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महिला जज ने ही उठाया सवाल-...तो पुरुष क्यों नहीं रेप केस सरवाइवर?
ब्यूरो, नई दिल्ली: यदि कोई महिला बलात्कार की शिकार होती है और उसे जीवन जीने के लिए इसी समाज में रहना पड़ता है, तो अनेक संगठन और बुद्धिजीवी उसे रेप केस सरवाइवर की संज्ञा देते हैं। क़ानून में भी उसको काफी कुछ सहूलियत है। लेकिन जब कोई पुरुष अभियुक्त दुष्कर्म के आरोप से अदालत से बाइज्जत बरी हो जाता है तो हम उसे रेप केस सरवाइवर क्यों नहीं कहते? आखिर जीना तो उसे भी इसी समाज में है। आखिर पुरुष को दुष्कर्म के झूठे आरोप से बचाने वाला कानून कहां है?
यह प्रश्न किसी सामाजिक कार्यकर्ता या पुरुषवादी विचारक ने नहीं किया है। यह सवाल खड़ा किया है खुद एक महिला जज ने। यह महिला जज तीस हजारी कोर्ट की ए़डिशनल सेशंस जज निवेदिता अनिल शर्मा हैं।
पुरुषों के अधिकारों की भी हो बात
अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई के बाद अंतिम निर्णय देते हुए एक व्यक्ति को दुष्कर्म के आरोप से मुक्त करते हुए उन्होंने कहा, कि 'इस पुरुष को रेप केस सरवाइवर क्यों नहीं कह सकते? आखिर पुरुषों के मान-सम्मान की बात कौन करेगा, क्योंकि महिलाओं की मान- मर्यादा की रक्षा के लिए तो तमाम कानून बने हैं, लेकिन पुरुषों के सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए कानून कहां हैं? उन्होंने यह भी टिपण्णी की, कि अब समय आ गया है जब पुरुषों के अधिकारों के प्रति भी बात होनी चाहिए।'
पुरुष की इस पीड़ा को भी रेखांकित किया
इस महिला जज ने आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा कि इस तथ्य को कैसे नजरंदाज किया जा सकता है कि लड़की की शिकायत और इस शिकायत के कारण आरोपी के जेल जाने से उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हुई होगी? उन्होंने पुरुष की इस पीड़ा को भी रेखांकित किया और कहा कि वह न जाने कितने उलाहनों को सहता रहा होगा और सच्चाई यह भी है कि दोषमुक्त हो जाने के बाद भी उसके प्रति लोगों का नजरिया पहले की तरह सकारात्मक नहीं होगा। इस जज ने यह भी सवाल उठाया, कि आखिर ऐसे कानून कहां हैं जो इस मामले की तरह पुरुषों को रेप के झूठे आरोप लगाने वाली महिलाओं से बचा सकें?
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लड़की ने स्वीकारा, मढ़ा था आरोप
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस मामले में शिकायत के समय लड़की की उम्र 17 साल 11 माह थी। इस कारण आरोपी पर पोस्को एक्ट भी लगा, लेकिन जांच में लड़की ने कहा कि शादी से इंकार करने के कारण उसने गुस्से में आकर रेप का आरोप लगा दिया था। पुलिस जांच में पता चला कि कथित वारदात के समय लड़की ने शादी से इंकार करने पर अपने दोस्त पर दुष्कर्म का झूठा आरोप मढ़ दिया था।
लड़की के खिलाफ क्षतिपूर्ति केस हो सकता है दर्ज
इस मामले की सुनवाई करते हुए एडिश्नल सेशंस जज निवेदिता अनिल शर्मा ने कहा, कि 'लड़की की तरफ से जो भी साक्ष्य पेश किए गए वे भरोसे के लायक नहीं। लड़की के बयान और पुलिस की जांच में इतना विरोधाभास है कि आरोप अपने आप संदेह के घेरे में आ जाते हैं।' जज के अनुसार, दोषमुक्त शख्स आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ क्षतिपूर्ति का केस दर्ज करा सकता है। जज निवेदिता के इस फैसले और टिपण्णी को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।