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धमकियों की भभकी, चीन के लिए आसान नहीं है भारत से जंग

चीन और भारत के बीच विवाद का मुद्दा बने डोकलाम विवाद का जल्द हल निकलता नहीं दिख रहा है। चीन की ओर से भारत को लगभग रोज जंग की धमकी दी जा रही है और भारत भी इन धमकियों का जवाब दे रहा है। चीन भारत को लगातार धमकियां भले दे रहा हो मगर उसका भी कड़ा रुख पहले से बदला है। भारत के कड़े रुख के बाद चीन ने भी माना है कि इस इलाके को लेकर भूटान से विवाद है।

tiwarishalini
Published on: 11 Aug 2017 7:02 PM IST
धमकियों की भभकी, चीन के लिए आसान नहीं है भारत से जंग
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चीन और भारत के बीच विवाद का मुद्दा बने डोकलाम विवाद का जल्द हल निकलता नहीं दिख रहा है। चीन की ओर से भारत को लगभग रोज जंग की धमकी दी जा रही है और भारत भी इन धमकियों का जवाब दे रहा है। चीन भारत को लगातार धमकियां भले दे रहा हो मगर उसका भी कड़ा रुख पहले से बदला है। भारत के कड़े रुख के बाद चीन ने भी माना है कि इस इलाके को लेकर भूटान से विवाद है।

हालांकि चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स व चाइना डेली की ओर भारत को फिर ताजा धमकी दी गयी है कि यदि भारत ने डोकलाम से सेनाएं न हटाईं तो दोनों देशों में जंग होकर रहेगी। इसे किसी सूरत में टाला नहीं जा सकता। चीन ने भारतीय पत्रकारों को अपने एक सैन्य केन्द्र का दौरा कराकर अपनी ताकत दिखाने का भी प्रयास किया मगर सच्चाई यह भी है कि चीन धमकियां चाहे जितनी भी दे, वह इस सच्चाई को जानता है कि भारत से जंग लडऩा उतना आसान नहीं और उसे भी इस जंग का भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। अंशुमान तिवारी का विश्लेषण।

चीन तमाम धमकियों के बावजूद युद्ध से हिचक रहा है इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं। जंग की स्थिति में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन को महंगी कीमत चुकानी होगी। चीन भारत को हर साल करीब चार लाख करोड़ का निर्यात करता है और इस तरह भारत उसके लिए बड़ा बाजार है। जंग की सूरत में चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी भारी झटका लगेगा। यही कारण है कि जानकारों का मानना है कि चीन धमकियां चाहे जितनी दे दे मगर वह जंग की स्थिति से अवश्य बचना चाहेगा। पिछले वर्ष भारत ने चीन से दूध, दूध से बने उत्पादों और कुछ मोबाइल फोन समेत कुछ अन्य उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।

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ये उत्पाद निम्नस्तरीय और सुरक्षा मानकों की कसौटी पर खरे नहीं पाए गए। भारत ने पिछले साल जनवरी में चीनी खिलौने के आयात पर प्रतिबंध लगाया था। दुनिया के कई अन्य देशों में भी चीन के घटिया उत्पादों पर प्रतिबंध लगना शुरू हो गया है। अमेरिका और यूरोप में भी चीन के उत्पादों की बिक्री घटी है। पिछली दीपावली में भारत में ही चीन के उत्पादों की बिक्री 60 प्रतिशत गिरी। अपने उत्पादों की गिरती बिक्री से चीन परेशान है। भारत में सोशल मीडिया में चीन के उत्पादों के खिलाफ जबर्दस्त अभियान चल रहा है। इस अभियान का भी चीनी सामानों की बिक्री पर भारी असर पड़ा है।

