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अदालतें नहीं दे सकती राष्ट्रपति को आदेश... उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर भड़के
Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती, जहां नयायाधीश राष्ट्रपति को आदेश दें।
Vice President Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर फैसले लिए जाने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां नयायाधीश खुद कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम संभालेंगे और 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर खड़े किए सवाल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश दे रही हैं। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है।
धनखड़ ने आगे कहा, "हमने भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी। राष्ट्रपति को तय समय में फैसले लेने के लिए कहा जा रहा है। और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा। अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि भारत देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता। हम ऐसे हालात नहीं बना सकते, जहां अदालतें राष्ट्रपति को आदेश दें।"
उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपति देश का सबसे सर्वोच्च पद है। और वह ऐसी स्थिति नहीं चाहते जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाएं। आपको सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या का अधिकार है।
किस बात से नाराज हैं उपराष्ट्रपति धनखड़?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का यह बयान सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आया है, जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रपति और तमिलनाडु राज्यपाल से विधेयकों पर फैसला लेने की समयसीमा निर्धारित की थी।
दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की तरफ से भेजे गए विधेयक पर एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। इसी के साथ कोर्ट ने राज्यपालों की तरफ से राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर 3 महीने के अंदर फैसले लेने के लिए कहा था। साथ ही कहा था कि अगर बताई गई समयसीमा से ज्यादा देरी होती है तो राज्य को इसका कारण बताना होगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला ऐतिहासिक था, क्योंकि पहली बार कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए समयसीमा निर्धारित की थी।