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World Turtle Day 2025: विश्व कछुआ दिवस की शुरुआत कैसे हुई और इसका इतिहास क्या कहता है , आइए जानें

World Turtle Day 2025: 'विश्व कछुआ दिवस' कछुओं के प्रति जागरूकता फैलाने और उनके संरक्षण के लिए हर साल 23 मई को मनाया जाता है।

Akshita Pidiha
Published on: 21 May 2025 3:00 PM IST
World Turtle Day 2025
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World Turtle Day 2025 (Image Credit-Social Media)

World Turtle Day 2025: धरती पर जीवन की उत्पत्ति के बाद अनेक प्रजातियाँ आईं और लुप्त हो गईं, लेकिन कुछ जीव ऐसे भी हैं जो लाखों वर्षों से धरती पर मौजूद हैं और आज भी अपनी धीमी लेकिन दृढ़ गति से जीवन की यात्रा पर निरंतर अग्रसर हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और रहस्यमय जीव है – कछुआ। इसकी दीर्घायु, शांत स्वभाव और दृढ़ खोल इसे अन्य जीवों से अलग बनाते हैं। कछुओं के प्रति जागरूकता फैलाने और उनके संरक्षण के लिए हर वर्ष 23 मई को 'विश्व कछुआ दिवस' मनाया जाता है।

यह दिवस 2000 में अमेरिकन टोर्टोइज़ रेस्क्यू (American Tortoise Rescue) नामक संगठन द्वारा शुरू किया गया था, जो लुप्तप्राय और संकटग्रस्त कछुओं को बचाने और उनके लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराने के क्षेत्र में कार्य करता है। इस दिन का उद्देश्य है लोगों को कछुओं के जीवन, उनकी विशेषताओं, खतरों और संरक्षण के उपायों के प्रति जागरूक करना।


कछुए का इतिहास बहुत पुराना है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कछुए धरती पर करीब 22 करोड़ साल पहले से मौजूद हैं, यानी ये डायनासोर के काल से भी पुराने हैं। इतने लंबे समय से अस्तित्व में रहना इस बात का प्रमाण है कि इन जीवों में समय और प्रकृति के अनुकूल ढलने की जबरदस्त क्षमता है।

विश्व कछुआ दिवस की शुरुआत वर्ष 2000 में अमेरिका के एक गैर-लाभकारी संगठन American Tortoise Rescue (ATR) द्वारा की गई थी। ATR की स्थापना 1990 में कछुओं और कछुवों के संरक्षण, पुनर्वास और देखभाल के उद्देश्य से की गई थी। ATR ने यह महसूस किया कि लोगों में कछुओं की स्थिति, उनके प्राकृतिक आवास और उनके साथ किए जा रहे शोषण के बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं है।

इसलिए, उन्होंने एक ऐसा दिन तय किया जो सिर्फ कछुओं और कछुवों को समर्पित हो — न केवल उनकी सुंदरता को सराहने के लिए, बल्कि उनके सामने मौजूद खतरों और संरक्षण की आवश्यकता को भी समझने के लिए

पारिस्थितिकीय भूमिका: जैव विविधता के रक्षक


कछुए और कछुवे पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

समुद्री कछुए


समुद्री कछुए जैसे ओलिव रिडले, ग्रीन टर्टल, लेदरबैक आदि समुद्री तटीय क्षेत्रों की सफाई में मदद करते हैं।ये मृत मछलियों और वनस्पतियों को खाते हैं, जिससे जल निकाय स्वच्छ रहते हैं।कछुए समुद्र तट पर घोंसले बनाकर समुद्र और भूमि के बीच पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करते हैं।

स्थलीय कछुवे

ये मिट्टी में बिल खोदते हैं, जिससे अन्य जीवों को भी शरण मिलती है।उनके बिल पानी के संग्रह और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में मदद करते हैं।


