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राइट टू प्राइवेसी है मौलिक अधिकार, मगर सशर्त : SC से केंद्र सरकार
केंद्र सरकार ने बुधवार (26 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निजता का अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) है, लेकिन यह सशर्त है और इसके सभी पहलू इसके दायरे में नहीं आएंगे
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार (26 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निजता का अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट) है, लेकिन यह सशर्त है और इसके सभी पहलू इसके दायरे में नहीं आएंगे।
अटॉर्नी जरनल के.के. वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया जे.एस. खेहर के नेतृत्व वाली नौ जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच से कहा, "निजता मौलिक अधिकार है, लेकिन यह निर्बाध नहीं है, यह सशर्त है, क्योंकि निजता के अधिकार में विभिन्न पहलू शामिल होते हैं और इसके प्रत्येक पहलू को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता है।"
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वेणुगोपाल ने यह बात इस मुद्दे पर बुधवार को नौ जजों की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच द्वारा शुरू की गई सुनवाई के दौरान कही। बुधवार को कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और पुड्डुचेरी ने सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी का सपोर्ट किया।
9 जजों की कॉन्सिट्यूशन बेंच में कौन है शामिल?
नौ जजों की कॉन्सिट्यूशन बेंच के हेड चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जेएस खेहर हैं। इसमें जस्टिस जे चेलेमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके आग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।