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छायावाद के प्रमुख स्तंभ कवि सुमित्रानंदन पंत को शत-शत नमन
Anand V. Ojha
लखनऊ: हिंदी काव्याकाश के प्रकृति-चितेरे, छायावाद के प्रमुख स्तम्भ, कवि सुमित्रानंदन पन्त ने 28 दिसंबर, 1977 को इलाहाबाद में अंतिम सांस ली थी और लोकान्तरित हुए थे। उनकी 39वीं पुण्य-तिथि पर उनसे और महाप्राण निरालाजी से पिताजी की युवावस्था के दिनों की निकटता थी, जब तीनों इलाहबाद में निवास करते थे। पिताजी ने ही बच्चनजी को पहली बार पंतजी से मिलवाया था, जिसका उल्लेख पन्तजी ने अपने संस्मरण के प्रारम्भ में ही किया है, जो 'बच्चन निकट से' नामक पुस्तक में संग्रहित है।
'आरती' के ज़माने की एक पुरानी चिट्ठी पूज्य पिताजी के कागज़ों में मुझे मिली है। आज पन्तजी का स्मरण करते हुए श्रद्धापूर्वक वह पत्र आपके सम्मुख रख रहा हूं। उन्हें मेरा नमन है! --आनन्द
सुमित्रानंदन पंतजी के मूल-पत्र की टंकित प्रति...
ईश्वरी पाठक, अल्मोड़ा
२१ जून, '४०
प्रिय प्रफुल्लजी,
क्षमा कीजिएगा जल्दी से कविता नहीं भेज सका। श्रीवात्स्यायन जी का पत्र भी इसी आशय का मिला था। कृपया उन्हें भी सूचित कर दीजियेगा कि मैं कविता भेज चुका हूँ।
'आरती' की मैं सफलता चाहता हूँ। आशा है, आपका और वात्स्यायनजी का प्रयत्न व्यर्थ नहीं जायेगा। शेष 'आरती' मिलने पर। मैं ७/८ जुलाई तक यहां हूँ। फिर कालाकाँकर।
आपका--
ह.--सुमित्रानंदन पंत.