालियां दुरुस्त करा दी गई हैं। सडक़ों के गड्ढे भर दिए गए हैं। सुबह से ही सफाई कर्मचारियों की फौज लगी हुई थी। कालोनी की स्ट्रीट लाइटें बदल दी गई हैं।



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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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