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History Of America: कोलंबस की खोज से लेकर अमेरिका की स्वतंत्रता तक, जानिए कैसे अमेरिका बना एक आज़ाद राष्ट्र
America Ka Itihas: अमेरिकी क्रांति ने न केवल अमेरिका को बदला बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बनी।
History Of America
History Of America: अमेरिका का इतिहास केवल एक भूभाग के विकास की कहानी नहीं, बल्कि यह मानव सभ्यता की जिज्ञासा, साहस, संघर्ष और स्वतंत्रता की गूंज है। जिस धरती को आज हम 'संयुक्त राज्य अमेरिका' कहते हैं, वह कभी हज़ारों वर्षों से वहाँ बसे मूल अमेरिकी जनजातियों की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक धरोहर रही थी। लेकिन 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब यूरोपीय खोजकर्ता क्रिस्टोफर कोलंबस अज्ञानवश इस 'नई दुनिया' तक पहुँचा, तभी से इस भूमि का चेहरा और भाग्य दोनों बदलने लगे। उसके आगमन ने उपनिवेशवाद, नरसंहार और सांस्कृतिक विस्थापन के एक लंबे दौर की शुरुआत की।
कोलंबस की ‘खोज’ से लेकर 1776 में अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा तक की यात्रा केवल सत्ता के हस्तांतरण की नहीं, बल्कि इंसानियत की कीमत पर लिखे गए सपनों, संघर्षों और आदर्शों की कहानी है। यह इतिहास हमें यह बताता है कि कैसे लालच और विस्तारवादी सोच ने एक सभ्यता को कुचल दिया, और फिर उसी भूमि पर स्वतंत्रता, लोकतंत्र और समानता के सिद्धांतों पर आधारित एक नया राष्ट्र उभरा।
यह लेख अमेरिका के इतिहास की विस्तृत यात्रा प्रस्तुत करता है, जिसमें कोलंबस की खोज से लेकर स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र के गठन तक के प्रमुख घटनाक्रमों को सरल और समग्र रूप में समझाया गया है।
क्रिस्टोफर कोलंबस की खोज (1492)
1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस(Christopher Columbus) की ऐतिहासिक यात्रा ने न केवल भूगोल की पारंपरिक समझ को चुनौती दी, बल्कि समूची मानव सभ्यता के इतिहास की दिशा भी बदल दी। इटली के इस साहसी नाविक ने स्पेन की रानी इसाबेला और राजा फर्डिनेंड के संरक्षण में पश्चिम की ओर समुद्री मार्ग से एशिया पहुँचने का प्रयास किया। उसे विश्वास था कि पृथ्वी गोल है और एशिया पश्चिम दिशा में अपेक्षाकृत निकट है। हालांकि यह अनुमान गलत साबित हुआ और वह एशिया की बजाय अज्ञात अमेरिकी महाद्वीप के कैरिबियन द्वीपों तक जा पहुँचा।
12 अक्टूबर 1492 को कोलंबस बहामास के एक द्वीप (संभवत: आज का सान साल्वाडोर) पर उतरा जिसे वहाँ के मूल निवासी गुआनाहानी कहते थे। कोलंबस को भ्रम था कि वह एशिया के पूर्वी द्वीपों इंडीज़ में पहुँच गया है जबकि वास्तव में वह एक नई और अंजानी भूमि पर खड़ा था। यद्यपि उसने अपनी पहली यात्रा में मुख्यभूमि अमेरिका को नहीं छुआ लेकिन उसकी इस यात्रा ने यूरोपीय खोज और उपनिवेशीकरण के एक नए युग की शुरुआत कर दी।
कोलंबस की इस खोज के बाद स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, डच और ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली यूरोपीय राष्ट्रों ने क्रमशः कैरिबियन, दक्षिण अमेरिका, ब्राजील, कनाडा और न्यूयॉर्क क्षेत्र में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित करने शुरू कर दिए। यह प्रक्रिया न केवल भूगोलिक विस्तार थी बल्कि इससे मूल निवासियों के जीवन, संस्कृति और अस्तित्व पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। कोलंबस की इस यात्रा को 'नई दुनिया' की खोज का नाम दिया गया हालाँकि बाद में अमेरिगो वेस्पूची ने यह सिद्ध किया कि यह भूमि एशिया नहीं बल्कि एक पूर्णतः नया महाद्वीप है।