विश्वभर में कछुओं की लगभग 360 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कई प्रजातियाँ दुर्लभ हो चुकी हैं और कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन प्रजातियों में समुद्री कछुए विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं। दुनिया में समुद्री कछुओं की सात प्रमुख प्रजातियाँ पाई जाती हैं – ग्रीन टर्टल, लॉगरहेड, लेदरबैक, हॉक्सबिल, ऑलिव रिडले, फ्लैटबैक और केम्प्स रिडले। इनमें से छह को 'संवेदनशील' या 'संकटग्रस्त' श्रेणी में रखा गया है।

इनमें से लेदरबैक कछुआ सबसे बड़ा समुद्री कछुआ होता है, जिसकी लंबाई करीब 2 मीटर और वजन 900 किलो तक हो सकता है। वहीं, सबसे छोटे कछुए की लंबाई मात्र 10-12 सेंटीमीटर होती है। कछुओं की एक विशेषता उनकी लंबी उम्र है। सामान्यतः कछुए 50 से 80 साल तक जीवित रहते हैं, लेकिन कुछ स्थलचरी कछुए 150 से 200 वर्ष या उससे भी अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं। इतिहास में दर्ज सबसे दीर्घायु कछुआ ‘जोनाथन’ नामक एक सेशेल्स कछुआ है, जिसकी आयु आज लगभग 192 साल से अधिक है और वह अब भी जीवित है।

कछुए जीवन के हर पहलू में अद्भुत होते हैं। वे शाकाहारी होते हैं और पत्तियों, घास, समुद्री शैवाल, फलों और कीट-पतंगों को खाते हैं। समुद्री कछुए विशेष रूप से जेलीफ़िश और समुद्री पौधों का सेवन करते हैं। उनकी धीमी गति, शांत स्वभाव और खोल में छिपने की क्षमता उन्हें एक दर्शनिक प्रतीक भी बनाती है – "धीमा और स्थिर ही जीतता है"।

लेकिन इस शांत प्राणी के सामने आज अनेक संकट मंडरा रहे हैं। आधुनिक मानव गतिविधियों ने कछुओं के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर दिया है। जल प्रदूषण, प्लास्टिक कचरा, तटीय क्षेत्रों का अतिक्रमण, रोशनी का प्रदूषण और अवैध शिकार कछुओं की संख्या को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। समुद्र में फेंके गए प्लास्टिक को कछुए अक्सर जेलीफ़िश समझकर खा लेते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। इसी प्रकार, समुद्र तटों पर तेज कृत्रिम रोशनी नवजात कछुओं को भ्रमित कर देती है और वे समुद्र की बजाय शहरों की ओर भटक जाते हैं और वाहनों के नीचे आकर मर जाते हैं।

संरक्षण की आवश्यकता: संकट की स्थिति


वर्तमान समय में कछुओं और कछुवों को कई प्रकार के गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है:

अवैध व्यापार: कछुओं की खाल, मांस, अंडे और दवाओं में उपयोग के लिए तस्करी की जाती है।

पर्यावरण प्रदूषण: समुद्री प्लास्टिक और रसायनों से उनके आवास दूषित हो रहे हैं।

घरों में पालतू बनाना: शौक के लिए कछुओं को घरों में पालना उन्हें उनके प्राकृतिक परिवेश से दूर करता है।

घोषित विकास परियोजनाएं: नदियों पर बनाए जा रहे बांध, तटों पर रिसॉर्ट्स और अतिक्रमण से उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन: तापमान में बदलाव से अंडों का लिंग निर्धारण प्रभावित होता है, जिससे संतुलन बिगड़ता है।

विश्व कछुआ दिवस कैसे मनाया जाता है?

  • शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम
  • स्कूलों, कॉलेजों और चिड़ियाघरों में पोस्टर प्रतियोगिता, फिल्म स्क्रीनिंग, और जानकारी सत्र आयोजित किए जाते हैं।
  • कछुआ संरक्षण केन्द्रों में सहभागिता
  • पर्यावरण प्रेमी कछुओं को गोद लेने, उन्हें देखभाल केंद्रों में भेजने या स्वयंसेवक बनने का कार्य करते हैं।
  • प्राकृतिक आवासों की सफाई
  • समुद्र तटों की सफाई, प्लास्टिक कचरे को हटाना, और कछुओं के घोंसले के स्थानों को संरक्षित करना इस दिन का अभिन्न हिस्सा होता है।

