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अमा जाने दो : अरे सरकार! आपने ही कर दिया पानी-पानी
नवल कान्त सिन्हा
कसम से ये बरसात भी न... मतलब कोई नियम क़ानून ही नहीं है। बादल भाई साहब कहीं बरस ही नहीं रहे हैं और कहीं बरस-बरस के बैंड बजाये हुए हैं। मुंबई को ही देखिए वहां ऐसी बरसात हो रही है कि जैसे बादलों को बरसने के लिए स्पेशल पैकेज मिला हुआ है। बादल भाई साहब के पास पुराना अनुभव भी होगा कि मुंबई ज्यादा बारिश झेल नहीं पाती। ड्रेनेज सिस्टम उतना चुस्त नहीं है कि पानी जल्दी निकल सके। देखिये न, गलती बादल की और झेलें देवेंद्र फडऩवीस, ये भी कोई बात हुई।
नेताजी भी क्या करें, भगवान पर इलज़ाम मढक़र काम चला रहा हैं। वजह भी है- भाई, बादल तो भगवान के इशारे पर ही बरस रहे होंगे, कोई मुंबई की नगर पालिका ने तो कहा नहीं होगा। लोवर परेल में पानी नहीं भरेगा क्या, कि जब नाम ही लोवर है। इसमें पिछली कांग्रेस सरकार और आज की भाजपा सरकार की क्या गलती, ये तो सरासर भगवान की गलती है। जमीन क्यों नीची बनायी, बनायी तो पानी क्यों बरसाया।
मामला साफ़ है कि महाराष्ट्र सरकार इज्ज़त भगवान ही बचा सकता है। लेकिन भगवान से कहे कौन! और भगवान मिलेंगे कहां! मुझे पता नहीं कि भाजपा के किस नेता ने सरकार की इज्ज़त बचाने के लिए प्रार्थना की। बहरहाल भगवान बरसात रोकने के मूड में तो नहीं दिखे लेकिन इज्ज़त बचाने का एक लॉजिक जरूर दे दिया। अमेरिका के ह्यूस्टन में ऐसा बारिश और तूफ़ान आया कि वहां तबाही मच गयी। पूरा इलाका इस तबाही से थर्रा उठा। हर जगह पानी और बाढ़। अब तो जवाब बनता है न कि अमेरिका में इतनी बड़ी तबाही आयी जबकि आमची मुंबई में तो केवल जलभराव हुआ। तो जलभराव को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने इज्ज़त बचाने के सभी उपाए कर डाले।
इधर उत्तर प्रदेश में अलग ही मामला है। यहाँ मंत्री ने अपनी टपकती छत की कहानी ट्वीट कर योगी सरकार की आबरू पानी-पानी कर दी। दिल्ली की राजनीति से लखनऊ इम्पोर्ट होकर आये मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने ट्विटर पर अपना रोना रोया कि उनके बंगले की छत टपक रही है और उनकी कोई सुनने वाला नहीं। अब ये खबर तो पत्रकारों ने पैदा नहीं की तो योगी जी हमसे कैसे नाराज़ हो सकते हैं। फिर हमने तो सरकार के हित में ये सोच रखा है कि अगर कोई आम नागरिक ये कहेगा कि जब मंत्री की नहीं सुनी जा रही तो हमारी कौन सुनेगा... तो मैं उसके मुंह पर उंगली रख दूंगा और कहूंगा- अमा जाने दो।