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100 के नोट पर छपी विरासत की अद्भुत गाथा, एक उल्टे मंदिर में बसी भारतीय संस्कृति की पहचान
Rani ki Vav: ₹100 के नोट के पीछे छपी उस भव्य सीढ़ीदार संरचना पर क्या आपने ध्यान दिया है? ये भारतीय विरासत की गहराइयों में छिपी एक अमूल्य धरोहर है रानी की वाव।
Rani ki Vav (Image Credit-Social Media)
Rani ki Vav: हम सभी ने भारतीय करेंसी में शामिल ₹100 का नोट देखा है। बैंगनी रंग का, सुरक्षा धागों से युक्त, आधुनिक तकनीक से छपा हुआ। पर क्या आपने उस नोट के पीछे छपी उस भव्य सीढ़ीदार संरचना पर ध्यान दिया है? यह कोई साधारण चित्र नहीं, बल्कि भारतीय विरासत की गहराइयों में छिपी एक अमूल्य धरोहर है- रानी की वाव। गुजरात के पाटण ज़िले में स्थित यह अद्भुत बावड़ी भारत की जल स्थापत्य परंपरा, संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2018 में ₹100 के नोट के पीछे इसे छापकर इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी, लेकिन इस इमारत की कहानी उससे कहीं ज़्यादा गहराई रखती है। आइए जानते हैं इस इंजीनियरिंग और वास्तुकला की अनुपम मिसाल रानी की वाव के बारे में विस्तार से -
रानी की वाव का इतिहास, प्रेम श्रद्धा और स्थापत्य
रानी की वाव का निर्माण 11वीं सदी में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने करवाया था। यह न सिर्फ़ एक जल-संग्रहण प्रणाली थी, बल्कि अपने प्रिय की स्मृति में एक प्रेममयी श्रद्धांजलि भी थी। रानी उदयामति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा' खेंगार की पुत्री थीं। कहा जाता है कि जब राजा भीमदेव का निधन हुआ, तब रानी ने इस संरचना की योजना बनवाई और इसे उस समय की बेहतरीन स्थापत्य शैली में निर्मित किया। पाटण, जिसे पहले अन्हिलपुर कहा जाता था, गुजरात की तत्कालीन राजधानी थी और सोलंकी वंश का मुख्य केंद्र था। इस वंश की स्थापत्य शैली और कलात्मक दृष्टिकोण ने ‘रानी की वाव’ को एक अद्वितीय कृति बना दिया।
वास्तुकला: एक उल्टा मंदिर
रानी की वाव को सामान्य बावड़ियों की तरह एक जल-संग्रहण स्थल समझना इसकी महत्ता को कम आंकना होगा। यह वास्तव में एक 'उल्टे मंदिर' की भांति डिज़ाइन किया गया था। इसका अर्थ है कि यह ऊपर से नीचे की ओर एक मंदिर के रूप में विस्तृत होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति सीढ़ियों से नीचे उतरता है, वह एक तरह से आध्यात्मिक यात्रा पर होता है, जो जल की ओर ले जाती है। जल जो भारतीय परंपरा में पवित्रता और जीवन का प्रतीक है।
मारू-गुर्जर शैली में निर्मित यह बावड़ी 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और लगभग 27 मीटर गहरी है। इसमें सात स्तर हैं, और हर स्तर पर अत्यंत सुंदर नक्काशीदार स्तंभ और भित्तियां हैं। इसकी गहराई न सिर्फ़ भौतिक है, बल्कि सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक भी।
वाव एक मूर्तिकला दिव्यता की झलक
वाव की दीवारों और स्तंभों पर बनी नक्काशियां विशेष रूप से ध्यान खींचती हैं। इनमें भगवान विष्णु के दशावतारों - राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि आदि के रूपों को खूबसूरती से दर्शाया गया है। यह मूर्तिकला न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि उस काल के शिल्प कौशल की उत्कृष्टता को भी प्रकट करती है। यह संरचना नारी-शक्ति, भक्ति, स्थापत्य और जल-संस्कृति का संगम है। भारत में ऐसे अनेक बावड़ियां हैं, लेकिन ‘रानी की वाव’ को इनमें सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
सरस्वती नदी और वाव के पुनरुद्धार की कहानी
