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Premanand Ji Maharaj Biography: भक्ति में विलीन वो आत्मा, जिन्हें लोग कहते हैं प्रेमानंद महाराज, एक साधक की अनसुनी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में
Premanand Ji Maharaj Ka Jivan Parichay: वृंदावन की पावन भूमि में निवास करने वाले प्रेमानंद महाराज के जीवन से जुड़ी कई बातें शायद आपको नहीं पता होंगीं आइये जानते उनके इस अध्यात्म के सफर के बारे में।
Premanand Ji Maharaj Ka Jivan Parichay
Premanand Ji Maharaj Ka Jivan Parichay: आज के दौर में जब भी किसी संत को सच्चे प्रेम, त्याग और साधना से जोड़ कर देखा जाता है, तो वृंदावन की पावन भूमि में निवास करने वाले प्रेमानंद महाराज का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। उनके प्रवचनों में सिर्फ शब्द नहीं होते, बल्कि उसमें राधा-कृष्ण की अनुभूति होती है। उनके चेहरे पर सदा एक दिव्य शांति और मुख से निकले हर वाक्य में भगवान की महिमा झलकती है।
लोग उन्हें संत मानते हैं, कुछ उन्हें दिव्य आत्मा कहते हैं। लेकिन प्रेमानंद जी महाराज खुद को राधा रानी का सेवक मानते हैं। बस एक माध्यम, जो लोगों को भक्ति की राह दिखा सके, वो जिनकी एक झलक पाने के लिए हजारों श्रद्धालु वृंदावन की गलियों में घंटों इंतजार करते हैं, जिनके शब्दों से भक्तों के हृदय पिघलते हैं, जिनके प्रवचन सुनकर केवल आंखें नहीं, आत्मा भी भीग जाती है। ऐसे हैं प्रेमानंद जी महाराज। पर क्या आप जानते हैं कि इस आध्यात्मिक व्यक्तित्व के पीछे कितने संघर्ष, त्याग और तपस्या की कहानी छिपी है?
कानपुर के एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मा वह बालक कैसे साधना करते-करते राधा वल्लभ संप्रदाय का आदर्श बन गया? कैसे वाराणसी के घाटों से शुरू हुई भक्ति की यह यात्रा वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर में जाकर पूरी समर्पण में बदल गई? कैसे एक युवा ब्रह्मचारी ने बीमारी से टूटने के बजाय भक्ति में अपनी दोनों किडनियों तक को "राधा-कृष्ण" नाम देकर जीवन के अंतिम क्षणों तक सेवा में रहने का प्रण लिया? जानिए प्रेमानंद जी महाराज का संन्यासमय जीवन और आध्यात्मिक यात्रा के बारे में विस्तार से -
बचपन से ही था अध्यात्म की ओर खास झुकाव
'जिसने प्रेम को समझ लिया, वही सच्चा भक्त कहलाया'— इस वाक्य को अपने जीवन का सार बना चुके हैं प्रेमानंद जी महाराज। उनकी कहानी सिर्फ एक साधु की नहीं, बल्कि एक ऐसे सन्यासी की है, जिसने सांसारिक मोह को त्याग कर राधा-कृष्ण की भक्ति में अपना तन, मन और जीवन समर्पित कर दिया।
जब बच्चे खेल-कूद में खोए रहते हैं उस उम्र में एक बालक ने अपनी आत्मा की पुकार सुनी। कानपुर की5 पवित्र भूमि पर जन्मा यह बालक आगे चलकर 'प्रेमानंद महाराज' के नाम से समूचे भारत में भक्ति, त्याग और सेवा की प्रतिमूर्ति बन गया। श्रीराधा-कृष्ण की भक्ति में लीन होकर उन्होंने जो जीवन जिया वह न केवल एक सन्यासी की गौरव गाथा है, बल्कि आत्मा की परम शांति की खोज का भी प्रमाण भी है।
प्रारंभिक जीवन- सात्विक परिवार से साधना की ओर
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के अखरी गांव, सरसोल ब्लॉक में हुआ था। उनके परिवार का मूल नाम पांडे था और बचपन में उनका नाम रखा गया था अनिरुद्ध कुमार पांडे।
उनके पिता श्री शंभू पांडे और माता श्रीमती रामा देवी दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के थे। विशेष बात यह थी कि उनके दादा स्वयं एक सन्यासी थे, जिनकी आध्यात्मिकता का गहरा प्रभाव प्रेमानंद जी के जीवन पर पड़ा।
धार्मिक शिक्षा और चिंतन की शुरुआत
कानपुर में ही उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाल्यावस्था से ही उनका झुकाव वेद, पुराण, रामायण और भागवत जैसे धर्मग्रंथों की ओर अधिक था। पारिवारिक वातावरण में भक्ति और साधना का रंग ऐसा चढ़ा कि उन्होंने बचपन में ही ध्यान और मौन साधना करना शुरू कर दिया।
केवल 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार ‘आर्यन ब्रह्मचारी’ के नाम से दीक्षा ली। ये वह समय था जब उन्होंने पूरी तरह से सांसारिक जीवन को त्यागकर सन्यास की राह पकड़ ली थी। कुछ वर्षों बाद, उन्होंने राधा वल्लभ संप्रदाय के प्रसिद्ध संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज के सान्निध्य में दीक्षा ली और उनका नया नाम पड़ा – प्रेमानंद महाराज।
वाराणसी में भक्ति की तपोस्थली- तुलसी घाट
