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कौन सी आस्था छिपी है, इन सिरफिरों के समर्थन के पीछे
आपरेशन ब्लूस्टार धार्मिक स्थलों के दुरुपयोग की चरम परिणति के रूप में हमारे सामने आया था। यह बात दूसरी है कि यह उस गंदी एवं सत्तावादी राजनीति की भी परिणति था जिसने देश और समाज पर तमाम विसंगतियों एवं विषमताओं को थोपा। भिडंरवाला संत था ? भिडंरवाला हथियारों का जखीरा इकट्ठा करके अकाल तख्त की पवित्रता के साथ मजाक कर रहा था ? संतो की किस जमात ने स्वर्ण मंदिर जैसे ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल पर उसे हथियारों का जखीरा इकट्ठा करने का अवसर दिया था ? ये सारे प्रश्न हमारे उस समाज से हल होने चाहिए जिसने मुल्ला, पादरियों, पंडितों को विशेषाधिकार दे रखा है परन्तु ऐसा करने की जगह हम हिन्दू जागरण मंच, मुस्लिम एकता फोरम, सिख फोरम जैसे संकीर्ण धार्मिक मानसिकता के उलझावे में उलाये जा रहे हैं। मस्जिद में अजान कराने वाला मौलवी बोने लगा है - वोटों की फसल। वह व्यापारी हो गया है। मंदिरों में महंती करने वाले लोग भगवान की आड़ में अपनी अनैतिकता छिपाने में रत हैं। ये समाज की ठेके दारी करने लगे हैं। इन्हें संस्कारों और आचारों से कोई मतलब नहीं रह गया है। ये सभी सियासी हो गये हैं। सियासत का नशा इन पर चढ़ गया है। तभी तो श्रीनगर की दरगाह हजरतबल में आतंकवादी घुसपैठ कर बैठे। दरगाह में घुसे आतंकवादियों ने पेशकश की है कि कफ्र्यू हटा लिया जाए तो वे दरगाह और उसमें रखे पैगम्बर मोहम्मद के स्मृति चिन्ह जनता को सौंप देंगे। आखिर इन आतंकवादियों को कफ्र्यू हटाने से क्या लेना-देना है? वह महज यह कि वे भाग सकें। जिन लोगां के स्वयं की फरारी का मसला हजरतबल जैसी दरगाह में रखे पैगम्बर मोहम्मद के स्मृतिचिन्ह से ज्यादे महत्वपूर्ण हो उनकी धार्मिक आस्थाओं के बारे में अनुमान लगाना कठिन नहीं रह जाना चाहिए। फिर इन लोगों को पूजा स्थलों में प्रवेश का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ? ये वही लोग हैं जो लोग मुसलमानियत के लिए, इस्लाम के लिए, पाक जैसे एक राष्ट्र के रूप में कश्मीर को देखना और पाना चाहते हैं। जब पैगम्बर मोहम्मद साहब के सुरक्षित स्मृति चिन्ह वाली दरगाह को ये लोग उठाने को तैयार हैं तो फिर ये इस्लाम या मुसलमानियत की कितनी रक्षा करेंगे ? यह एक अहम् सवाल है। क्या इन सिरफिरों के हाथ किसी राष्ट्र या किसी धर्म को सौंपा जाना चाहिए ? नहीं। नमाज अदा करने वाले स्थान को ये लोग शरणगाह के रूप में प्रयोग करने पर आमदा है। अप्रैल में करांची में हुए ‘आर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक के कंट्रीज’ सम्मेलन के पहले भी कश्मीरी आतंकवादियों ने पुलिस आन्दोलन के दौरान हजरतबल से सुरक्षाबलों पर गोली चलायी थी। अल-जेहाद और जेके एलएफ हजरतबल से अपने दफ्तर भी चलाते रहे हैं। फिर इसके बाद दरगाह की पवित्रता का सवाल शेष रह कहां जाता है ? इन नापाक इरादों से धार्मिक स्थलों का प्रयोग करने के बाद धार्मिक आस्थाएं कितनी आहत होती हैं इसका अंदाजा हम नहीं लगा पाते हैं। 6 दिसम्बर को अयोध्या में जो कुछ हुआ उसमें दोषी लोगों ने ‘राष्ट्रीय शर्म’ का कार्य किया या नहीं यह निश्चित रूप से तय नहीं पाया गया परन्तु यह जरूर तय हुआ कि इस घटना से सामाजिक ढांचे में दरार लाने की कोशिश हुई। आज हजरतबल जैसी पवित्र दरगाह जहां हजरत मोहम्मद साहब के बाल सुरक्षित हों, उसे उड़ाने की धमकी उसी समुदाय के लोग दे रहे हों तो उसे किस शर्म से विभूषित करेंगे ? इससे क्या-क्या टूटेगा ? इससे किसकी-किसकी संवेदनाएं आहत होंगी ? यह कौन तय करेगा क्योंकि दूसरे धार्मिक सम्प्रदाय पर से तो अभी आरोपों का कीचड़ साफ भी नहीं हो पाया है और उसी समुदाय के ठेके दार जो उग्रवादियों को ऐसे पवित्र पूजा स्थल का उपयोग करने की सहमति देते हैं उनमें तो कोई नैतिक ताकत रह ही नहीं जाती है फिर उनसे ऐसे किसी विरोध या सामाजिक, धार्मिक संस्कार की बात करना बेमानी ही है।
