सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद कोर्ट की रेप के मामले पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर जताई नाराजगी,कहा क्यों करते हैं ऐसी टिप्पणी?

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के जजों से रेप जैसे गंभीर मामले में आपत्तिजनक टिप्पणी करने से बचने को कहा है उन्होंने कहा कि आरोपी को जज जमानत तो दे दे लेकिन ऐसी टिप्पणी क्यों करते हैं?

Shweta Srivastava
Published on: 15 April 2025 5:34 PM IST (Updated on: 15 April 2025 5:45 PM IST)
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Supreme Court (Image Credit-Social Media)

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद कोर्ट की रेप के मामले को लेकर एक और टिप्पणी पर नाराजगी जताई है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि आरोपी को जज जमानत तो दे दे लेकिन ऐसी टिप्पणी क्यों करते हैं? ऐसे मामले में जज को अधिक सावधान रहने की जरूरत है। इसके पहले भी रेप जैसे गंभीर मामले में हाईकोर्ट के जज के इस तरह की बात पर आपत्ति जताई गयी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर जताई नाराजगी

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज की बलात्कार मामलों में की गई टिप्पणियों को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि आरोपी को जमानत देना तो अलग बात है लेकिन ऐसी टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया को काफी प्रभावित करती है। इसपर सीजी तुषार मेहता ने कहा कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। एक आम आदमी यह समझेगा कि जज कानूनी बारीकियों से परिचित नहीं है।

क्या कहा था जज ने

दरअसल रेप की कोशिश के मामले में टिप्पणी के बाद हाईकोर्ट के जज ने एक टिप्पणी की थी जिसमे उन्होंने कहा था कि महिला ने खुद मुसीबत को आमंत्रित किया और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार भी है। हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने 11 मार्च को एक आरोपी को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि भले ही जमानत देना न्यायाधीश का विवेकाधिकार है जो प्रत्येक मामले के तथ्यों पर गंभीरता निर्भर करता है। लेकिन शिकायतकर्ता के खिलाफ इस तरह की अनुचित टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए।

इसके पहले भी जताई थी नाराजगी

आपको बता दें कि इसके पहले भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा था ने कि स्तनों को छूना और पायजामी के नाड़े को तोड़ना रेप या रेप की कोशिश के दायरे में नहीं आता.उन्होंने ये टिप्पणी यूपी के कासगंज जिले के पॉक्सो के एक केस की सुनवाई के दौरान की थी। इस मामले में अदालत ने कहा था कि कि ऐसा अपराध यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है जिसके लिए कम सजा का प्रावधान है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और फैसले पर रोक लगा दी। पीड़िता की माँ ने हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती दी।

बाल तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट का एक्शन प्लान, राज्यों को दिए कड़े निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाल तस्करी की रोकथाम और उससे जुड़े मामलों के निपटारे के लिए राज्यों को व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे निचली अदालतों को बाल तस्करी के मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी करने और रोजाना सुनवाई के आदेश जारी करें। अदालत ने कहा, "राज्य सरकारें हमारी विस्तृत सिफारिशों और भारतीय संस्थान की रिपोर्ट पर विचार करें और जल्द से जल्द उसे लागू करें।" सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि दिशा-निर्देशों के पालन में किसी भी प्रकार की ढिलाई को अदालत की अवमानना माना जाएगा।

एक अहम टिप्पणी में अदालत ने कहा कि अगर किसी अस्पताल से नवजात की चोरी होती है, तो पहला कदम उस अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना होना चाहिए। ये आदेश उत्तर प्रदेश के एक बाल तस्करी मामले में आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए।

Shivam Srivastava

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