चीनी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बुरा असर

चीन के सामान की जबर्दस्त बिक्री का कारण उनका सस्ता होना है। सस्ता होने की वजह से ही उनकी मांग ज्यादा है मगर अब इसका भी फायदा मिलता नहीं दिख रहा है। मांग घटने से चीन अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो रही है। चीन अपने उत्पादों को सस्ता बनाने के लिए पहले ही मुद्रा का अवमूल्यन कर चुका है मगर ऐसा बार-बार ऐसा करना संभव नहीं है। प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए चीन के कारोबारी पहले ही अपने उत्पादों की कीमत कम कर चुके हैं मगर मजदूरी बढऩे और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अब और कटौती संभव नहीं दिखती। अपने उत्पादों के लिए संभावनाएं बनाए रखने के लिए भी चीन जंग से पीछे हट रहा है। उसे पता है कि जंग का उसके उत्पादों की बिक्री पर विश्वव्यापी दीर्घगामी असर पड़ेगा।

चीन ने फिर दी जंग की धमकी

चीन ने फिर भारत को खुले शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि उसने डोकलाम से अपनी सेनाएं नहीं हटाई तो दोनों देशों में युद्ध होकर रहेगा। चीन के सरकारी अखबार ने ग्लोबल टाइम्स ने वीडियो संदेश के जरिये जारी इस चेतावनी को आखिरी चेतावनी बताया है। अखबार के संपादक ने कहा कि भारत सबसे बुरे वक्त की तैयारी कर रहा है। अखबार का यह भी कहना है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां प्रधानमंत्री मोदी को सच नहीं बता रही हैं। उन्हें अंधेरे में रखा जा रहा है। अखबार के संपादक हू जिजिन ने 1962 की लड़ाई का जिक्र करते हुए कहा कि जो नादानी उस समय नेहरू ने की थी वही नादानी आज मोदी कर रहे हैं। अखबार की ओर से पहली बार मोदी का नाम लेते हुए जंग की धमकी दी गयी है।

भारतीय एजेंसियों से अपनी क्षमताओं को परखने को भी कहा गया है। जिजिन ने कहा कि यदि भारत चीन की चेतावनी की अनदेखी करता रहा तो युद्ध अवश्यमभावी है। 1962 में नेहरू ने भी सोचा था कि चीन हमला नहीं करेगा मगर चीन ने जंग छेड़ दी। भारत आज भी वैसी ही नादानी दिखा रहा है। चाइना डेली ने भी कहा कि भारत-चीन के बीच सैन्य संघर्ष की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। भारत को समझदारी दिखाते हुए डोकलाम से अपने सैनिक वापस बुला लेने चाहिए।

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पत्रकारों को सैन्य केन्द्र का दौरा कराया

इस बीच डोकलाम विवाद पर चीन का डराने-धमकाने का रवैया जारी है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सीनियर कर्नल ली ने कहा कि भारत अगर जंग से बचना चाहता है तो उसे डोकलाम से फौरन अपने सैनिक वापस बुला लेना चाहिए। ली ने यह बात उन भारतीय पत्रकारों से कही, जिन्हें चीनी सरकार ने आमंत्रित किया है। भारतीय पत्रकारों को बुलाकर चीन ने इस मौके का इस्तेमाल अपने प्रोपगैंडा के लिए किया। कर्नल ली ने कहा कि डोकलाम में भारतीय सेना की कार्रवाई चीन के इलाके में घुसपैठ है। हम अपने इलाके की सुरक्षा के लिए कदम जरूर उठाएंगे।

इसके पहले चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि डोकलाम के अलावा भारतीय इलाके में अभी कई सैनिक मौजूद हैं। चीन का एक्शन इस बात को देखकर तय होगा कि भारत क्या कर रहा है। जरूरत पडऩे पर हम अपनी तरफ से कदम उठाएंगे। भारतीय पत्रकारों को बीजिंग के बाहरी इलाके में स्थित गैरीसन इलाके में ले जाया गया। यहंा भारतीय पत्रकारों को चीन के युद्ध कौशल के बारे में भी बताया गया। भारतीय पत्रकारों को पीएलए की शार्प शूटिंग स्किल्स, दुश्मनों को बंदी बनाना और आतंकवाद से मुकाबले का तरीका दिखाया गया। गैरीसन पीएलए का सबसे पुराना ट्रेनिंग सेंटर है। यहंा फिलहाल 11 हजार चीनी सैनिक ट्रेनिंग ले रहे हैं। हालांकि, ली ने साफ कर दिया कि चीनी सैनिकों की तैयारियों का डोकलाम विवाद से कोई ताल्लुक नहीं है।