सन्यास लेने के बाद प्रेमानंद जी का शुरुआती समय अत्यंत कठिनाइयों में बीता। उन्होंने कुछ समय नंदेश्वर धाम में बिताया और फिर वाराणसी (काशी) जा पहुंचे। काशी में तुलसी घाट पर एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्होंने दिन-रात शिव उपासना और श्रीहरि स्मरण में बिताए। वो गंगा में तीन बार स्नान करते और 10-15 मिनट प्रतिदिन किसी से भोजन प्राप्ति की आशा में बैठते थे। यदि कोई भोजन दे दे तो ठीक, अन्यथा सिर्फ गंगाजल पीकर दिन बिताते।
रासलीला ने बदली जीवन की दिशा
वाराणसी में एक दिन उन्होंने हनुमान विश्वविद्यालय में आयोजित चैतन्य लीला और रासलीला देखी, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। अब वे केवल शुद्ध ज्ञानमार्गी नहीं रहे, बल्कि राधा-कृष्ण की भक्ति में लीन एक भक्ति योगी बन गए। इसी उत्कंठा ने उन्हें काशी से वृंदावन खींच लाया।
वृंदावन का राधावल्लभ मंदिर और भक्ति साधना की शुरुआत
वृंदावन में उन्होंने पहले बांके बिहारी मंदिर में साधना की और फिर उनकी आत्मा को शांति मिली राधावल्लभ मंदिर में। यहीं उनकी भेंट हुई श्रीहित गौरांगी शरण महाराज से। ये वह पल था जब प्रेमानंद जी को जीवन की अंतिम दिशा प्राप्त हुई। लगभग 10 वर्षों तक उन्होंने अपने गुरु के सान्निध्य में साधना की और यहीं उन्होंने श्रीराधा राधावल्लभ संप्रदाय में विधिवत दीक्षा ली।
सेवा और समाज कार्य में शामिल हैं प्रेम का विस्तार
प्रेमानंद जी महाराज का जीवन केवल ध्यान और साधना तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने समाज के निचले तबकों गरीबों, अनाथों, वृद्धों की सेवा को भी अपना धर्म माना। वे जहां भी जाते, सेवा और प्रेम का संदेश देते। उनका मानना है कि 'सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं' और 'सच्ची भक्ति वहीं है जो दूसरों के कष्ट हर ले।
किडनी की बीमारी भी नहीं रोक सकी भक्ति
युवावस्था में 35 वर्ष की आयु में एक बार उन्हें गंभीर पेट का संक्रमण हुआ। रामकृष्ण मिशन अस्पताल में जांच में पता चला कि उनकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं और अब वे गिने-चुने वर्षों के मेहमान हैं।
लेकिन वे न कभी टूटे और न रुके। डायलिसिस की प्रक्रिया आज भी उनके साथ चलती है, फिर भी वे हर दिन प्रवचन देते हैं, भक्ति करते हैं और लोगों को प्रेम और सेवा का मार्ग दिखाते हैं। दिल को छू लेने वाली बात यह है कि उन्होंने अपनी किडनियों को ‘राधा’ और ‘कृष्ण’ नाम दिया है। जब कई भक्तों ने उन्हें अपनी किडनी देने की पेशकश की, तब उन्होंने नम्रतापूर्वक मना कर दिया। उनका कहना था: “मेरे राधा-कृष्ण ही मुझे जिंदा रखे हुए हैं।”
श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम- उनका स्थायी निवास
वृंदावन के वराह घाट पर स्थित श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम अब प्रेमानंद जी महाराज का स्थायी निवास है। प्रतिदिन भोर में तीन बजे वे छटीकरा रोड से रमणरेती तक दो किलोमीटर की पदयात्रा करते हैं। उनके साथ हजारों भक्त जुड़ जाते हैं।पहले वे पूरी वृंदावन परिक्रमा करते थे। लेकिन अब स्वास्थ्य कारणों से यात्रा सीमित कर दी गई है।
देश की दिग्गज हस्तियां हैं प्रेमानंद जी महाराज की प्रमुख अनुयायी
उनके भक्तों में केवल आम श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि समाज की प्रमुख हस्तियां भी शामिल हैं।जिनमें क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी अनुष्का सिंह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत, योग गुरु राम देव जैसे बड़े नाम के साथ भी उनके गुप्त रूप कई ऐसी हस्तियां इनकी अनुयायी हैं और उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रेरित रहते हैं।
प्रेमानंद महाराज की शिक्षाएं और संदेश- कलियुग में जप की महिमा
प्रेमानंद जी महाराज का सबसे प्रमुख संदेश है – 'कलियुग में श्रीहरि नाम का जप ही सबसे बड़ा उपाय है।' उनका मानना है कि कठिन से कठिन समय में केवल नामस्मरण और भक्ति ही हमें पार लगा सकती है। वे रोज सुबह-शाम जप, ध्यान और श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करते हैं। उनके प्रवचन इतने प्रभावशाली होते हैं कि सुनने वाले की आत्मा तक झंकृत हो जाती है। प्रेमानंद जी महाराज का जीवन हमें यह सिखाता है कि भक्ति, त्याग और सेवा का मार्ग सरल नहीं है, लेकिन यदि निष्ठा हो तो हर बाधा पार की जा सकती है। जिस प्रकार उन्होंने अपने शरीर की तकलीफों को कभी अपने साधना-पथ में आड़े नहीं आने दिया, वह आज की पीढ़ी के लिए एक अमूल्य प्रेरणा है। उनका जीवन स्वयं एक जीवंत ग्रंथ है जहां हर पन्ने पर भक्ति, सेवा और अद्वितीय प्रेम अंकित है।उनकी भक्ति की सुगंध केवल वृंदावन तक सीमित नहीं, वह समूचे भारत में प्रेम और भक्ति की एक अलौकिक लहर बनकर फैल रही है।
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