कभी रातों में टिमटिमाते थे जुगनू, अब कहां गए.. कौन है इसका जिम्मेदार? जुगनुओं का गायब होना है किस बात का संकेत...

Fireflies twinkled at night: अब जुगनू कहीं नहीं दिखते और अगर कहीं दिख भी गए तो आप सीधा ये समझ जाइये कि उस जगह की हवा, मिट्टी और पानी आज भी शुद्ध है।

Newstrack          -         Network
Published on: 9 May 2025 5:50 PM IST
Fireflies twinkled at night
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Fireflies twinkled at night (photo: social media)

Fireflies twinkled at night: बचपन के वो मज़ेदार किस्से जब गर्मी की छुट्टियों की रातें घर की छत पर बिताई जाती थीं, जब आसपास के बागों की झाड़ियों के पास या तालाब किनारे जुगनू टिमटिमाते नजर आते थे। उन दिनों आसमान में जगमगाते सितारों के साथ जुगनुओं को देखना कितना अच्छा लगता था। पर अब ज़रा सोचिए, कि आपने आखिरी बार जुगनू कब देखा था? शायद... कई सालों पहले, या ठीक से याद भी ना हो। लेकिन आज के बच्चों को शायद ही इस चमकते जीव के बारे में कुछ भी पता हो। अब जुगनू कहीं नहीं दिखते और अगर कहीं दिख भी गए तो आप सीधा ये समझ जाइये कि उस जगह की हवा, मिट्टी और पानी आज भी शुद्ध है। अब सवाल ये खड़ा होता है कि आखिर जुगनू क्यों गायब हो गए?जानने के लिए ये लेख पूरा पढ़े...

क्या होते हैं जुगनू?


भारत में जुगनुओं की तकरीबन 50 प्रजातियां पाई जाती हैं, जबकि दुनियाभर में इनकी संख्या 2200 के आसपास है। लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस सर्वे नहीं हुआ है कि भारत में पाई जाने वाली प्रजातियां कहाँ-कहाँ मौजूद हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (Wildlife Institute of India) के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. वी. पी. उनियाल के मुताबिक, जुगनू को अंग्रेज़ी में ‘फायरफ्लाई’ या ‘लाइटनिंग बग’ कहा जाता है। हालांकि कीट विज्ञान के वर्गीकरण के मुताबिक, ये न तो बग हैं और न ही फ्लाई, बल्कि ये बीटल्स (beatles) होते हैं यानि कि यह एक तरह का कीट है, जो अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करता है।

जुगनू क्यों हैं आवश्यक ?

जब हम बीमार पड़ने वाले होते हैं तो हमारा शरीर पहले से ही हमें कई संकेत देने लगता हैं, जैसे कि बुखार, कमजोरी या थकान। ठीक उसी तरह से जुगनू भी हमारे वातावरण के ‘बायो इंडिकेटर’ (bio indicator) हैं यानी ऐसे जैविक संकेतक जो यह बताने की क्षमता रखते हैं कि कोई जगह, इलाका या स्थान स्वच्छ और जैविक रूप से समृद्ध है या नहीं।


एक रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुगनू केवल वहीँ पाए जाते हैं जहां का पर्यावरण शुद्ध होता है। ये पेड़-पौधों के पत्तों और मिट्टी के नीचे अंडे देते हैं, इसलिए उन्हें अंडे देने और बढ़ने के लिए कीटनाशक रहित और जैविक मिट्टी की आवश्यकता होती है। इनके लार्वा और प्यूपा कई हफ्तों तक मिट्टी में रहते हैं, फिर धीरे-धीरे विकसित होकर उड़ते हैं और टिमटिमाते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में अगर ज़रा सी गंदगी या प्रदूषण हो तो ये इनके जीवनचक्र मेंबाधा बन सकता है। यही वजह है कि अब शहरों और यहां तक कि गांवों में भी जुगनू कहीं भी दिखाई नहीं देते क्योंकि अब लगभग हर जगह का वातावरण पहले जैसा नहीं रहा।

किसानों के प्रिय मित्र होते थे जुगनू

कई कीट विशेषज्ञ के मुताबिक, जुगनू केवल जगमगाने वाले जीव नहीं, बल्कि प्राकृतिक कीट नियंत्रणकर्ता (bio-controller) भी हैं। ये फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले शत्रु कीटों का नाश कर देते हैं। यानी ये किसानों की सहायता करते थे। जुगनू एक बहुत अच्छे शिकारी होते हैं। वे अपने भोजन के रूप में उन कीटों को खाते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन अब इनकी संख्या घट रही है, कारण है - शहरीकरण, प्रकाश प्रदूषण और रासायनिक कीटनाशकों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग।