चीन बोला-संयम की भी एक सीमा

डोकलाम विवाद पर कड़ा रुख अपनाते हुए चीन ने कहा कि अभी तक उसने सद्भावना का रवैया अपनाया है, लेकिन उसके संयम की भी एक सीमा है और भारत को इस मामले में अपना भ्रम छोड़ देना चाहिए। चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रेन गुआकियांग ने एक बयान में भारत से इस स्थिति से जल्द से जल्द और सही तरीके से निपटने को कहा ताकि सीमा क्षेत्र में शांति बहाल की जा सके। उन्होंने कहा कि जबसे यह सीमा विवाद पैदा हुआ है, चीन ने बेहद सद्भाव दिखाया है। चीन ने भारत से कूटनीतिक रास्तों के जरिए संपर्क बनाने की कोशिश की है ताकि इस मसले को सुलझाया जा सके।

चीनी सशस्त्र बलों ने भी द्विपक्षीय रिश्तों और क्षेत्रीय शांति-स्थिरता को ध्यान में रखते हुए हद से ज्यादा संयम बरता है। चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि भारत इस मामले में देरी करने के अपने भ्रम को छोड़ दे। किसी भी देश को चीन की सेना के शांति को बनाए रखने और राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करने की क्षमता को कम करके नहीं आंकना चाहिए। रेन ने कहा कि चीन की सेना देश की संप्रभुता और सुरक्षा हितों की किसी भी कीमत पर रक्षा करेगी।

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ब्रिक्स सम्मेलन से ठोस सहयोग की उम्मीद

यह अनायास नहीं है कि एक ओर तो चीन डोकलाम विवाद को लेकर धमकियां देता है तो दूसरी ओर अगले महीने देश के शियामेन शहर में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर उम्मीद भी जताता है। चीन ने विशेष रूप से भारत से ठोस सहयोग की उम्मीद जताई है। सम्मेलन में रूस,भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा लेंगे। वैसे अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि सम्मेलन के दौरान मोदी व जिनपिंग की व्यक्तिगत मुलाकात होगी कि नहीं। दोनों की मुलाकात को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।

सम्मेलन को लेकर हुई एक समीक्षा बैठक में कहा गया कि इसमें अर्थव्यवस्था की मजबूती, वैश्विक शासन में संगठन की भूमिका और वैश्वीकरण में आ रही दिक्कतों पर चर्चा होगी। बैठक में फूदान विश्वविद्यालय में ब्रिक्स अध्ययन केन्द्र के निदेशक शेन यी ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि ब्रिक्स सम्मेलन अधिक व्यवहारिक एवं ठोस सहयोग पेश करेगा और इससे सदस्य देशों के बीच विश्वास व भरोसा बढ़ेगा।

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन को घेरा

दक्षिण चीन सागर पर चीन के रुख की तीखी आलोचना से बच रहे आसियान देशों के असमंजस के बावजूद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन की निंदा की है। इन तीनों देशों ने दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीति को अस्वीकार कर दिया है। वहंा पर नए द्वीप बनाकर उन पर सैन्य तैनाती की भी निंदा की है। मनीला में 27 देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में तीनों देशों ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख दिखाया। सम्मेलन में आसियान के सदस्य देशों ने भी हिस्सा लिया मगर उनके रुख में असमंजस दिखा।

