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‘शुद्ध देसी गाय’ के मूत्र, गोबर और दूध पर होगी रिसर्च

‘शुद्ध देसी गाय’ के गोबर, मूत्र और दूध में क्या अवयव होते हैं जिनका प्रयोग औषधीय, पोषण, कृषि और घरेलू सामानों में किया जा सकता है? केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस सवाल का जवाब खोज रहा है।

Shivakant Shukla
Published on: 19 Feb 2020 7:52 AM GMT
‘शुद्ध देसी गाय’ के मूत्र, गोबर और दूध पर होगी रिसर्च
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नई दिल्ली: ‘शुद्ध देसी गाय’ के गोबर, मूत्र और दूध में क्या अवयव होते हैं जिनका प्रयोग औषधीय, पोषण, कृषि और घरेलू सामानों में किया जा सकता है? केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस सवाल का जवाब खोज रहा है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने शिक्षण संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों से इस विषय में रिसर्च करने के प्रस्ताव मांगे हैं। आवेदन करने की अंतिम तिथि १४ मार्च 2020 है। इस प्रस्ताव पर विवाद भी खड़ा हो गया है। वैज्ञानिक सवाल उठा रहे हैं कि ये गायों के बारे में किये जाने वाले दावों की हकीकत जानने का प्रयास है कि किसी एजेंडा के तहत ये रिसर्च कराई जा रही है।

‘सक्रिय सिद्धांतों’ के बारे में कोई वैज्ञानिक जानकारी नहीं है

डीएसटी का कहना है कि अनेक प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों और पारंपरिक औषधि के प्रैक्टीशनरों द्वारा गठिया, दमा, हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर और धमनियों के ब्लॉकेज तक के इलाज के लिए देसी गायों के अवयवों से बने उत्पादों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती रही है लेकिन इन दावों की प्रमाणिकता सिद्ध करने का कोई खास वैज्ञानिक शोध नहीं है। मिसाल के तौर पर गोमूत्र के प्रयोग की काफी सलाह दी तो जाती है लेकिन गोमूत्र में समाहित ‘सक्रिय सिद्धांतों’ के बारे में कोई वैज्ञानिक जानकारी नहीं है।

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डीएसटी चाहता है कि फ्लोर क्लीनर, टूथपेस्ट, हेयरऑयल, शैम्पू और मच्छरमार दवा जैसे घरेलू उत्पाद में देसी गाय के अवयवों के इस्तेमाल को ‘प्रभावी, सस्ते व पर्यावरण के अनुकूल मानकीकृत’ करने के लिए शोध किया जाए। बाजार में ऐसे कई आइटम उपलब्ध हैं लेकिन उनपर कोई, वैज्ञानिक शोध नहीं हुआ है। विभाग ने अकादमिक और शोध संस्थानों के अलावा विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबंधित सक्षम एनजीओ से शोध प्रस्ताव मांगे हैं।

पहले भी हुए हैं प्रयोग

गो-विज्ञान के बारे में डीएसटी का ये कोई अनोखी पहल नहीं है। २०१७ में विभाग ने पंचगव्य पर शोध व वैज्ञानिक मान्यता के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत की थी और विशेषज्ञों का राष्ट्रीय पैनल गठित किया था। पंचगव्य का मतलब गोबर, गोमूत्र, दूध, घी व दही होता है।

2002 से 2004 के बीच वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने नागपुर स्थित एनजीओ ‘गोविज्ञान अनुसंधान केन्द्र’ के साथ मिल कर काम किया था और गोमूत्र संबंधी दो पेटेंट हासिल किये थे। एक पेटेंट में दावा किया गया था कि गोमूत्र से एंटीबायोटिक्स की एक्टिविटी बढ़ती है जबकि दूसरे पेटेंट में बताया गया था कि गोमूत्र में एंटी एलर्जिक और एंटी इन्फेक्टिव गुण होते हैं।

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Shivakant Shukla

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