इतना ही नहीं, धर्म के आधार पर निर्मित पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान की धार्मिक आस्थाएं कितनी नापाक हैं कि उसने श्रीनगर की पवित्र दरगाह को बचाने के लिए भारत सरकार को सहयोग देने की बात करने की जगह हजरतबल मस्जिद को घेरने के कार्रवाई की निन्दा की है। इसे उकसाने वाली कार्रवाई माना है। पाक के विदेश विभाग ने यह मांग की है कि भारत सरकार सेना को फौरन हटाये और हजरतबल परिसर को हुये नुकसान की फौरन मरम्मत कराई जाय। आखिर क्या कारण है कि पाकिस्तान सरकार को इस मुद्दे में बोलना पड़ा ? जबकि वहां की सरकार को पता है कि 15 अक्टूबर 1993 की शाम मस्जिद के उस कमरे जहां पवित्र बाल रखा जाता है, का ताला टूटा और वह बाल तब से गायब है। स्प है कि हजरत मुहम्मद साहब के बाल से ज्यादा आस्था पाक सरकार की उन उग्रवादियों में है जिनकी जान सांसत में फंसी है फिर तो पाक के इस्लामियत और हजरत साहब के प्रति आस्थाओं का खुलासा करने के लिए शेष नहीं बचता है।
11 जुलाई 1989 को हज के दौरान मक्का में पवित्र मस्जिद की ओर जाने वाली सड़क पर बम विस्फोट हुआ जिसमें 16 कुवैतियों का सर कलम कर दिया गया तथा 4 अन्य को सजा मिली फिर कौन सा मुंह लेकर इस्लामी सम्मेलन संगठन ओर इसके निकाय ‘वल्र्ड मुस्लिम लीग’ ने बहरीन में एक अपील जारी करके भारत सरकार से हजरतबल परिसर में सैनिक कार्रवाई न करने का आग्रह किया है। एक ऐसी स्थिति में जब धर्म के इन ठेके दारों को धर्म के नाम पर, हजरत साहब के स्मृति चिन्ह के नाम पर आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने को कहना चाहिए तब ये लोग भारत सरकार को सुझाव देने में लगे हैं ? इतना ही नहीं ये इस्लाम के ठेके दार विदेशों में बैठकर आतंकवादियों की भाषा बोलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। तभी तो ‘वल्र्ड मुस्लिम लीग’ के महासचिव डा. हामिद अल गाबिद ने भारत सरकार से नगर की घेराबंदी हटाने और सुरक्षाबलों द्वारा कश्मीर में किये जा रहे ‘दमन’ को बंद करने की बेशर्मी पूर्ण मांग की है।
इससे पहले 27 दिसम्बर 1963 को भी इस पवित्र दरगाह से हजरत साहब के पवित्र चिन्ह गायब हो गये थे लेकिन जनता के जबर्दस्त आन्दोलन के परिणामस्वरूप एक सप्ताह के अन्दर ही ये स्मृति चिन्ह अचानक वापस आ गये और आज जब मुस्लिम जनता को आन्दोलन करके मस्जिद को अपवित्र करने और करवाने वाले लोगों के खिलाफ जेहाद छेड़ देना चाहिए। तब उसकी जगह मस्जिद को धराशायी करने की धमकी देने वालों और राके ट लांचर से विस्फोट करने प्रयास करने वालों का मौन स्वीकार लक्षण के तर्ज पर स्वीकारोक्ति देने पर तुली है ? हजरतबल की स्थितियां आपरेशन ब्लू स्टार जैसी ही है। आतंकवादी गलत बयानबाजी के माध्यम से जनता को उनकी आस्थाओं को गुमराह करना चाह रहे हैं जिससे उनकी मंशा पूरी करने के लिए कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आएं। इससे अस्थिरता का वातावरण बनेगा।
