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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जम्मू-कश्मीर में हिंसा रुकने पर ही बातचीत संभव
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में हिंसा थमने से पहले बातचीत संभव नहीं है। सुरक्षा बलों की ओर से पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, कि 'हिंसा का दौर थमने से पहले रचनात्मक संवाद संभव नहीं है।'
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, 'किससे बात करें? हिंसा रुकने से पहले किसी भी तरह की बातचीत नहीं की जा सकती।' जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन के एग्जिक्यूटिव मेंबर ने पिछले साल 22 सितंबर को हाईकोर्ट की ओर से दिए गए आदेश के विरोध में यह याचिका दाखिल की थी।
पार्टियां आपस में बैठें या फिर...
बता दें, कि हाईकोर्ट ने बार एसोसिएशन की पैलेट गनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। बार एसोसिएशन ने यह कहते हुए इनके इस्तेमाल पर रोक की मांग की थी कि खुद केंद्र सरकार ने इनके इस्तेमाल पर विचार करने के लिए एक एक्सपर्ट पैनल का गठन किया है। याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि 'इस मसले के समाधान के दो ही रास्ते हैं या तो पार्टियां आपस में बैठें या फिर अदालत फैसला दे।' अदालत ने अगली सुनवाई चार अक्टूबर को रखी है।
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सॉलिसिटर जनरल ने रखा केंद्र का पक्ष
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने केंद्र का पक्ष रखा। उनका कहना था, कि बार कश्मीर के भारत में शामिल होने को रहस्यमय बता रही है। उनका कहना था कि केंद्र बार के सुझावों पर गौर करना चाहती है। सरकार ने अलगाववादी तत्वों से बातचीत की संभावना को भी खारिज कर दिया। रंजीत कुमार का कहना था कि केवल उन लोगों से ही सरकार बात कर सकती है जिन्हें कानूनी मान्यता हासिल है। केंद्र का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी व जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती इस मसले पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि श्रीनगर बार एसोसिएशन लंबे समय से मांग कर रही है कि कश्मीर में पहले सुरक्षा बल पीछे हटें और वहां पर अफस्पा जैसे कानूनों को हटाया जाए। तभी वहां हालात सुधर सकेंगे है।