आसियान में शामिल वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रूनेई और ताइवान दक्षिण चीन सागर विवाद में सीधे तौर पर शामिल हैं, लेकिन कंबोडिया ने चीन की पक्ष लिया। हाल के वर्षों में सागर विवाद के जोर पकडऩे पर चीन ने आसियान में फूट पैदा कर दी। कुछ देशों से आॢथक संबंध मजबूत करके चीन ने छोटे देशों वाले इस इलाके को एकजुट नहीं होने दिया। सही बात तो यह है कि 150 खरब डॉलर के व्यापार वाले इस समुद्री मार्ग पर चीन कब्जा करना चाहता है। इस समुद्री क्षेत्र के नीचे गैस और तेल के भंडार भी होने का पता चला है। इसके चलते चीन ने वहंा पर कृत्रिम द्वीप बनाकर सैन्य तैनाती कर दी है। तमाम देशों की निंदा के बावजूद चीन यह इलाका छोडऩे को तैयार नहीं है।

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चीन के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है भारत

इस बीच एक शीर्ष अमेरिकी चीनी विशेषज्ञ बोनी एस ग्लेसर का कहना है कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनङ्क्षफग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं, जो भारतीय हितों के लिए खड़े रहने और क्षेत्र में चीन को रोकने के इच्छुक देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। सेन्टर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) की ग्लेसर ने साक्षात्कार में कहा मोदी चीन को रोकने के इच्छुक अन्य देशों खासतौर से अमेरिका और जापान के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं और चीन इसी को लेकर चिंतित है।

ग्लेसर का मानना है कि चीन को भारत के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों से कुछ लाभ होता नजर नहीं आ रहा है। ग्लेसर के मुताबिक पहले चिनफिंग को उम्मीद थी कि भारत ऐसी नीति अपनाएगा जो चीनी हितों को चुनौती नहीं देगी, लेकिन दक्षिण चीन सागर में उसकी गतिविधियां जारी रहने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। ग्लेसर ने कहा कि हिन्द महासागर और अन्य समुद्री क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच मतभेद हैं। चीन को भारत के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों से लाभ होता नहीं दिख रहा है। ग्लेसर के मुताबिक चीन भारत को सबसे बड़ी उभरती शक्ति के रूप में देखता है जो दीर्घावधि में उसके लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है।

जंग के हालात बनाने के लिए मोदी को घेरा

चीन ने मोदी सरकार पर फिर निशाना साधा है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि मोदी सरकार की नीतियां ही भारत को जंग की ओर धकेल रही हैं। अखबार के मुताबिक डोकलाम में भारतीय सेना पीछे नहीं हटी तो युद्ध तय है और जंग होने पर नतीजा जगजाहिर है। चीनी अखबार ने दंभ भरते हुए अपनी सेना को 50 साल में सबसे मजबूत बताया है। अखबार के संपादकीय में लिखा गया है कि मोदी सरकार अपने लोगों से झूठ बोल रही है कि 2017 वाला भारत 1962 से अलग है। यदि मोदी सरकार चीन से दो-दो हाथ करना चाहती है तो उसे लोगों को सच्चाई बतानी चाहिए।

अखबार के मुताबिक चीनी सेना डोकलाम में भारतीय सेना के खिलाफ दो हफ्ते में छोटा ऑपरेशन चला सकती है। चीन सरकार इस ऑपरेशन से पहले भारत सरकार को जानकारी भी देगी। भारत भले शांति बरतने की अपील कर रहा हो, लेकिन चीनी मीडिया में भडक़ाऊ लेखों की झड़ी लगी है। अखबार में एक लेख में रिसर्चर ने चीन की ओर से तिब्बत में किए सैन्य अभ्यास का भी जिक्र किया गया। रिसर्चर ने लिखा कि भारत ने हाल के सालों में चीन को लेकर अपरिपक्व नीति अपनाई है। उसके विकास की रफ्तार चीन के स्तर की नहीं है। अखबार ने कहा कि पीएलए ने सैन्य टकराव के लिए पर्याप्त तैयारी की है। युद्ध की स्थिति में परिणाम जगजाहिर है। मोदी सरकार को पीएलए की ताकत के बारे में पता होना चाहिए।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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