दुनिया का कोई भी धर्म, धार्मिक स्थल का आतंकवाद के लिए प्रयोग, आतंकवादियों की धमकी को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं होना चाहिए अगर है तो उस धर्म को खारिज करना अनुचित नहीं होगा। ऐसे धर्म विदा हो जाए तभी उचित है। ऐसे पुरोहित, मौवी न रहे तभी श्रेष्ठ, क्यांेकि मनुष्यता ही धार्मिकता के लिए काफी हैं। क्यांेकि धर्मो ने काल्पनिक विश्वास निर्मित करके मनुष्य को गति मंद कर दिया गया है। धर्म, धर्मस्थानों एवं धार्मिक व्यक्तियों की अपनी निश्चित व निर्धारित मान्यताएं हैं जिसे पूरा न करने पर उसे खारिज करना चाहिए। यदि आतंकवादी दरगाह से युद्ध संचालित करने की कार्रवाई जारी रखेंगे तो वे दरगाह की पवित्रता के सम्मुख सवाल खड़ा कर रहे हैं। ऐसे सवालों को हल करने, ऐसी मंशा को मटियामेट करने के लिए किसी हद तक जाने से सरकार को कतराना नहीं चाहिए। आतंकवादियों को आपरेशन ब्लू स्टार की स्थितियां बनाने से रोकने के लिए धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों पर दबाव डालना चाहिए क्योंकि अगर धार्मिक स्थलों में पूजा, प्रसाद के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए जाना शुरू हो जाए तो सेना और सैनिक बलों का कर्तव्य हो जाता है कि वे ऐसे उद्देश्यों पर पानी फेरे। हथियार लेकर किसी धार्मिक स्थल पर जाने से ठीक है सेना का वहां जाकर ऐसे दुष्कृत्यपूर्ण कार्यो मंे लिप्त लोगों को समाप्त करना क्योंकि ये आतंकवादी न संत हैं, न पूजा-प्रसाद के लिए गये हैं। ये धर्म के मूल चरित्र के विरोधी हैं। इन्हें मन्दिरों, गुरुद्वारों, मस्जिदों में बैठा, पंति, पादरी, मुल्ला नहीं रोके गा क्योंकि वह तो अपनी अनैतिकता को ईश्वर की आड़ में छिपाने का कार्य कर रहा है और इसी तरह की गंदी मानसिकता के साथ आतंकवादी उग्रवादी मंदिर की दिवार और स्थान का प्रयोग कर रहे हैं फिर इनमंे चोर-चोर मौसेरे भाई का रिश्ता है।
ये सारे सवाल उस धर्म विशेष से जुड़े आस्थावान लोगों को उन लोगों से पूछना चाहिए जो ताकत व अनैतिकता के बल पर ईश्वर को शिखंडी के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर बार-बार उनके धर्म, उनके भगवान को शिखंडी बनाने वाले तो बच निकलेंगे और इससे आहत होगा धर्मं तो फिर हमारी आस्थाओं का प्रयोग शिखंडी के रूप में न हो इसलिए फिर जद्दो जहद और संघर्ष आवश्यक है।
इतना ही नहीं, धर्म के आधार पर निर्मित पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान की धार्मिक आस्थाएं कितनी नापाक हैं कि उसने श्रीनगर की पवित्र दरगाह को बचाने के लिए भारत सरकार को सहयोग देने की बात करने की जगह हजरतबल मस्जिद को घेरने के कार्रवाई की निन्दा की है। इसे उकसाने वाली कार्रवाई माना है। पाक के विदेश विभाग ने यह मांग की है कि भारत सरकार सेना को फौरन हटाये और हजरतबल परिसर को हुये नुकसान की फौरन मरम्मत कराई जाय। आखिर क्या कारण है कि पाकिस्तान सरकार को इस मुद्दे में बोलना पड़ा ? जबकि वहां की सरकार को पता है कि 15 अक्टूबर 1993 की शाम मस्जिद के उस कमरे जहां पवित्र बाल रखा जाता है, का ताला टूटा और वह बाल तब से गायब है। स्प है कि हजरत मुहम्मद साहब के बाल से ज्यादा आस्था पाक सरकार की उन उग्रवादियों में है जिनकी जान सांसत में फंसी है फिर तो पाक के इस्लामियत और हजरत साहब के प्रति आस्थाओं का खुलासा करने के लिए शेष नहीं बचता है।
11 जुलाई 1989 को हज के दौरान मक्का में पवित्र मस्जिद की ओर जाने वाली सड़क पर बम विस्फोट हुआ जिसमें 16 कुवैतियों का सर कलम कर दिया गया तथा 4 अन्य को सजा मिली फिर कौन सा मुंह लेकर इस्लामी सम्मेलन संगठन ओर इसके निकाय ‘वल्र्ड मुस्लिम लीग’ ने बहरीन में एक अपील जारी करके भारत सरकार से हजरतबल परिसर में सैनिक कार्रवाई न करने का आग्रह किया है। एक ऐसी स्थिति में जब धर्म के इन ठेके दारों को धर्म के नाम पर, हजरत साहब के स्मृति चिन्ह के नाम पर आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करने को कहना चाहिए तब ये लोग भारत सरकार को सुझाव देने में लगे हैं ? इतना ही नहीं ये इस्लाम के ठेके दार विदेशों में बैठकर आतंकवादियों की भाषा बोलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। तभी तो ‘वल्र्ड मुस्लिम लीग’ के महासचिव डा. हामिद अल गाबिद ने भारत सरकार से नगर की घेराबंदी हटाने और सुरक्षाबलों द्वारा कश्मीर में किये जा रहे ‘दमन’ को बंद करने की बेशर्मी पूर्ण मांग की है।
