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Yogesh Mishra Special- "महाशक्ति बनने के लिए काम करने की आदत ड़ालनी होगी"

Yogesh Mishra
Published on: 23 Jan 2018 9:07 PM IST
Yogesh Mishra Special- महाशक्ति बनने के लिए काम करने की आदत ड़ालनी होगी
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Yogesh Mishra Special- "महाशक्ति बनने के लिए काम करने की आदत ड़ालनी होगी"

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और प्रगति समझने का आधार कार्यशील जनसंख्या होती है। भारत एक ऐसा देश है जहां कार्यशील जनसंख्या की तादाद निरंतर बढ़ रही है। यही नहीं, निर्भरता अनुपात भी काफी कम हुआ है। बावजूद इसके अगर देश प्रति व्यक्ति आय, जीडीपी सरीखे तमाम पैमानो पर पिछड़ता नज़र आ रहा है तो इसका सीधा सा मतलब है कि हम अपने कार्यबल को कार्य, हाथ को रोजगार दे पाने में सफल नहीं हो रहे हैं।

यह भी सही है कि इतने बड़े देश की इतनी जनसंख्या रोजगार मुहैया करा पाना बेहद मुश्किल काम है, क्योंकि हमारे यहां रोजगार का सीधा रिश्ता नौकरी से माना जाता है। हालांकि सरकार ने कौशल विकास मिशन, स्टार्ट अप, स्टैंड अप और मुद्रा लोन के मार्फत एक ऐसी शुरुआत की है कि जिससे हाथ को काम मिल सके। यही नहीं हर काम में गुणवत्ता पैदाकर उसका भुगतान पहले से कई गुना अच्छा हो सके। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया से तकनीकी शिक्षा को इस कदर अलग रखा गया कि इसके संकल्प पूरे नहीं हो पाए।

कौशल विकास की धारणा हमारे यहां एकदम नई नहीं हैं। हालांकि स्टार्ट अप और स्टैंड अप नरेंद्र मोदी के अभिनव प्रयोग हैं। देश में आई टीआई और पालीटेक्निक इसी मंशा से खोले गये थे कि छोटे छोटे कोर्स चलाकर युवाओं को रोजगार के लायक बना जा सके। इन संस्थानों में छह महीने से लेकर तीन साल तक के कोर्स चलते थे जिसमें टाइपिंग, शार्टहैंड, फिटर, प्लंबर, बिजली मैकेनिक, मोटर मैकेनिक सरीखे पाठ्यक्रम शामिल थे। लेकिन तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा संस्थानों के फैलाव ने इनकी प्रासंगिकता खत्म कर दी।

शुरुआत में तो बहुत अच्छा लगा कि जो बच्चे आईटीआई और पालीटेक्निक के कोर्स कर छोटी मोटी नौकरियां कर रहे थे वे बड़े तकनीकी डिग्रियों के हकदार हो गये। उद्योग को भी अधिक पढ़े और कुशल लोग मिलने लगे पर औद्योगिक विकास की हमारी दर तकनीकी शिक्षा से निकले लोगों की तुलना में साफ्टवेयर उद्योग को छोड़कर हर जगह बेहद धीमी थी। नतीजतन, बड़ी डिग्रियों वाले बच्चे आईटीआई और पालीटेक्निक के सर्टेफिकेट वाले बच्चों के पगार के स्तर पर आ गये। मांग और आपूर्ति का सिद्धांत बेमेल हो गया। यह एक क्षेत्र का उदाहरण है ऐसा ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हुआ।

नेशनल अकाउंट स्टैटिक्स के आंकडे बताते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण भारत का योगदान 48 फीसदी है जबकि ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति आय शहरी भारत से आधे से कम है। यह फलसफा महज इसलिए है क्योंकि हमने हुनरमंद सिर्फ शहरों की जरुरत के लिए ही पैदा किए हैं। ग्रामीण भारत शहरी भारत से अधिक युवा है। दोनों में तकरीबन छह फीसदा का अंतर है। देश में श्रम करने के काबिल आबादी में 58 फीसदी गांव में तथा 65 फीसदी शहरों में रहती हैं। कार्यशील जनसंख्या 15-64 वर्ष वर्ष के बीच मानी जाती हैं जिसकी तादाद भारत में 63.4 फीसदी बैठती है। परंतु हकीकत यह है कि भारत मे एक आदमी की कार्यशीलता महज 30-35 वर्ष की होती है। 20 वर्ष तक तो ज्यादातर आम लोग माता पिता पर निर्भर रहते हैं और 60 साल के बाद सेवा निवृति की संकल्पना इस कदर हावी हो जाती है कि आदमी कार्यशीलता के लिहाज से मिसफिट हो जाता है। हालांकि हमारे साहित्य में साठा को पाठा कहा गया है पर कार्यशीलता के लिहाज से यह गलता।

जब कोई व्यक्ति अपने अनुभव के सर्वोच्च शिखर पर होता है तब वह तंत्र के लिए मिसफिट हो जाता। जब वह ट्रायल और एरर के रुप में सीखता रहता है तब उसके सामने कार्यशीलता का फलक खुला मिलता है। जो 30-35 वर्ष कार्यशीलता के लिए भारत मे उपलब्ध हैं उसमें भी रोजगार से जुड़ा आदमी 8 घंटे से ज्यादा समय काम नहीं करता है वहीं व्यवसाय से जुडा आदमी 10 घंटे काम में लगाता है। इस लिहाज से देखें तो एक भारत जैसे विकासशील देश में स्वस्थ कार्यबल एक तिहाई काम करता है। अभी मौसम के लिहाज से काम करने की क्षमताओं के घटने बढ़ने, अवकाशों, हड़ताल, धरना-प्रदर्शन, लंच, चाय-पानी सरीखे कामों में काम के घंटे लगाए जाने को हम जोड़ ही नहीं रहे हैं।