उपनिवेशों की स्थापना और विस्तार
16वीं और 17वीं शताब्दी में यूरोपीय उपनिवेशीकरण की होड़ ने अमेरिका की भूमि पर गहरा प्रभाव डाला। स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, डच और पुर्तगाल जैसी शक्तिशाली यूरोपीय ताकतों ने अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित किए जिनमें ब्रिटिश उपनिवेश मुख्य रूप से पूर्वी तट पर केंद्रित थे। 1607 में ब्रिटेन ने वर्जीनिया के जेम्सटाउन में अपना पहला स्थायी उपनिवेश स्थापित किया जो अमेरिका में अंग्रेजों की उपस्थिति की शुरुआत माना जाता है। इसके बाद ब्रिटेन ने पूर्वी तट पर कुल 13 उपनिवेशों की स्थापना की जो बाद में अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की नींव बने। इन उपनिवेशों की स्थापना के पीछे व्यापारिक लाभ, कृषि भूमि की खोज (विशेष रूप से तंबाकू की खेती), और धार्मिक स्वतंत्रता की चाह प्रमुख कारण थे। इंग्लैंड की धार्मिक कठोरता से तंग आकर कई धार्मिक समुदाय, विशेष रूप से प्यूरिटन, अमेरिका आए और न्यू इंग्लैंड क्षेत्र में बस गए। इन उपनिवेशों में धीरे-धीरे नई राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाएँ विकसित हुईं जिसमें स्वशासन, सामूहिक निर्णय प्रक्रिया और धार्मिक सहिष्णुता जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों की नींव रखी गई जो आगे चलकर अमेरिकी समाज की पहचान बने।
मूल निवासियों और उपनिवेशवादियों के बीच टकराव
जैसे-जैसे यूरोपीय शक्तियों का उपनिवेशी विस्तार अमेरिका में गहराता गया, वैसे-वैसे वहाँ सदियों से बसे मूल अमेरिकी जनजातियों जैसे चेरोकी, अपाचे, सिउक्स आदि के साथ संघर्ष और टकराव तेज होता गया। भूमि, जल और संसाधनों पर अधिकार को लेकर यह टकराव कई बार हिंसक युद्धों में बदल गया, जिन्हें इतिहास में 'इंडियन युद्ध' कहा जाता है। ये युद्ध 17वीं सदी से लेकर 19वीं सदी तक चलते रहे और मूल निवासियों के लिए अत्यंत विनाशकारी साबित हुए। केवल युद्ध ही नहीं बल्कि यूरोपीय उपनिवेशवादियों द्वारा लाई गई संक्रामक बीमारियाँ, विशेष रूप से चेचक (smallpox), ने भी मूल अमेरिकी जनसंख्या को भयावह तरीके से प्रभावित किया। चूंकि इन जनजातियों की प्रतिरक्षा प्रणाली इन नई बीमारियों से लड़ने में असमर्थ थी इसलिए लाखों लोगों की जान चली गई। उदाहरणस्वरूप 1618 - 1619 के बीच चेचक की महामारी ने मैसाच्युसेट्स बे क्षेत्र की लगभग 90% मूल जनसंख्या को समाप्त कर दिया था। उपनिवेशीकरण न केवल शारीरिक विनाश का कारण बना बल्कि इसके परिणामस्वरूप भूमि की हानि, जबरन विस्थापन, जनसंहार और सांस्कृतिक परंपराओं के विघटन जैसी त्रासदियाँ भी देखने को मिलीं, जिसने मूल अमेरिकी समाज की जड़ों को हिला कर रख दिया।
अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच प्रतिस्पर्धा