कभी यह वाव सरस्वती नदी के जल से परिपूर्ण रहती थी। परंतु समय के साथ नदी लुप्त हो गई और वाव गाद में दबती चली गई। कई सदियों तक यह भूमिगत रही और लगभग सात शताब्दी बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसका पुनरुद्धार किया। ASI ने न सिर्फ़ इसकी सफाई और पुनर्संरचना की, बल्कि इसकी डिजिटल डॉक्यूमेंटेशन भी सायआर्क और स्कॉटिश टेन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की सहायता से किया। यह कार्य वैश्विक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में भारत की महत्वपूर्ण पहल है।
यूनेस्को मान्यता: वैश्विक मंच पर भारत की धरोहर
22 जून 2014 को यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। इस मान्यता के साथ ही इसे 'स्टेपवेल्स की रानी' की उपाधि मिली। एक ऐसी संरचना जो भूमिगत जल प्रबंधन की भारत की परंपरागत समझ और निर्माण तकनीकों की बेजोड़ मिसाल है।यूनेस्को ने इसे 11वीं सदी की भूमिगत स्थापत्य शैली का सबसे परिपक्व उदाहरण माना और जल संसाधन प्रबंधन की दृष्टि से इसे अनुकरणीय बताया। इसकी यह मान्यता न केवल भारत के ऐतिहासिक गौरव की पुष्टि है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस तरह हमारी प्राचीन तकनीकें आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक का चयन: ₹100 का संदेश
RBI ने जब ₹100 के नए नोट के पीछे रानी की वाव को स्थान दिया तब यह केवल एक सुंदर छवि नहीं थी। यह एक संदेश था कि हमारी संस्कृति, परंपरा, विरासत का सम्मान किया जाना चाहिए और हमें अपने गौरवशाली अतीत से सीखना चाहिए।
नोट की पीठ पर रानी की वाव की तस्वीर यह संकेत देती है कि भारत केवल आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध राष्ट्र है। यह एक ऐसी कला और तकनीक की झलक है। जिसे दुनिया आज पर्यावरणीय संकट से जूझते हुए पुनः अपनाना चाहती है।
जल संरक्षण और वाव की प्रासंगिकता
आज जब भारत समेत पूरी दुनिया जल संकट की ओर बढ़ रही है, रानी की वाव जैसे जल संरचनाएं हमें यह सिखाती हैं कि कैसे प्राचीन काल में लोग पानी को सहेजने के लिए वैज्ञानिक और सुंदर तरीके अपनाते थे। बावड़ियहां न केवल जल संचय के लिए उपयोगी थीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र भी हुआ करती थीं। रानी की वाव हमें हमारी परंपराओं से जुड़ने और पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदार बनने की प्रेरणा देती है। यह बताती है कि जल केवल एक संसाधन नहीं बल्कि संस्कृति है।
नारीशक्ति और स्थापत्य का एक अनोखा संगम है स्थल
इस वाव का निर्माण एक रानी ने करवाया अपने पति की स्मृति में, समाज के उपयोग के लिए, भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह दर्शाता है कि भारतीय इतिहास में महिलाओं की भूमिका केवल घरेलू दायरे तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे समाज निर्माण, संस्कृति संरक्षण और तकनीकी विकास में भी अग्रणी थीं।
रानी उदयामति की यह पहल एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे नारी नेतृत्व प्राचीन काल में भी सृजनात्मक और समाजोपयोगी रहा है।
रानी की वाव केवल एक इमारत नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है। यह हमारी संस्कृति, हमारी तकनीक, हमारी भावनाओं और हमारे पर्यावरणीय दृष्टिकोण का समेकित रूप है। आज जब हम अपनी जड़ों की ओर लौटने की बात करते हैं, तो ऐसे स्थलों का अध्ययन और संरक्षण न केवल अतीत की खोज है, बल्कि भविष्य की राह भी है। नोट पर छपी यह तस्वीर केवल एक दृश्य नहीं, एक दृष्टि है हमें यह याद दिलाने के लिए कि जो धरोहर हमारी मिट्टी में है, वह विश्व के किसी भी आधुनिक चमत्कार से कम नहीं।
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