×

अंतत: बैलून हो तो अनिल बलूनी जैसा, एक अनार बाकी बीमार

raghvendra
Published on: 16 March 2018 6:12 PM IST
अंतत: बैलून हो तो अनिल बलूनी जैसा, एक अनार बाकी बीमार
X

आलोक अवस्थी

भाई अनिल बलूनी .. बैलून बनकर उत्तराखंड के आसमान पर छा गए.. राज्यसभा के आधा दर्जन दावेदार हाथ मलते रह गए..जा पर कृपा राम की होई.. बस हो गई कृपा.. एक अनार बाकी बीमार।

किस-किस ने अरमान नहीं संजोए थे.. जज साहब से लेकर तीरथ भाई तक.. लेकिन ऑर्डर तो अनिल जी के पक्ष में आया बाकी सारे यात्री तीर्थ यात्रा पर.. प्रदेश अध्यक्ष जी भी हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे तो संगठन मंत्री नरेश बंसल जी सोशल मीडिया पर अपने नाम के जुमले गढ़वा रहे थे.. राज्य से बाहर होकर भी राज्यसभा में पहुंचना कोई अनिल भाई से सीखे..। सबका मालिक एक यह तो पूरी भाजपा जानती है लेकिन उस मालिक की नजर में एक बन जाना ही तो असली परीक्षा है। बाकी तो श्रद्धा और सबूरी की गोल्डन लाइन है ही समझने और जीवन में उतारने के लिए.. इस लिहाज से अनिल जी अव्वल नंबर से पास हो गए.. बाकी श्रेष्ठ जन अपनी-अपनी कापी खुद ही जांच लें तो बेहतर रहेगा.. राजनीति भी गजब है जो ना करवाए.. नीति कोई बताए राज कोई चलाए.. नारे कोई लगाए.. माला कोई पहन जाए.. बाकी हाय-हाय, हाय-हाय छोटा सा राज्य.. ढेर भर नेता.. कुछ अपने कुछ अपनाए.. सारे के सारे कुर्सी के सहारे.. वो तो देवभूमि है जो एक दूसरे को पचाए ले रही है, वरना सुर असुर संग्राम न जाने कब हो गया होता..।

भाई जी और दादू लगातार नूराकुश्ती करके माहौल गर्म किए रहते हैं वरना ऐसे राजनीतिक झटके हिला देते.. भूस्खलन की आदत पड़ी है उत्तराखंड को.. बर्दाश्त करने की परंपरागत आदत है.. चलो क्या कर सकते हैं अनिल बलूनी अपने ही पहाड़ के हैं.. शुक्र मनाइए कि मालिक ने अनिल जैन या अनिल गुप्ता जी को नहीं भेज दिया वरना क्या कर लेते? बस इसी को सोचकर संतोष करना ही पड़ेगा..।

संघ परिवार में चलो अब नाम से आगे केवल जी लगाने की परंपरा नहीं रही.. वरना.. आफत ही हो जाती चलो अपने पहाड़ के अनिल जी उर्फ बलूनी जी आसमान संभाल लिया..।

मालिक का क्या है आप एतराज भी तो नहीं उठा सकते। उत्तर प्रदेश की ओर देखकर राहत कर लो.. सारे दिग्गज झंडू बाम मल रहे हैं। मजाल है कोई आवाज निकाले..। राम भक्त विनय कटियार से लेकर चौक वाले बाबूजी तक दम साधे तमाशा देख रहे हैं..दिल्ली के कम चक्कर लगाए? समझदार लोग मौके की नजाकत समझते हैं.. अपना क्या है दाजू श्रद्धा और सबूरी पर कायम रहो.. मेहनत करते दिखो और मालिक पर निगाहें बनाए रखो तकदीर कभी भी खुल सकती है.. अद्भुत पार्टी है बड़े-बड़ों को जब ठिकाने लगा सकती है तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर चलने वाली योजना अंत्योदय के तर्ज पर सबसे अंत में पार्टी में शामिल होने वाले का उदय भी कर सकती है.. कुछ भी हो सकता है..। बस आपका बैलून हवा भरवाने के लिए तैयार होना चाहिए.. क्योंकि भाई जी अब हर व्यक्ति केवल एक आदत बैलून ही तो बनकर रह गया है जिसे मालिक पसंद करे हवा भरे और आसमान पर टांग दे.. एक समय था जब बहुतों ने अपने-अपने गुब्बारों में हवा भरने, तानने और उड़ाने की सुविधा दी थी.. अब सभी ऐसे महान लोग धराशाई पड़े हैं.. ऐसे ही दिव्य पुरुषों के लिए उर्दू की एक मशहूर लाइन मुलाहिजा हो

कितने कमजर्फ हैं ये गुब्बारे

चंद सांसों में फूल जाते हैं..

पाके आसमां की ऊंचाई

अपनी औकात भूल जाते हैं..

भाई जी समय बदल गया है आडवाणी, अटल जी का दौर अब विदा हुआ.. उड़े नहीं कि औकात दिखी नहीं.. न हो यकीन तो नेताओं की सूची उठा कर देख लो.. मन हल्का हो जाएगा.. बाकी आपकी मर्जी.. क्योंकि मालिक की मर्जी के आगे किसी की चलनी नहीं..।

(संपादक उत्तराखंड संस्करण)

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story