18वीं शताब्दी में अमेरिका के उपनिवेशों में ब्रिटेन और फ्रांस के बीच वर्चस्व की तीव्र प्रतिस्पर्धा ने एक बड़े संघर्ष का रूप ले लिया जो अंततः सप्तवर्षीय युद्ध (Seven Years' War, 1756 - 1763) में बदल गया । अमेरिका में इस युद्ध को 'French and Indian War' के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसमें फ्रांस ने कुछ मूल अमेरिकी जनजातियों के साथ मिलकर ब्रिटिश उपनिवेशों के खिलाफ मोर्चा लिया था। इस युद्ध में ब्रिटेन की निर्णायक विजय हुई और उसे कनाडा सहित अधिकांश फ्रांसीसी उपनिवेशों पर अधिकार प्राप्त हो गया जिससे अमेरिकी क्षेत्र में फ्रांसीसी खतरे का अंत हो गया। हालांकि यह विजय ब्रिटेन के लिए आर्थिक रूप से बहुत महँगी साबित हुई। युद्ध में भारी खर्च के कारण ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई और उसने अपने अमेरिकी उपनिवेशों पर टैक्स और नए कानूनों का बोझ डालना शुरू कर दिया। इन्हीं करों और नीतियों के खिलाफ उपनिवेशों में असंतोष बढ़ा जिसने आगे चलकर अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी को हवा दी।
ब्रिटिश कर नीति और उपनिवेशों में असंतोष
ब्रिटेन ने अपने कर्ज को चुकाने के लिए उपनिवेशों पर अनेक कर (टैक्स) थोपे जैसे:
स्टैम्प एक्ट (1765) - ब्रिटिश संसद ने 1765 में स्टैम्प एक्ट पारित किया, जिसके तहत उपनिवेशों में सभी कानूनी दस्तावेज़ों, अखबारों, पत्रिकाओं, ताश के पत्तों आदि पर टैक्स लगाया गया था। इस टैक्स का उद्देश्य फ्रेंच और इंडियन वॉर के बाद उपनिवेशों में तैनात ब्रिटिश सेना के खर्च को पूरा करना था। उपनिवेशवासियों ने इसे अपनी सहमति के बिना लगाया गया टैक्स माना और इसका तीव्र विरोध किया।
टाउनशेंड एक्ट (1767) - टाउनशेंड एक्ट के तहत चाय, शीशा, रंग, कागज आदि वस्तुओं पर टैक्स लगाया गया था। इसका भी उपनिवेशवासियों ने विरोध किया, क्योंकि यह भी बिना उनकी प्रतिनिधित्व के लगाया गया था।
टी एक्ट (1773) - इस एक्ट के तहत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अमेरिकी उपनिवेशों में चाय बेचने का विशेषाधिकार दिया गया, जिससे स्थानीय व्यापारियों को नुकसान हुआ और "बोस्टन टी पार्टी" जैसी घटनाएँ हुईं।
'No taxation without representation' - उपनिवेशवासियों का मुख्य तर्क था कि ब्रिटिश संसद में उनकी कोई प्रतिनिधित्व नहीं है इसलिए उन पर टैक्स लगाना अन्याय है। इसी के विरोध में 'No taxation without representation' नारा प्रसिद्ध हुआ।
बोस्टन टी पार्टी (1773) - विद्रोह की शुरुआत
1773 में घटित 'बोस्टन टी पार्टी' अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के तीन जहाज बोस्टन बंदरगाह पर लंगर डाले खड़े थे तब अमेरिकी देशभक्तों के एक समूह 'सन्स ऑफ लिबर्टी' ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विरोध स्वरूप 342 चाय की पेटियाँ समुद्र में फेंक दीं। यह साहसिक कार्रवाई 1773 के टी एक्ट और चाय पर लगाए गए अन्यायपूर्ण कर के खिलाफ थी जिसमें उपनिवेशवासियों पर बिना उनके किसी प्रतिनिधित्व के टैक्स थोपे गए थे। इस घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को चौंका दिया और प्रतिक्रिया स्वरूप उसने 'Intolerable Acts' (असहनीय कानून) लागू किए। इनमें बोस्टन बंदरगाह को अनिश्चितकाल के लिए बंद करना, मैसाचुसेट्स की स्वशासी व्यवस्थाओं को समाप्त करना, और ब्रिटिश अधिकारियों को विशेष कानूनी संरक्षण देना जैसे कठोर कदम शामिल थे। इन दंडात्मक कार्रवाइयों ने उपनिवेशवासियों में और भी अधिक आक्रोश भर दिया और स्वतंत्रता की लड़ाई को नई गति दी।
महाद्वीपीय कांग्रेस और स्वतंत्रता की मांग