क्यों हैं जगमगाते हैं जुगनू


जुगनुओं की सबसे बड़ी खासियत और आकर्षण उनकी रोशनी है। इनके पेट के हिस्से में एक एंजाइम पाया जाता है जिसे लुसिफेरेस (Luciferase) कहा जाता है। यह एंजाइम जब ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया करता है तो रासायनिक ऊर्जा रोशनी में परिवर्तित हो जाती है और यही प्रक्रिया जुगनुओं को चमकने की शक्ति देती है। जुगनुओं का जगमगाना मात्र सुंदर दिखना नहीं होता, बल्कि इसका एक विशेष उद्देश्य मेटिंग यानी प्रजनन (reproduction) होता है। इस प्रक्रिया के लिए नर जुगनू हवा में उड़ते हुए जगमगाते हैं और मादा जुगनू जमीन पर रहकर उनकी रोशनी का जवाब जगमगाकर ही देती है। इसी संवाद से उनके मिलन की प्रक्रिया पूरी होती है।

लेकिन अब कृत्रिम प्रकाश (artificial light) खासकर LED लाइट्स ने इस प्रक्रिया को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है। अब ज्यादा रोशनी के कारण मादा जुगनू नर की चमचमाहट को नहीं पहचान पातीं और उनका मिलन नहीं हो पाता, जिससे प्रजनन बाधित हो जाता है।

प्रकाश प्रदूषण: जुगनुओं का दुश्मन

पिछले कुछ सालों में हमारे आसपास की लाइटिंग का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। पहले जहां पीली, हल्की रोशनी का प्रयोग किया जाता था वहीँ अब हर जगह ब्राइट LED लाइट्स का प्रचलन है। घर के बगीचों, पार्कों, सड़कों और खेतों तक में अनावश्यक रूप से प्रकाश फैला हुआ रहता है। आज यही प्रकाश प्रदूषण जुगनुओं की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी है।

कीटनाशक और रसायन भी बड़ी वजह

कई सालों से गांवों में भी आधुनिक खेती का प्रभाव बढ़ रहा है। किसान अब हर तरह की फसल में कीटनाशक और रसायन डाल रहे हैं, जिससे मिट्टी का प्राकृतिक गुण नष्ट हो रहा है। ऐसे में जुगनू न तो वहां अंडे दे सकते हैं और न ही वहां जीवित रह सकते हैं। यही काऱण है कि अब खेतों में भी जुगनू नहीं दिखाई पड़ते।

क्यों आवश्यक है जुगनुओं का जीवन ?


कुछ लोग सोच सकते हैं कि जुगनू के न रहने से हमें क्या फर्क पड़ता है? लेकिन सच्चाई यह है कि हर जीव इस पृथ्वी के इकोसिस्टम का हिस्सा है। जुगनू केवल एक चमकने वाला कीट नहीं, बल्कि हमारी पर्यावरण का संतुलनकारी तत्व हैं। अगर ये नहीं होंगे तो उसकी भरपाई कोई और जीव नहीं कर सकता।

आज इनका कम होना ही इस बात का संकेत है कि हमारा वातावरण प्रदूषित हो चुका है। अगर हमने समय रहते ध्यान नहीं दिया, तो न केवल जुगनू, बल्कि और भी कई कीट-पतंगे, पशु-पक्षी धीरे-धीरे गायब हो जाएंगे और उसका असर सीधे तौर पर हमारी खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकी पर पड़ेगा।

जुगनुओं के जीवन के लिए हम कुछ आसान कदम उठा सकते हैं:

1. अपने घर के बाग-बगीचों और खेतों में आवश्यकता से अधिक लाइट न लगाएं।

2. कीटनाशकों और रासायनिक खादों का इस्तेमाल सीमित करें।

3. स्थानीय पौधों को अधिक मात्रा में लगाएं जो जुगनुओं के लिए अनुकूल होते हैं।

4. बायोडायवर्सिटी को प्रोत्साहन देने वाले कोशिशों में हिस्सा लें।

5. बच्चों को जुगनुओं और अन्य कीटों के महत्व के बारे में अवश्य बताएं और उन्हें जागरूक करें।

जुगनुओं का टिमटिमाना हो सकता है संभव

जुगनू केवल एक कीट नहीं, बल्कि प्रकृति की तरफ से हमें मिलने वाला एक संकेत है। उनका अस्तित्व में होना इस बात का प्रमाण है कि हमारा पर्यावरण अब भी शुद्ध, स्वच्छ और संतुलित है। लेकिन अगर हम अभी नहीं जागे, तो वो दिन दूर नहीं जब जुगनू केवल कहानियों और किताबों में ही रह जाएंगे। तो आज ही, बचपन की उन यादों को केवल यादों में ही न रहने दें बल्कि जुगनुओं को बचाने के लिए कदम उठाएं ताकि अगली पीढ़ी भी उन जगमगाते, टिमटिमाते पलों का लुत्फ़ उठा सके।

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