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जेपी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बायर्स ने कहा- ये है ऐतिहासिक फैसला
नोएडा: जेपी समूह की बिल्डर कंपनी जेपी इन्फ्राटेक को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद 32000 हजार फ्लैट खरीददारों को राहत मिली है, जिन्होंने कंपनी की परियोजनाओं में निवेश किया था। ट्राइब्यूनल की इलाहाबाद बेंच की ओर से 10 अगस्त को ही कंपनी को दिवालिया श्रेणी में डालने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद उन ग्राहकों की चिंताएं बढ़ गई थीं, जिन्होंने निमार्णाधीन फ्लैटों में निवेश किया है और अब तक मकानों पर कब्जे का इंतजार कर रहे हैं।
फैसले के बाद जेपी के बायर्स में खुशी की लहर है। उन्हें उम्मीद है कि अब उनके सपनों का आशियाना मिल सकता है। बायर्स ने कहा कि तमाम कोशिशों के बाद प्राधिकरण, सरकार, बिल्डर, बैंक व एनसीएलटी ने जो राहत नहीं दी। वह राहत न्याय पालिका के सबसे बड़े स्तम्भ से मिली। सुप्रीम कोर्ट ने हमारी गुहार सुनी। अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होनी है। बायर्स ने कहा कि हमारी समस्याओं का हल करने के लिए सरकार की ओर से तीन मंत्रियों की समिति बनी। लेकिन समिति ने बिल्डरों के हितों की रक्षा की। बायर्स के हितों पर ध्यान नहीं दिया गया। बैंक को दी जाने वाली ईएमआई पर रोक लगनी चाहिए थी। लेकिन इसके उलट यह कहा गया कि बायर्स को बिल्डर को पैसा नहीं देना होगा। बायर्स ने बताया कि जब हम पहले से ही 90 प्रतिशत पैसा जमा कर चुके है। बीबीए के तहत बाकी पैसा रजिस्ट्री के समय दिया जाता है। ऐसे में राहत किस बात की । फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हमे राहत देते हुए फैसला सुनाया। दिवालिया के फैसले पर स्टे लगने से उम्मीद है कि जल्द ही हमारा फ्लैट हमे मिल सकते है। उधर, इस फैसले से जेपी इंफ्राटेक बायर्स के एक छोटा दल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
थर्ड पार्टी अडिट जरूरी
बायर्स ने मंशा जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक राहत तो दी है। साथ ही जेपी इंफ्राटेक का वित्तीय अडिट कराना चाहिए। ताकि बिल्डर की वित्तीय स्थिति स्पष्ट हो सके। दरसअल, यहा बात को-डेवलेपर की आ रही है। ऐसे में को-डेवलेपर को पैसा कौन देगा या उसे किस आधार परियोजना निर्माण के लिए चुना जाएगा इसका कोई आधार नहीं बनाया गया है। ऐसे में बिल्डर का थर्ड पार्टी अडिट होना बेहद जरूरी है।
जेपी को मिला था 270 दिन का मिला था समय
नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल ने आईडीबीआई बैंक की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा था कि 8,365 करोड़ रुपये के कर्ज में फंसी कंपनी को अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए अब 270 दिनों का समय दिया जाएगा। यदि इस बीच कंपनी की वित्तीय स्थिति नहीं बदली तो उसकी संपत्ति जब्त हो जाएगी। इसके बाद ही फ्लैट खरीददारों की चिंताएं बढ़ने लगी थीं। हालांकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने खरीददारों की समस्या को हल करने का वादा किया था। कंपनी पर अकेले आईडीबीआई बैंक का ही 4,000 करोड़ रुपये बकाया है।
12 कंपनिया और है शामिल
जेपी इन्फ्राटेक का मामला आरबीआई की तरफ से पहचान किए गए 12 मामलों में शामिल है, जिस पर बैंकों को सलाह दी गई है थी वे दिवालिया प्रक्रिया शुरू करें। इस सूची में जेपी इन्फ्राटेक के अलावा मोन्नेट इस्पात, ज्योति स्ट्रक्चरर्स, इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स, एमटेक ऑटो, एस्सार स्टील, स्टील, पावर और स्टील, लैन्को इन्फ्राटेक, एबीजी शिपयार्ड, आलोक इंडस्ट्रीज और ईरा इन्फ्रा ऐंड इंजिनियरिंग शामिल है।
क्या कहते है निवेशक
अप्रेश कहते है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एतिहासिक है। फैसले ने बायर्स की उम्मीदों में जान फूंक दी है। मकानों को लेकर अब हम अपनी लड़ाई और तेज कर सकते है।
धर्मेन्द्र ने कहा कि यह फैसला बिल्डर, बैंक व प्राधिकरण के मिली •ागत की पोल खोलने वाला है। इन तीनों ने मिलकर निवेशकों को ठगा। लेकिन अदालत ने हमारी सुनी और यह हमारे पक्ष में फैसला दिया। यह हमारी जीत की शुरुआत है।
चित्रा सेना ने कहा कि बिल्डर की वित्तीय जांच होनी चाहिए। दरसअल, जेपी इंफ्राटेक के अलावा बाकी सभी कंपनिया मुनाफे में है। हमारा पैसे से जेपी ने अपना कारोबार खड़ा किया। लेकिन हमे ही हमारा आशियाना नहीं मिला। लिहाजा इसका वित्तीय अडिट कराया जाना चाहिए।