1774 में ब्रिटिश शासन की कठोर नीतियों विशेषकर 'Intolerable Acts' के विरोध में अमेरिकी उपनिवेशों ने फिलाडेल्फिया में पहली महाद्वीपीय कांग्रेस (First Continental Congress) का आयोजन किया। इसमें 12 उपनिवेशों - जॉर्जिया को छोड़कर ने भाग लिया और ब्रिटिश सरकार से अपने मौलिक अधिकारों और स्वशासन की माँग की। यद्यपि जॉर्जिया ने प्रारंभ में भाग नहीं लिया लेकिन बाद में वह भी आंदोलन में शामिल हो गया और दूसरी महाद्वीपीय कांग्रेस का हिस्सा बना। उपनिवेशों की मांगों को ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज तृतीय ने सिरे से खारिज कर दिया जिससे स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई। इसके परिणामस्वरूप अप्रैल 1775 में लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड की लड़ाइयाँ हुईं जो अमेरिका और ब्रिटेन के बीच प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष की शुरुआत थीं। इन घटनाओं ने आंदोलन की दिशा को बदल दिया अब यह केवल अधिकारों की माँग न रहकर पूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई बन चुका था।
स्वतंत्रता की घोषणा (1776)
4 जुलाई 1776 को दूसरी महाद्वीपीय कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए थॉमस जेफरसन द्वारा रचित 'अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणा पत्र' को आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया। यह दस्तावेज़ मानव अधिकारों, स्वतंत्रता और स्वशासन के सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "सभी मनुष्यों को समान अधिकार प्राप्त हैं - जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज"। इस घोषणा के साथ ही अमेरिका ने स्वयं को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र घोषित कर दिया और ब्रिटेन के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई। इस निर्णायक कदम ने न केवल एक नए राष्ट्र की नींव रखी बल्कि विश्व इतिहास में आज़ादी और लोकतंत्र के महत्व को भी एक नई दिशा दी।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1775 - 1783)
अमेरिका और ब्रिटेन के बीच स्वतंत्रता संग्राम कई वर्षों तक जारी रहा। शुरूआत में अमेरिकी सेना संसाधनों और अनुभव की कमी के कारण कमजोर थी लेकिन जनरल जॉर्ज वॉशिंगटन के कुशल नेतृत्व में यह संगठित और प्रेरित होती गई। 1778 में फ्रांस ने अमेरिका को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान करना शुरू किया जिससे युद्ध का संतुलन अमेरिका के पक्ष में झुक गया। 1781 में यॉर्कटाउन की निर्णायक लड़ाई में अमेरिकी और फ्रांसीसी सेनाओं ने ब्रिटिश जनरल कॉर्नवालिस को घेर लिया और अंततः कॉर्नवालिस ने आत्मसमर्पण कर दिया जिससे युद्ध का अंत सुनिश्चित हो गया। अंततः 1783 में पेरिस संधि के तहत ब्रिटेन ने औपचारिक रूप से अमेरिका की स्वतंत्रता को मान्यता दे दी।
संविधान और एक नया राष्ट्र
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अमेरिका ने एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपने शासन की नींव रखी। 1787 में फिलाडेल्फिया में संविधान सभा ने अमेरिकी संविधान का निर्माण किया गया जो आज भी विश्व का सबसे पुराना लिखित संविधान माना जाता है। इस संविधान में तीन स्वतंत्र और समन्वित शाखाओं विधायिका (Legislature), कार्यपालिका (Executive), और न्यायपालिका (Judiciary) का स्पष्ट रूप से निर्धारण किया गया। इसके बाद 1789 में जॉर्ज वॉशिंगटन(George Washington )को सर्वसम्मति से अमेरिका का पहला राष्ट्रपति(First President Of America) चुना गया जिसने नए राष्ट्र की विधिवत स्थापना और संचालन की शुरुआत की।
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