×

धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को मिला नया मुखिया

Newstrack
Published on: 22 Dec 2017 1:29 PM IST
धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को मिला नया मुखिया
X

दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: सिख धर्म की सर्वोच धार्मिक संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी ने 42वें अध्यक्ष के रूप में गोविंद सिंह लोंगोवाल को चुना है। इससे पहले एसजीपीसी के अध्यक्ष प्रो.कृपाल सिंह बंडूगर थे। उल्लेखनीय है कि गुरुद्वारों या इससे संबंधित कार्यों के प्रबंधों की देखरेख शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सदस्यों की ओर से की जाती है। एक तरह से एसजीपीसी सिख धर्म की संसद है जिसके सदस्यों का चुनाव अमृतधारी सिखों की ओर से मतदान के जरिए होता है। इस चुनाव प्रक्रिया में देशभर के अमृतधारी सिख मतदान करते हैं। मौजूदा समय में एसजीपीसी पर शिरोमणि अकाली दल बादल का कब्जा है। यानी एक तरह यह धाॢमक संस्था गैर राजनीतिक होते हुए भी राजनीतिक है। इस पर प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक हस्तक्षेप भी होता है।

191 सदस्यों की होती है एसजीपीसी

एसजीपीसी के 191 सदस्य होते हैं। इसमें कार्यकारिणी कमेटी में 11 सदस्य होते हैं। इसके अलावा एक अध्यक्ष, एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष, एक कनिष्ठ उपाध्यक्ष और एक महासचिव होता है। 165 सदस्यों का चुनाव मतदान से किया जाता है जबकि 15 सदस्य मनोनीत होते हैं। मौजूदा समय में एसजीपीसी के 170 सदस्य हैं। मनोनीत सदस्यों में हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र से एक-एक सदस्य और नई दिल्ली से तीन सदस्य होते हैं। सिख धर्म के पांचों तख्त साहिबों के जत्थेदार भी इस कमेटी के सदस्य होते हैं, लेकिन वे मतदान नहीं करते।

ये भी पढ़ें : कांग्रेस के लिए लकी RaGa, ‘2जी’ के बाद अब ‘आदर्श’ मामले में राहत

छह साल से नहीं हुए हैं एसजीपीसी के चुनाव

2011 से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव नहीं हुए हैं। सहजधारियों को वोट का अधिकार न देने को लेकर यह विवाद अदालत में रहा, जिसके चलते चुनाव नहीं सके। अब संसद में सहजधारियों को चुनावों में मतदान का अधिकार देने का दावा खत्म करते हए चुनावों के लिए राज्य व केंद्र सरकार किसी वक्त तारीख तय कर सकती है। नियमों के अनुसार हर वर्ष नवंबर में सामान्य बैठक आयोजित करनी होती है। बैठक में अध्यक्ष के साथ-साथ कार्यकारिणी के सदस्यों का भी चुनाव होता है।

अध्यक्ष के चुनाव से पहले थी गहमागहमी

एसजीपीसी अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पंथक मोर्चे पर भी काफी गहमागमी रही। एसजीपीसी के अध्यक्ष के चुनाव से पहले कुछ सदस्यों ने तत्कालीन अध्यक्ष प्रो.कृपाल सिंह बंडूगर के खिलाफ मैदान में आने का मन बना लिया था। यही नहीं शिरोमणि अकाली दल बादल की सहयोगी पार्टी भाजपा भी बंडूगर से नाराज चल रही थी। धाॢमक मुद्दों पर वह अकाली दल का बचाव करने में असफल रहे। वहीं दूसरी तरफ खालिस्तान की मांग का समर्थन करने पर अकीली दल की भाइवाल पार्टी भाजपा और आरएसएस भी बंडूगर से नाराज थी। एसजीपीसी चुनाव से पहले पूर्व मुखमंत्री प्रकाश सिंह बादल और शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने 11 जिलों से आए एसजीपीसी के सदस्यों के साथ बैठक की। शायद यह पहला ऐसा मौका था कि शिअद अध्यक्ष ने एसजीपीसी के सदस्यों के साथ बैठक कर उनकी राय जानी।

ये भी पढ़ें : भाजपा की कार्यसमिति में नहीं आया कोई राजनीतिक प्रस्ताव

कौन हैं गोविंद सिंह लोंगोवाल

मतदान से चुने गए एसजीपीसी के मौजूदा अध्यक्ष लोंगोवाल अकाली दल से चार बार विधायक रह चुके है। नरमपंथी के रूप में उनकी अलग पहचान है। बताया जाता है कि पहले वेे तबलावादक थे और 6 साल की उम्र से ही संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के साथ धार्मिक संगत में रहने लगे थे। 1985 वे पहली बार हलका धनौला से चुनाव लड़े और विजेता रहे। हालांकि दो बार उन्हें अपना विधानसभा क्षेत्र बदलने के कारण हार का भी मुंह देखना पड़ा, लेकिन वे कभी भी प्रकाश सिंह बादल के फैसले के खिलाफ नहीं गए और अपनी इसी उदार छवि के कारण वह बादल के करीबी बने रहे। 1997 में भी वह धनौला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधायक बने और पहली बार प्रकाश सिंह बादल के करीब आए। 2002 में भी वे यहीं से विधायक बने। 2012 में धूरी से चुनाव लड़े और कांग्रेस से हार गए। 2008 में बादल सरकार में लोंगोवाल सिंचाई मंत्री बने और 2015 में धूरी से उपचुनाव लड़े और जीत गए। इसके 2017 में सुनाव से चुनाव लड़े और यहां से वे चुुनाव हार गए।

डेढ़ अरब है एसजीपीसी का सालाना बजट

सिख धर्म की सर्वोच्च संस्था एसजीपीसी का गठन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए 15 नवंबर 1920 को हुआ था। एसजीपीसी गुरुद्वारों के रखरखाव, धर्म प्रचार, सिखों के मसलों, शिक्षा, मेडिकल, आपदा और सर्वधर्म की सेवा आदि के क्षेत्र में बड़े स्तर पर कार्य करती है। 275 गुरुद्वारों का प्रबंध देखने वाली कमेटी के बजट की बात करें तो इसका बजट वर्ष 2017-18 में एक अरब, 48 करोड़, 64 लाख रुपये था यानी प्रदेश सरकार की यह इकलौती ऐसी धार्मिक संस्था है जिसका बजट इतना बड़ा है।

Newstrack

Newstrack

Next Story