इससे पहले 27 दिसम्बर 1963 को भी इस पवित्र दरगाह से हजरत साहब के पवित्र चिन्ह गायब हो गये थे लेकिन जनता के जबर्दस्त आन्दोलन के परिणामस्वरूप एक सप्ताह के अन्दर ही ये स्मृति चिन्ह अचानक वापस आ गये और आज जब मुस्लिम जनता को आन्दोलन करके मस्जिद को अपवित्र करने और करवाने वाले लोगों के खिलाफ जेहाद छेड़ देना चाहिए। तब उसकी जगह मस्जिद को धराशायी करने की धमकी देने वालों और राके ट लांचर से विस्फोट करने प्रयास करने वालों का मौन स्वीकार लक्षण के तर्ज पर स्वीकारोक्ति देने पर तुली है ? हजरतबल की स्थितियां आपरेशन ब्लू स्टार जैसी ही है। आतंकवादी गलत बयानबाजी के माध्यम से जनता को उनकी आस्थाओं को गुमराह करना चाह रहे हैं जिससे उनकी मंशा पूरी करने के लिए कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आएं। इससे अस्थिरता का वातावरण बनेगा।
दुनिया का कोई भी धर्म, धार्मिक स्थल का आतंकवाद के लिए प्रयोग, आतंकवादियों की धमकी को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं होना चाहिए अगर है तो उस धर्म को खारिज करना अनुचित नहीं होगा। ऐसे धर्म विदा हो जाए तभी उचित है। ऐसे पुरोहित, मौवी न रहे तभी श्रेष्ठ, क्यांेकि मनुष्यता ही धार्मिकता के लिए काफी हैं। क्यांेकि धर्मो ने काल्पनिक विश्वास निर्मित करके मनुष्य को गति मंद कर दिया गया है। धर्म, धर्मस्थानों एवं धार्मिक व्यक्तियों की अपनी निश्चित व निर्धारित मान्यताएं हैं जिसे पूरा न करने पर उसे खारिज करना चाहिए। यदि आतंकवादी दरगाह से युद्ध संचालित करने की कार्रवाई जारी रखेंगे तो वे दरगाह की पवित्रता के सम्मुख सवाल खड़ा कर रहे हैं। ऐसे सवालों को हल करने, ऐसी मंशा को मटियामेट करने के लिए किसी हद तक जाने से सरकार को कतराना नहीं चाहिए। आतंकवादियों को आपरेशन ब्लू स्टार की स्थितियां बनाने से रोकने के लिए धार्मिक मान्यताओं वाले लोगों पर दबाव डालना चाहिए क्योंकि अगर धार्मिक स्थलों में पूजा, प्रसाद के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए जाना शुरू हो जाए तो सेना और सैनिक बलों का कर्तव्य हो जाता है कि वे ऐसे उद्देश्यों पर पानी फेरे। हथियार लेकर किसी धार्मिक स्थल पर जाने से ठीक है सेना का वहां जाकर ऐसे दुष्कृत्यपूर्ण कार्यो मंे लिप्त लोगों को समाप्त करना क्योंकि ये आतंकवादी न संत हैं, न पूजा-प्रसाद के लिए गये हैं। ये धर्म के मूल चरित्र के विरोधी हैं। इन्हें मन्दिरों, गुरुद्वारों, मस्जिदों में बैठा, पंति, पादरी, मुल्ला नहीं रोके गा क्योंकि वह तो अपनी अनैतिकता को ईश्वर की आड़ में छिपाने का कार्य कर रहा है और इसी तरह की गंदी मानसिकता के साथ आतंकवादी उग्रवादी मंदिर की दिवार और स्थान का प्रयोग कर रहे हैं फिर इनमंे चोर-चोर मौसेरे भाई का रिश्ता है।
ये सारे सवाल उस धर्म विशेष से जुड़े आस्थावान लोगों को उन लोगों से पूछना चाहिए जो ताकत व अनैतिकता के बल पर ईश्वर को शिखंडी के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर बार-बार उनके धर्म, उनके भगवान को शिखंडी बनाने वाले तो बच निकलेंगे और इससे आहत होगा धर्मं तो फिर हमारी आस्थाओं का प्रयोग शिखंडी के रूप में न हो इसलिए फिर जद्दो जहद और संघर्ष आवश्यक है।
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