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Lalu Yadav Ka Jivan Parichay: बिहार के देसी हीरो की दास्तान, जहाँ थे कभी घोटाले,कभी थी रेल यात्रा, तो कभी सत्ता के फूल
Lalu Prasad Yadav Biography: 11 जून को बिहार के लाल लालू प्रसाद यादव का जनदिवस है आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कई बातें।
Lalu Prasad Yadav Ka Jivan Parichay
Lalu Prasad Yadav Ka Jivan Parichay: 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के छोटे से गाँव फुलवरिया में एक सितारा पैदा हुआ, जिसका नाम था लालू प्रसाद यादव। आज, 2025 में, जब वे अपने 77वें जन्मदिन की ओर बढ़ रहे हैं, उनकी कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है-हंसी, आंसू, जीत, हार और ढेर सारे ड्रामे से भरी। लालू सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक ऐसा शख्स हैं, जिन्होंने बिहार की सियासत को नया रंग दिया, गरीबों की आवाज बने और अपने मजेदार अंदाज से सबके दिलों में जगह बनाई। लेकिन उनकी जिंदगी में विवादों ने भी उतना ही साथ दिया, जितना उनकी सफलताओं ने।
गाँव का लड़का, सपनों का पीछा
लालू का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंदन राय और माँ मरछिया देवी खेतों में मेहनत करके परिवार का पेट पालते थे। छह भाइयों में दूसरे नंबर के लालू की जिंदगी आसान नहीं थी। गाँव में बिजली-पानी का नामोनिशान नहीं था और पढ़ाई के लिए स्कूल मीलों दूर। लेकिन लालू में कुछ कर गुजरने की जिद थी। उन्होंने गाँव के स्कूल से पढ़ाई शुरू की और फिर अपने बड़े भाई मुकुंद राय के साथ पटना चले गए। वहाँ उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से पहले बैचलर ऑफ लॉ और फिर पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही लालू का दिल फुटबॉल और कुश्ती जैसे खेलों में रमा, लेकिन उनकी असली मंजिल थी सियासत।
पटना यूनिवर्सिटी में लालू ने छात्र राजनीति की दुनिया में कदम रखा। 1970 में वे पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के जनरल सेक्रेटरी बने और 1973 में इसके अध्यक्ष। उनकी बेबाक बोलने की शैली और देसी अंदाज ने उन्हें छात्रों का चहेता बना दिया। उस समय जयप्रकाश नारायण का आंदोलन जोरों पर था और लालू ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1975 में इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के दौरान लालू को जेल भी हुई, लेकिन इसने उनके हौसले को और मजबूत किया। 1977 में, सिर्फ 29 साल की उम्र में, वे जनता पार्टी के टिकट पर छपरा से लोकसभा सांसद चुने गए। इतनी कम उम्र में संसद पहुंचना अपने आप में एक बड़ी कामयाबी थी।
मुख्यमंत्री बनने की कहानी
लालू की असली उड़ान 1990 में शुरू हुई, जब वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। उस समय बिहार की सियासत ऊँची जातियों के दबदबे में थी, लेकिन लालू ने यादव, पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय को एकजुट करके सियासत का रंग बदल दिया। 1989 के भागलपुर दंगों के बाद मुस्लिम समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और लालू ने उनकी आवाज बनकर उन्हें अपने साथ जोड़ा। उनकी नारा "भूरा बाल साफ करो" (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) ने बिहार की सियासत में तहलका मचा दिया।
लालू का पहला कार्यकाल (1990-1995) सामाजिक न्याय का प्रतीक बना। उन्होंने पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिलाने के लिए जोरदार पैरवी की। उनकी सरकार ने गरीबों और दलितों के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं, जैसे मुसहर समुदाय को वोट देने का अधिकार और पंचायतों में रोजगार। लालू ने बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना की और जातिगत जनगणना की माँग उठाई। 1990 में जब लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार पहुंची, तो लालू ने समस्तीपुर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस कदम ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया और मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीता।
