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सांपों को गाना सुनाता है ये शख्स, 12 साल की उम्र से पैदा हुए ऐसे शौक
हरदोई : सांपों से दोस्ती करना तो दूर की बात है, अच्छे-अच्छों को डराने के लिए सांप का नाम भर काफी है लेकिन अगर हम आप से कहें कि, हरदोई के रहने वाले एक कवि और शिक्षक जहरीले सांपों के बिना एक पल नहीं रह सकता तो ? क्यों डर गए न आप! लेकिन ये बिलकुल सच है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के हरदोई में एक शिक्षक के शौक ने सांपों का दोस्त बना दिया और वह अब सांपों के संरक्षण के लिए मुहिम चला रहा है। हरदोई के कोरिया गांव के मजरा मढिय़ा निवासी आचार्य शैलेंद्र राठौर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए सांपों को पालता-पोसता हैं और जहरीले साँपो का संरक्षण कर उनको बचाने की मुहिम में लगा है।
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सांपों को सुनाते हैं गाना –
शैलेन्द्र को न सिर्फ सांपों के साथ खेलना अच्छा लगता है बल्कि वह उन्हें गाना भी सुनाता है और उन्हीं के साथ सोता भी है बता दें, ये उनकी मुहिम का ही परिणाम है कि हरदोई के कुछ गांवों में लोग सांप दिखने पर उसे मारते नहीं है और शैलेंद्र को फोन कर बुलाते है। वह सांप को वहां से पकडक़र स्वयं पालता है या फिर उसे सुरक्षित स्थान पर छोड़ देता है। परिवार में तीन भाइयों में सबसे बड़े शैलेंद्र बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ सांप पालने के शौक के चलते पूरे इलाके में फेमस हो गए हैं।
सांपों को संरक्षित करने की ऐसे मिली प्रेरणा -
उन्हें सांपों को संरक्षित करने का शौक बचपन में ही लग गया था, जब गांव में उनके मकान के पास एक सांपों का जोड़ा निकला तो उन्होंने उनमें से एक सांप को मार दिया जबकि दूसरा सांप वहीं उस मरे साँप के पास सर झुका के बैठ गया। दूसरे सांप का इस प्रकार का समर्पण भाव देखकर उन्होंने उसी दिन से अपना जीवन इन जहरीले साँपो के लिए समर्पित कर दिया।
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हमले के बावजूद जारी है सांपों की सेवा -
शैलेंद्र ने 12 साल की उम्र में पहला सांप पकड़ा और घरवालों को बिना बताए ही अपने पास रख लिया। उसी दिन से इनको सांपों के साथ रहने का शौक हो गया। जैसे ही सांप निकलने की सूचना मिलती है शैलेंद्र वहीं पहुंच जाते हैं और बड़ी आसानी से सांप को अपने कब्जे में ले लेते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि शैलेंद्र पर सांपों ने हमला नहीं किया। ब्लैक कोबरा से लेकर रसेल वाइपर तक उन्हें दो बार काट चुके हैं। जिसके निशान आज भी उसके हाथों पर मौजूद हैं लेकिन सांपों को संरक्षित करने का शौक ही था कि वह मेडिकल ट्रीटमेंट के बाद सही हो गए। हालंकि इसके बाद से वह जहरीले सांपों को पकडऩे में थोड़ी सावधानी जरूर बरतने लगे।