हमारी अभिलाषा हमारा लक्ष्य हमारे विकास का उदाहरण चीन है। हम चीन के साथ अपनी अर्थव्यवस्था की तुलना करते हैं। बीते पंद्रह वर्षों में चीन के विकास की वजह काम के घंटो का अनिश्चित होना है। निरंतर काम। हमें सभी श्रम कानून भी चाहिए और विकास चीन सरीखा। चीन ने विकास के लिए सारे श्रम कानून बलाए ताक रख दिए हैं। हम विरोधाभासों में जीने के आदी है। हमें समृद्धि भी चाहिए और आराम भी। हमें विकास भी चाहिए पर उसकी कीमत अदा करने को हम तैयार नहीं हैं।

किसी अर्थव्यवस्था के समृद्धि के लिए अनिवार्य है कि उसके सभी सेक्टर खोले जाएं। भारत की अर्थव्यवस्था में तीन इंजन है- कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र। अमरीका के सीआईए फैक्टबुक के मुताबिक 2014 में कृषि क्षेत्र ने जीडीपी में 17.9 फीसदी का योगदान दिया था जबकि उद्योग और सेवा क्षेत्र ने क्रमशः 24.2 फीसदी और 57.9 फीसदी का योग दान दिया था वहीं चीन की जीडीपी में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र का योगदान क्रमशः 8.6, 39.8 और 51.6 फीसदी का था। वहीं साल 2015 में अमरीका की जीडीपी में कृषि का योगदान 1.05 फीसदी का था जबकि उद्योग का 20.5 फीसदी और सेवा क्षेत्र का 78.92 फीसदी का था। आंकडे बताते हैं कि कृषि क्षेत्र में हम अमरीका और चीन से आगे हैं। उद्योग के क्षेत्र मे चीन हमसे तकरीबन 15 फीसदी आगे है। हमारी अर्थव्यवस्था के इसके बाद भी तुलनात्मक रुप चीन से बहुत पीछे रह जाने की वजह सिर्फ इतनी सी है कि हमारे हाथ को काम नहीं है जो काम है वह कम घंटे का है और आदमी को अपनी कार्यबल का पूरा कालखंड नहीं मिल पा रहा है। आज 70 साल तक की उम्र का आदमी कामकाज के लायक बना रहता है। हमें 60 साल में कामकाज बंद करने की जगह अनुभवी व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार तमाम उन जगहों पर उपयोग करना चाहिए ताकि जीडीपी मे उसका योगदान बना रहे।

इस बात की कोशिश होनी चाहिए समूचे कार्यबल का योगदान जीडीपी में निरंतर रहे। मसलन, आप स्नातक पढ़ रहे बच्चों के पाठ्यक्रम में अनिवार्य रुप से कम से कम छह महीने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा देने की अनिवार्यता डालें ऐसे ही परास्थातक कर रहे बच्चों को माध्यमिक और परास्थातक से ऊपर की डिग्री कर रहे बच्चों को स्नातक में अध्यापन कार्य की अनिवार्यता डाल दी जाय तो शिक्षकों की कमी निदान भी हो जाएगा और जीडीपी में इन विद्यार्थियों का योगदान भी हो जाएगा। हमे तालीम पा रहे बच्चों का जीडीपी में योगदान सुनिश्चित करना चाहिए। अगर अपने कार्यशील जनसंख्या का जीडीपी में योगदान सुनिश्चित करने में सफल हुए तो आईएमएफ और बार्कले जैसी विश्व संस्थाओं के मुताबिक हम चीन को पछाड़ कर सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था बन सकते हैं और बने रह सकते हैं।



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Yogesh Mishra

Yogesh Mishra

Founder & Editor in Chief - Newstrack.com & Apnabharat.org

Journalism for Yogesh Mishra is not a profession but a mission. In his career, spanning over 26 years, he has served just not as journalist but an educationist and literary as well. Looking at journalism as an instrument of change, he has also highlighted corruption and problems faced in various sectors like education, health, water, sanitation and agriculture. The exposes to his credit which deserve mention include largest tax evasion in the country by Hasan Ali and the fraud committed by 25 Indians, while he was working for the Outlook magazine as the UP Bureau Head. The amount involved was whopping Rs 18,000 crores. He was the first to report the PMO’s involvement in the ‘2G Spectrum Scam’, during the UPA regime. Another commendable work by him is exposing the Commonwealth Games Scam along with the video footage of a meeting before the beginning of the tournament. The issue of banning the video is sub judice. His news item, “Uttar Pradesh ke sau gaon bhi Nirmal Gram Pusaraskar ke layak nahi” exposed how the state government wrongly claimed prizes for 1,269 villages. It led to the cancellation of the prizes. Even UNICEF research testified and led to discontinuation of the NIRMAL GRAM AWARDS. He is, presently Member of Fee Review committee set up by the government of Uttar Pradesh to fight menace of arbitrary fee structure in private schools across the state. Many of his suggestions concerning electoral reforms have been adopted and implemented by the Election Commission of India. He was a member of the ‘Navoday Vidyalaya Samiti’, review committee constituted by Govt. of India for the implementation of Sarv Siksha Abhiyaan in UP. Besides writing in national and international newspapers and magazines, he has taken up teaching assignments and served as a visiting faculty in about a dozen universities. Author of ten books, he has also received prestigious Madhu Limaye and Yash Bharti awards. His new goal is to set up a new media house. A beginning has been already made as he has launched a multi-lingual news portal and a weekly magazine, Apna Bharat.

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