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मी टू मूवमेंट क्यों और किसके लिए!
लखनऊ: बॉलीवुड एक्ट्रेस तनु श्री दत्ता की ओर से एक्टर नाना पाटेकर के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाने के बाद फिल्म इंडस्ट्री से लेकर राजनीतिक गलियारों में हडकंप मचा हुआ है। लेखक से लेकर कई बड़े पत्रकार इस विवाद में फंस कर अपनी नौकरी गंवा चुके है। मी टू कैम्पेन के तहत आये दिन कोई न कोई महिला सामने आकर अपने साथ हुए यौन शोषण का खुलासा भी करती है।
ये मामला कितना बड़ा बन चुका है इस बात का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते है कि इसी मामले में देश के केन्द्रीय राज्य मंत्री एमजे अकबर को अपना इस्तीफा तक देना पड़ा था। इन तमाम विवादों के बीच अब मी कैम्पेन पर कई सवाल भी उठने लगे है। सवाल ये भी उठ रहे है कि आखिर मी टू मूवमेंट क्यों और किसके लिए है? तो आइये जानते मी टू से जुड़े कुछ खास सवाल और उनके लिए आवाज उठाने वाले लोगों के बारें में:-
अश्वेत और गरीब महिलाओं को किया जाता है इग्नोर
वैसे ये अभियान न्यूयॉर्क के एक शहर हार्लेम (Harlem) की आंदोलनकारी महिला तराना बुर्के (Tarana Burke) ने 2006 में शुरू किया। 2018 तक इसका असर कायम है। तराना ने एक कार्यक्रम के दौरान अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उन्होंने ही मी टू अभियान को सबसे पहले शुरू किया था। तब इसका मकसद यौन शोषण का शिकार महिलाओं को मदद दिलाना था लेकिन आज मीडिया ने इस मूद्दे को दूसरी तरफ मोड़ दिया है। आज ये मूवमेंट केवल नामचीन हस्तियों तक सिमट कर रह गया है।
अश्वेत और गरीब महिलाओं को इस मूवमेंट में शामिल ही नहीं किया जाता है। तराना आगे कहती है कि उन्हें कई महिलाओं ने मिलकर बताया कि अश्वेत और गरीब होने के कारण उनकी आवाज को उठने से पहले ही दबा दिया गया। मीडिया ने उनकी बातों को इग्नोर कर दिया। जो कि ठीक बात नहीं है।
कार्य क्षेत्र पर होने वाले यौन शोषण पर क्यों नहीं होती बात
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट की माने तो फिल्म इंडस्ट्री से लेकर मीडिया, पालिटिक्स, स्वास्थ्य, शिक्षा और कला लगभग सभी क्षेत्रों में यौन शोषण के मामले सामने आते रहते है। लेकिन वहां होने वाले मामलों पर कोई भी न तो बात करना चाहता है और न उनके लिए आवाज उठाना पसंद करता है। इसी का परिणाम है कि वहां पर होने वाले अधिकांश यौन शोषण के मामले दबे ही रह जाते है। इसके लिए अलग से कोई कार्यक्षेत्र पर ढंग से पालिसी भी नहीं बनाई गई है।
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