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बुलेट ट्रेन पर ट्वीट कर कैसे फंस गए लालू प्रसाद, जानिए पूरा सच
नई दिल्ली : कमल को लालटेन की आग से जलाने की मंशा पाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने जो ट्वीट किया है। वो उन्हें सिर्फ नासमझ ही साबित करता है। नाकि बीजेपी या पीएम मोदी को कसने वाला फंदा। पहले आप लालू का ट्वीट देखें, उसके बाद हम आपको बताते हैं पूरी बुलेट कथा।
लालू चाहें तो 2009 के कुछ डॉक्युमेंट उठा के देख लें। जब बंगाल की सीएम ममता बनर्जी रेल मंत्री हुआ करती थीं। 82 पन्नों वाले इस विजन डॉक्युमेंट के पेज नंबर 4 पर बनर्जी की तस्वीर भी चस्पा है।
विजन डॉक्युमेंट के पेज नंबर दस के मुताबिक देश के अंदर 6 कॉरिडोर को हाईस्पीड ट्रेन कॉरिडोर के रिसर्च के लिए चुना गया। इनमें पुणे-मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर शामिल था। मनमोहन सिंह सरकार का यह विजन 2020 डॉक्युमेंट था।जिसमें साफ-साफ लिखा था कि बुलेट ट्रेन के बराबर यानी 250 से 350 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रेन चलाने की संभावनाओं पर अध्ययन होगा। लालू जी 2009 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, और आप उनकी सरकार को समर्थन दे रहे थे याद है आपको।
चलिए टाइम ट्रैवल कर चलते हैं वर्ष 2012 में। देश में सप्रंग सरकार और पीएम से मनमोहन। रेलवे एक्सपर्ट ग्रुप की रिपोर्ट सामने आई। जिसमें रेलवे को आधुनिक बनाने की योजना पर काफी कुछ कहा गया। 25 पन्नों की इस रिपोर्ट में पेज नंबर आठ में देखा जा सकता है कि अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन की योजना के बारे में कहा जा रहा है। इसकी रफ्तार 350 किमी प्रति घंटा होने की बात भी बताई गई। सिर्फ इतना ही नहीं 6 और कॉरिडोर को चिन्हित करने की बात कही गई, जहां हाई स्पीड ट्रेन चलनी है।
अब सीधे बात करते हैं वर्ष 2013 की। पीएम मनमोहन सिंह जापान यात्रा पर थे वहां पीएम शिंजो आबे के साथ एक संयुक्त रिलीज जारी हुई। इसमें 34 बातों का उल्लेख था। जबकि 15 और 16 नंबर की लाइन में कहा गया कि जापान इंडिया में हाई स्पीड ट्रेन की मदद के लिए तैयार है। इसमें दिल्ली मुंबई कॉरिडोर का भी जिक्र है।
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इसके बाद अक्टूबर 2013 में इंडिया और जापान के बीच एक एमओयू साइन होता है। जिसमें भी हाई स्पीड रेलवे सिस्टम की संभावना के अध्ययन की ही बात थी।
इसके बाद अब ये देखिए, भारत और जापान ने 12 दिसंबर 2015 को ही एमओयू पर साइन कर लिए थे। ये देखिये सबूत...
लालू जी वैसे आप पूरी तरह गलत नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत जो सूचना मिली वो भी सही है। लेकिन जो सूचनाएं मांगी जाती हैं, उतनी ही मुहैया कराई जाती हैं। इसलिए विभाग ने ये नहीं बताया कि दो साल पहले यानी 2015 में ही करार हो चुका है। तो आप ही बताइए एक बार फिर 2017 में क्यों करार होगा।