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राम जन्मभूमि विवाद: और करना होगा इंतजार, सुप्रीम कोर्ट का जल्द सुनवाई से इनकार

sujeetkumar
Published on: 31 March 2017 11:08 AM IST
राम जन्मभूमि विवाद: और करना होगा इंतजार, सुप्रीम कोर्ट का जल्द सुनवाई से इनकार
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नई दिल्ली: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि इस मामले में जल्द सुनवाई संभव नहीं है। दोनों पक्षों को और समय देने की जरुरत है। बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने जल्द सुनवाई की अर्जी दी थी।

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कोर्ट ने आज शुक्रवार (31 मार्च) स्वामी की अर्जी पर कहा कि अभी हमारे पास इस केस की जल्द सुनवाई करने का वक्त नहीं है। कोर्ट कह चुका है कि इस विवाद पर आपसी सहमति से फैसला हो, लेकिन आज मध्यस्थता के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है।

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इस मामले का फैसला कोर्ट को ही करने दे

पक्षकार वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी कोई पार्टी नहीं हैं, इस मामले का फैसला कोर्ट को ही करने दे। उन्होंने कहा कि इस मामले में किसी तीसरे व्यक्ति के कहने पर जल्द सुनवाई नहीं हो सकती। यह एक बड़ा मुद्दा है। जिसके लिए दोनों पक्षकारों को समय देना होगा। कोर्ट ने कहा कि सुब्रह्मण्यम स्वामी इस मामले में पार्टी नहीं है, ऐसे में उनकी इस मांग का औचित्य नहीं है।

कोर्ट में सुनवाई के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर कहा है, "जो फैसले में देर करना चाहते थे वो सफल हुए" मैं अब दूसरा रास्ता निकालने की कोशिश करूंगा ।

आगे की स्लाइड में देखें ट्वीट...





आगे स्लाइड में पढ़ें क्या कहा था सुब्रमण्यम स्वामी ने ...

सुब्रमण्यम स्वामी

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सीनियर लीडर और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मामले में जल्द सुनवाई के लिए पिटीशन दायर की थी। उन्होंने कहा था कि हम हमेशा बातचीत के लिए राजी थे। मंदिर और मस्जिद, दोनों बननी चाहिए। लेकिन मस्जिद सरयू नदी के पार बननी चाहिए। राम जन्मभूमि पूरी तरह से राम मंदिर के लिए होनी चाहिए। हम भगवान राम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते, लेकिन मस्जिद हम कहीं भी बना सकते हैं।

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क्या कहा था कोर्ट ने

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मंदिर विवाद का हल तलाशने के लिए सभी संबंधित पक्षों को नए सिरे से प्रयास करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मंगलवार (21 मार्च) को कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को दोनों पक्षों के बीच बातचीत से सुलझाया जा सकता है।

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जस्टिस खेहर ने यह भी कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो इस विवाद को खत्म करने के लिए कोई मध्यस्थ भी चुनना चाहिए। अगर दोनों पक्ष चाहते हैं कि मैं उनके द्वारा चुने गए मध्यस्थों के साथ बैठूं तो मैं इसके लिए तैयार हूं। यहां तक कि इस उद्देश्य के लिए मेरे साथी न्यायाधीशों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं।

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4 हफ्ते बाद लिस्टेड करें

जस्टिस पीसी घोष की अगुआई वाली बेंच ने बुधवार (22 मार्च) को हुई सुनवाई में कहा था कि दूसरी बेंच इस मामले को देखेगी। जिसमें जज घोष समेत जज आरएफ नरीमन शामिल होंगे। इससे पहले की सुनवाई के दौरान बीजेपी नेताओं की ओर से पेश वकील के. के. वेणुगोपाल ने कोर्ट से गुजारिश की थी कि मामले को 4 हफ्ते बाद लिस्टेड करें, ताकि वह कुछ जरुरी दस्तावेज फाइल कर सकें।

आगे की स्लाइड में पढें तीनों पक्षकारों बंटी थी जमीन...

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीनों पक्षकारों में बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर- बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीमकोर्ट में अपीलें दाखिल कर रखी हैं, जो कि पिछले सात साल से लंबित हैं।



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