सोशल मीडिया जागरूकता

लोग #WorldTurtleDay और #SaveTheTurtles जैसे हैशटैग्स के साथ कछुए संरक्षण से संबंधित जानकारी साझा करते हैं।

कछुओं के बारे में 7 रोचक तथ्य

सभी कछुए कछुए हैं, लेकिन सभी कछुए कछुए नहीं होते।

– कछुआ केवल ज़मीन पर रहने वाला होता है, जबकि अन्य कछुए जल में रहते हैं।

समुद्री कछुए चुंबकीय क्षेत्र की सहायता से जन्म स्थान तक लौटते हैं।

– यह अद्भुत प्रवृत्ति "नेस्टिंग साइट फिडेलिटी" कहलाती है।

कछुए 300 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

– रिकॉर्ड अनुसार कुछ कछुओं की उम्र 250 वर्ष से अधिक पाई गई है।

कछुओं का खोल हड्डियों से बना होता है।

– यह 50 से अधिक आपस में जुड़ी हड्डियों से बना होता है।

समुद्री कछुओं की 7 प्रमुख प्रजातियाँ हैं, जिनमें 6 संकटग्रस्त हैं।

अवैध व्यापार और पारंपरिक चिकित्सा कछुओं के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

कछुए अच्छे पालतू जानवर नहीं होते क्योंकि वे स्वतंत्रता और प्राकृतिक परिवेश में फलते-फूलते हैं।

विश्व कछुआ दिवस केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है कि अगर हमने अभी भी कछुओं के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो जल्द ही ये जीव केवल किताबों और संग्रहालयों में ही देखने को मिलेंगे। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का हर घटक, चाहे वह धीमी चाल वाला कछुआ ही क्यों न हो, हमारे जीवन के लिए अनिवार्य है।

इन सभी संकटों के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास हो रहे हैं। विभिन्न देशों की सरकारें कछुओं के संरक्षण के लिए कानून बना रही हैं, समुद्री तटों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जा रहा है, प्लास्टिक उपयोग पर नियंत्रण लगाने की पहल हो रही है और कई स्वयंसेवी संस्थाएं कछुओं को बचाने में सक्रिय हैं।

ओडिशा के गहिरमाथा तट


भारत में भी ओडिशा के गहिरमाथा तट को ऑलिव रिडले कछुओं का सबसे बड़ा प्रजनन क्षेत्र माना जाता है। हर साल हजारों कछुए यहाँ अंडे देने आते हैं और फिर समुद्र की ओर लौट जाते हैं। भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कछुओं को संरक्षित श्रेणी में रखा गया है और इनके शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध है।

कछुआ दिवस न केवल जागरूकता का दिन है, बल्कि यह आत्मचिंतन का अवसर भी है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी छोटी-छोटी आदतें जैसे प्लास्टिक का उपयोग, समुद्री तटों पर लापरवाही और पर्यावरण के प्रति उदासीनता किस तरह इन मूक प्राणियों के जीवन को संकट में डाल रही है। अगर हम उन्हें बचाना चाहते हैं, तो हमें उनके जीवन के प्रति संवेदनशील होना होगा।

कछुए न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में योगदान करते हैं, बल्कि हमें धैर्य, स्थिरता और जीवन की धीमी लेकिन सशक्त गति का पाठ भी पढ़ाते हैं। यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने कार्यों में संतुलन रखें, प्रकृति के प्रति श्रद्धा रखें और हर उस जीव की रक्षा करें जो इस धरती को जीवंत बनाता है।

अतः 23 मई को मनाया जाने वाला विश्व कछुआ दिवस केवल एक दिवस नहीं, बल्कि एक चेतावनी और संकल्प है – कि हम अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के किसी भी घटक को नष्ट नहीं होने देंगे। हम कछुओं की धीमी गति का सम्मान करेंगे और उनके साथ अपनी धरती साझा करेंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन अद्भुत जीवों को जीवित और सुरक्षित देख सकें।

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