1995 में लालू दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नहीं थी। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार और कुशासन के आरोप लगने लगे। फिर आया चारा घोटाला, जिसने उनकी सियासत को झकझोर दिया। लेकिन लालू ने हार नहीं मानी। 1997 में, जब चारा घोटाले की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। यह कदम उनके विरोधियों के लिए मजाक था, लेकिन लालू ने दिखा दिया कि उनकी सियासत अभी खत्म नहीं हुई।
रेलवे का जादूगर
2004 में लालू की जिंदगी में एक नया मोड़ आया, जब वे यूपीए सरकार में रेल मंत्री बने। उस समय भारतीय रेलवे घाटे में डूबा हुआ था। विशेषज्ञों का कहना था कि रेलवे को बचाना नामुमकिन है। लेकिन लालू ने सबको चौंका दिया। उन्होंने बिना किराया बढ़ाए रेलवे को न सिर्फ घाटे से निकाला, बल्कि 90,000 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। उनकी नीतियों, जैसे कुल्हड़ में चाय बेचना, गरीब रथ ट्रेन शुरू करना और माल ढुलाई बढ़ाना, ने रेलवे को नई जिंदगी दी।
लालू की इस कामयाबी ने दुनिया का ध्यान खींचा। हार्वर्ड और व्हार्टन जैसे बड़े संस्थानों ने उनकी मैनेजमेंट स्टाइल को पढ़ाना शुरू किया। आईआईएम अहमदाबाद ने तो उनके रेलवे टर्नअराउंड पर केस स्टडी बनाई। लालू ने हिंदी में इन संस्थानों में लेक्चर दिए और उनकी देसी स्टाइल ने विदेशी छात्रों को भी उनका दीवाना बना दिया। एक बार उन्होंने मजाक में कहा, "हम तो गाय-भैंस चराते थे, रेलवे तो फिर भी आसान था!" इस बात ने उनकी सादगी और हाजिरजवाबी को दुनिया के सामने ला दिया।
विवादों का साय
लालू की जिंदगी जितनी रंगीन है, उतनी ही विवादों से भरी भी। सबसे बड़ा विवाद रहा चारा घोटाला, जिसमें उन पर पशु चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी का आरोप लगा। 1996 में इस घोटाले का खुलासा हुआ और 2013 में लालू को पहली बार सजा हुई। उन्हें पाँच साल की जेल और 25 लाख रुपये का जुर्माना हुआ। इसके बाद 2017 और 2018 में भी चारा घोटाले के अलग-अलग मामलों में उन्हें सजा मिली। इन सजाओं की वजह से उन्हें लोकसभा की सदस्यता गँवानी पड़ी और 11 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लग गई।
2024 में लालू फिर सुर्खियों में आए, जब उन पर रेलवे में नौकरियों के बदले जमीन लेने का आरोप लगा। इस लैंड-फॉर-जॉब्स स्कैम में सीबीआई और ईडी ने लालू, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ जाँच शुरू की। 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में लालू की याचिका खारिज कर दी, जिससे उनकी मुश्किलें बढ़ गईं। इसके अलावा, उनकी बेटी मीसा भारती और परिवार के अन्य सदस्यों पर भी आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे।
लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने भी 2025 में विवाद खड़ा किया, जब उन्होंने सोशल मीडिया पर 12 साल पुराने रिलेशनशिप की बात कही। इसकी वजह से लालू ने उन्हें पार्टी और परिवार से निकाल दिया। तेज प्रताप की पूर्व पत्नी ऐश्वर्या राय ने इसे चुनावी ड्रामा करार दिया, जिससे लालू का परिवार और चर्चा में आ गया। लालू के बहनोई सुभाष यादव ने भी इस फैसले की आलोचना की, जिसने आरजेडी की एकता पर सवाल उठाए।
भाषणों का जादू
लालू की सबसे बड़ी ताकत है उनका बोलने का अंदाज। उनके भाषण हंसी, व्यंग्य और देसीपन का ऐसा कॉकटेल होते हैं कि लोग सुनते ही मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। चाहे संसद हो या रैली, लालू की बातें हर किसी को हंसाती और सोचने पर मजबूर करती हैं। एक बार उन्होंने संसद में कहा, "हमारे गाँव में सड़क इतनी खराब थी कि गाय भी गड्ढे में गिर जाए!" इस एक लाइन ने बिहार की सड़कों की हालत को मजेदार तरीके से बयां कर दिया।
2024 में उन्होंने अमित शाह के अंबेडकर पर बयान की आलोचना करते हुए कहा, "शाह साहब को सियासत छोड़कर आराम करना चाहिए, पागलपन की हद हो गई!" उनकी इस टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया। 2025 में नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा पर लालू ने तंज कसते हुए कहा, "नीतीश जी बस तमाशा देखने जा रहे हैं!" इस बयान ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी। लालू के भाषणों में देसी मुहावरे, लोककथाएँ और चुटकुले इस तरह घुलमिल जाते हैं कि लोग घंटों सुनते रहते हैं।
