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पूरी दुनिया में पहली बार हुआ ऐसा: भारत के आगे झुका ये देश! पाकिस्तान का झूठ हुआ बेनकाब, थरूर ने रच दिया इतिहास!
Shashi Tharoor delegation: इस पूरी यात्रा की सबसे बड़ी और चौंकाने वाली घटना कोलंबिया में सामने आई। पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान झूठी कहानियों और बनावटी तस्वीरों के जरिये अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने की कोशिश की थी। कोलंबिया ने भी जल्दबाज़ी में एक बयान जारी कर दिया, जिसमें पाकिस्तानी "नागरिकों की मौत" पर संवेदना जताई गई थी।
Shashi Tharoor delegation: जब कोई नेता विदेश जाकर देश की बात इस मजबूती से रखे कि दूसरी सरकारें अपने बयान वापस ले लें—तो वो दौरा सिर्फ कूटनीतिक नहीं, ऐतिहासिक कहलाता है। भारत की संसद से चुने गए कुछ चुनिंदा सांसदों की पांच देशों की यात्रा, जो दुनिया की नज़रों में 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर भारत की सच्चाई और मजबूरी को बताने निकले थे, अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कूटनीति का चमकता प्रमाण बन गई है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व में गई यह ऑल पार्टी डेलीगेशन (सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल) अपने मिशन में सिर्फ सफल नहीं रहा, बल्कि उस भ्रमजाल को भी तोड़ने में कामयाब रहा, जिसे पाकिस्तान ने ‘पीड़ित’ बनकर रचा था। थरूर के शब्दों में, "हम बेहद संतुष्ट हैं कि पांचों देशों में हमारी बात को सम्मान मिला, और पाकिस्तान के झूठे नैरेटिव को पूरी तरह खारिज किया गया।"
पहली बार किसी देश ने आधिकारिक बयान वापस लिया
इस पूरी यात्रा की सबसे बड़ी और चौंकाने वाली घटना कोलंबिया में सामने आई। पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान झूठी कहानियों और बनावटी तस्वीरों के जरिये अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने की कोशिश की थी। कोलंबिया ने भी जल्दबाज़ी में एक बयान जारी कर दिया, जिसमें पाकिस्तानी "नागरिकों की मौत" पर संवेदना जताई गई थी। लेकिन जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सच्चाई बताई—कि यह कार्रवाई पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों के जवाब में थी, और भारत ने जितना संयम दिखाया वह कोई और देश नहीं दिखाता—तो कोलंबिया सरकार को अपनी भूल का एहसास हुआ। शशि थरूर के मुताबिक, "बयान हटाया गया, कार्यवाहक विदेश मंत्री ने खुद मीडिया के सामने आकर भारत के पक्ष का समर्थन किया। ये भारत की कूटनीतिक जीत थी।"
पांच देशों की यात्रा, पांच बड़े संदेश
शशि थरूर, जो खुद एक पूर्व संयुक्त राष्ट्र अधिकारी और ग्लोबल मामलों के जानकार माने जाते हैं, इस प्रतिनिधिमंडल के साथ पांच देशों—कोलंबिया, सर्बिया, केन्या, मंगोलिया और थाईलैंड—की यात्रा पर थे। सभी मुलाक़ातें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और संसद सदस्यों जैसे उच्च अधिकारियों से हुईं। हर देश में भारत की बात को गंभीरता से सुना गया। थरूर कहते हैं, "हर जगह हमें उच्च स्तर पर सहयोग मिला, और ये दर्शाता है कि भारत की बात आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर कितनी गंभीरता से सुनी जाती है। और इस बार यह संदेश सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि पूरे भारत की ओर से था।"
भारत की ‘संयुक्त ताकत’ बनी पहचान
इस पूरे अभियान में सबसे बड़ी बात यह रही कि सरकार और विपक्ष एकसाथ थे। संसद में भले ही तीखी बहसें होती हों, लेकिन देश की संप्रभुता और सम्मान की बात हो तो भारत एकजुट है—यही संदेश गया है। थरूर ने साफ कहा, "हम वहां भारत का चेहरा बनकर गए थे, न कि किसी पार्टी का।" भारत की संसद से भेजे गए इन सांसदों का संदेश था साफ—‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत की मजबूरी थी, और उसने आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप जवाब दिया।
सोशल मीडिया पर भी दिखा असर, पाकिस्तानी नैरेटिव हुआ ध्वस्त
इस प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के बाद से सोशल मीडिया पर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों और थिंक टैंक्स के स्वर भी बदल गए हैं। पहले जहां कुछ विदेशी मीडिया पाकिस्तानी प्रचार में बहक गए थे, अब वे भारतीय संयम और रणनीतिक दृष्टिकोण की प्रशंसा कर रहे हैं। 'थिंक टैंक फॉर ग्लोबल पॉलिसी' की हालिया रिपोर्ट में इस दौरे को "रेयर डिप्लोमैटिक मास्टरस्टोक" कहा गया है।
थरूर का बयान—“थक गए हैं, मगर खुश हैं”
थरूर ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “हम थक जरूर गए हैं, लेकिन ये थकावट संतोषजनक है। हमें जो काम सौंपा गया था, हमने उसे पूरी शिद्दत से निभाया। और नतीजे हमारे सामने हैं। भारत की बात अब सिर्फ सुनी नहीं जा रही, मानी भी जा रही है।” इस दौरे से एक बात बिल्कुल साफ हो गई—भारत अब अपने मुद्दों को लेकर सिर्फ घरेलू मंचों तक सीमित नहीं रहता। जब बात देश की छवि की हो, तो भारत विदेशों में भी अपने तथ्यों को मजबूती से रखता है और वहां भी वह सच्चाई का झंडा बुलंद करता है। शशि थरूर और उनके दल ने यह साबित कर दिया कि संसद के भीतर चाहे जितनी भी बहस हो, जब बात भारत की अस्मिता की हो—तो हर सांसद एक योद्धा है। और इस बार यह युद्ध शब्दों, तथ्यों और तर्कों का था—जिसे भारत ने पूरी गरिमा और शक्ति के साथ जीत लिया। अब सवाल उठता है—क्या पाकिस्तान को भी समझ आ गया कि भारत अब सिर्फ सुनता नहीं, जवाब देना जानता है?
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