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Importance of Dung Beetles: गांव, खेतों, जगलों में दिखने वाला ये कीट बचा सकता हैं धरती को विनाश से... कहलाते हैं ये नन्हे सिपाही! क्या आप इन कीटों को पहचानते हैं?
Importance of Dung Beetles: डंग बीटल या गुबरैला के नाम से जाना जाता है। मगर आज जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और रासायनिक कृषि ने इस छोटे से हीरो को खतरे में डाल दिया है। अगर समय रहते समाधान नहीं किया गया तो प्रकृति का यह छोटा सिपाही हमारी धरती से हमेशा के लिए समाप्त हो सकता है।
Importance of Dung Beetles (photo: social
Importance of Dung Beetles: कभी खेतों और जंगलों में आपने कभी न कभी गोबर की गेंद को लुढ़काते एक छोटे से कीट को ज़रूर देखा होगा, जो सामान्य तौर पर नज़र नहीं आते और आपको तुच्छ लगते होंगे। लेकिन ये कीट पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इस कीट को डंग बीटल या गुबरैला के नाम से जाना जाता है। मगर आज जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण और रासायनिक कृषि ने इस छोटे से हीरो को खतरे में डाल दिया है। अगर समय रहते समाधान नहीं किया गया तो प्रकृति का यह छोटा सिपाही हमारी धरती से हमेशा के लिए समाप्त हो सकता है।
क्या है डंग बीटल का महत्व
डंग बीटल्स (dang beatles) गोबर को जमीन में दबाकर न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता (fertility) में वृद्धि करते हैं बल्कि यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करते हैं। इनके कारण खेतों की मिट्टी में जैविक खाद का स्तर उचित रूप से बना रहता है और यह प्राकृतिक जुताई में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। वे गोबर में मौजूद नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट कर खेतों में बीमारियों को फैलने से रोकते हैं। इसके अलावा, बीजों के प्रसार में भी ये सहायता करते हैं।
इनके बिना क्या होगा
क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि पूरी दुनिया में पशुओं और वन्यजीवों से हर रोज़ हज़ारों टन गोबर उत्पन्न होता है । लेकिन ये कीट न होते तो यह गोबर यूं ही सड़ता, जिससे मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी घातक गैसों का उत्सर्जन (emissions) होता। इससे न सिर्फ पर्यावरण को दूषित होता बल्कि सेहत पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता।
भारत में डंग बीटल्स की प्रजातियाँ
भारत में डंग बीटल्स की तकरीबन 500 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से अकेले बेंगलुरु में ही 130 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं। अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (ATREE) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में हेसरघट्टा घासभूमि में डंग बीटल की एक नई प्रजाति ‘Onitis visthara’ की खोज की है। वहीं, मेघालय के नोंगखाइल्लेम वन्यजीव अभयारण्य में ‘Onitis bordati’ नामक एक और नई प्रजाति मिली है, जो पहले वियतनाम और थाईलैंड में पाई जाती थी। ये खोजें भारत की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाती हैं।
क्या कहता है डॉ. अशोक चंद्र का अध्ययन
नेशनल जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक डॉ. अशोक चंद्र के मुताबिक, डंग बीटल्स (dang beatles) बहुत रोचक होते हैं। इनकी कुछ प्रजातियाँ गोबर को बॉल बनाकर उसे लुढ़काती हैं, जबकि कुछ प्रजातियाँ गोबर में ही गड्ढा बनाकर उसमें अंडे देती हैं। 40 साल पहले जब खेती में रसायनों का कम उपयोग होता था और किसान बैल से हल चलाते थे, उस समय डंग बीटल्स की संख्या बहुत ज्यादा हुआ करती थी। लेकिन अब ट्रैक्टर और मशीनों के उपयोग से खेतों में पैदल चलने की परंपरा कम होने से गोबर का प्राकृतिक विघटन (natural decomposition) बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।
ख़तरे में जलवायु परिवर्तन
दक्षिण अमेरिका में किए गए एक शोध के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के तहत डंग बीटल्स की विस्तार सीमा में कमी आई है। इससे पारिस्थितिकी सेवाओं में गिरावट देखी गई है। ब्रिटेन में स्थित ‘Minotaur Beetle’ नामक प्रजाति अपने तीन सींगों के लिए बेहद प्रसिद्ध है, जो मिट्टी की उर्वरता (fertility) बढ़ाने में सहायता करती है। भारत में भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ डंग बीटल्स का अस्तित्व खतरे में है। ज़रूरत से ज्यादा कीटनाशकों और पशुओं को दी जाने वाली एंटी-पैरासाइटिक दवाओं के अवशेष इनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं।
खेती में डंग बीटल्स का योगदान
जहाँ पारंपरिक खेती में डंग बीटल्स का बड़ा योगदान था, अब वहीं आधुनिक खेती में इनकी भूमिका को पूर्ण रूप से अनदेखा किया जा रहा है। आजकल गोबर को जैविक खाद बनाने के बजाय सीधा एकत्रित कर फैक्ट्रियों में भेजा जाता है। इससे इन कीटों का भोजन और प्रजनन स्थल नष्ट हो जाता है।
डंग बीटल का इतिहास
डंग बीटल का हिंदी शब्द है 'भृंग' जो कीटों का एक बहुत बड़ा समूह है। विज्ञान के लिए ज्ञात सभी जानवरों की प्रजातियों में से लगभग एक चौथाई और वर्णित सभी कीटों में से एक तिहाई भृंग हैं। इनका इतिहास प्राचीन मिस्र तक मशहूर है। मिस्र में इसे Scarab Beetle कहा जाता था और यह पुनर्जन्म व आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता था।
दुनियाभर में संरक्षण प्रयास
ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में डंग बीटल्स के संरक्षण के लिए लगातार वैज्ञानिक कोशिशें की जा रही हैं। वहाँ डंग बीटल्स की ब्रीडिंग करके खेतों में छोड़ दिया जाता है ताकि प्राकृतिक खाद और जुताई की प्रक्रिया को अधिक बढ़ावा मिले। डंग बीटल्स के संरक्षण को लेकर भारत में अब तक कोई बड़ा प्रयास नहीं हुआ है।
डंग बीटल्स के संरक्षण के लिए इन उपायों को अपनाना ज़रूरी है:
1. रसायनों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कम से कम करें।
2. जैविक खेती को बढ़ाएं।
3. घासभूमि और जंगलों का संरक्षण करें।
4. डंग बीटल्स की प्रजातियों पर ज्यादा से ज्यादा शोध किया जाए।
5. स्थानीय समाज के लोगों को इनके महत्व के बारे में बताया जाए।
आम नागरिकों से ही होगा संरक्षण
डंग बीटल्स के संरक्षण में सरकार, वैज्ञानिक समुदाय, किसान और आम नागरिकों सभी की हिस्सेदारी ज़रूरी है। यदि हम जल्द से जल्द इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाएंगे, तो यह छोटे सिपाही (डंग बीटल्स) हमारे पर्यावरण से हमेशा के लिए गायब हो सकते हैं। डंग बीटल्स को संरक्षित करने का अर्थ है हमारी मिट्टी, फसल, जलवायु और जैव विविधता की रक्षा करना। इसीलिए डंग बीटल्स (पर्यावरण के नायक) की अहमियत को समय रहते समझ लें और इसे वह सम्मान दें, जिसका यह हकदार है।
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