सामाजिक न्याय का मसीहा
लालू को बिहार में पिछड़े वर्गों और दलितों का मसीहा कहा जाता है। उन्होंने यादव (14.26% आबादी) और मुस्लिम समुदाय को एक मंच पर लाकर बिहार की सियासत को नया आयाम दिया। उनकी नीतियों ने दलितों को पंचायतों में हिस्सेदारी दी और मुसहर समुदाय को मतदान का अधिकार दिलाया। 2024 में उन्होंने मुस्लिम आरक्षण की माँग उठाई, जिसने फिर से सियासत को गर्म कर दिया।
लालू की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) आज भी बिहार की सबसे बड़ी पार्टियों में से एक है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी 77 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने विपक्ष के नेता के तौर पर शानदार प्रदर्शन किया। लालू की सियासत का आधार है सामाजिक न्याय और वे हमेशा कहते हैं, "जब तक साँस है, गरीबों की लड़ाई लड़ता रहूँगा।"
निजी जिंदगी और परिवार
लालू की शादी 1973 में राबड़ी देवी से हुई और उनके सात बेटियाँ और दो बेटे हैं। उनकी बेटी मीसा भारती का नाम उन्होंने इमरजेंसी के दौरान लागू मेनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (MISA) के नाम पर रखा। राबड़ी देवी 1997 से 2005 तक बिहार की मुख्यमंत्री रहीं और तेजस्वी यादव 2017 और 2022 में उपमुख्यमंत्री बने। लेकिन परिवार में तनाव भी कम नहीं रहा। तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच मतभेद अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। 2025 में तेज प्रताप का परिवार से अलगाव इसकी सबसे बड़ी मिसाल है।
लालू की सादगी भी मशहूर है। वे खाना बनाना, लोक संगीत सुनना और कुश्ती देखना पसंद करते हैं। एक बार उन्होंने कहा, "मैं नेता नहीं, गाँव का बेटा हूँ। मेरे लिए बिहार की मिट्टी ही सबकुछ है।" उनकी ये बातें उन्हें जनता से जोड़ती हैं।
लालू का प्रभाव
लालू की लोकप्रियता सिर्फ सियासत तक सीमित नहीं है। बॉलीवुड में उनकी नकल करने वाले कलाकारों की कमी नहीं। 2004 में "पद्मश्री लालू प्रसाद यादव" नाम की फिल्म बनी, जिसमें लालू ने कैमियो रोल किया। उनके नाम पर लालू पशु आहार, लालू चॉकलेट और यहाँ तक कि लालू गुड़िया तक बिकती हैं। मशहूर फिल्ममेकर महेश भट्ट ने एक बार कहा, "लालू अगर नेता न होते, तो बॉलीवुड के सुपरस्टार होते।"
लालू की कामयाबी का राज है उनकी हाजिरजवाबी और जनता से जुड़ाव। एक बार रैली में किसी ने उनसे पूछा, "लालू जी, आप इतना मजाक कैसे करते हैं?" उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया, "जिंदगी को मजाक समझो, तो हर मुश्किल आसान लगती है!" उनकी ये बात आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
2025 में लालू की सेहत ठीक नहीं है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद वे कम सक्रिय हैं, लेकिन उनकी सियासत अभी भी जिंदा है। बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने अच्छा प्रदर्शन किया और 2025 के बिहार चुनाव में भी पार्टी मजबूत दावेदार है। लालू ने हाल ही में कहा, "बीजेपी को बिहार में हराने के लिए मैं आखिरी साँस तक लड़ूँगा।"
लालू प्रसाद यादव की कहानी एक गाँव के लड़के की हिम्मत, मेहनत और हौसले की कहानी है। उन्होंने बिहार की सियासत को नया रास्ता दिखाया, गरीबों की आवाज उठाई और रेलवे जैसे घाटे के कारोबार को चमकाया। हाँ, विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा, लेकिन लालू ने हर बार हँसते हुए मुश्किलों का सामना किया। उनके भाषण आज भी लोगों को हंसाते और सोचने पर मजबूर करते हैं। 11 जून को उनका जन्मदिन न सिर्फ एक तारीख है, बल्कि एक ऐसे शख्स का जश्न है, जिसने सियासत को देसी रंग दिया। लालू की कहानी हमें सिखाती है कि अगर दिल में जुनून हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं।
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