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आयाम-हीन आकाश की अरुणाई!

Roshni Khan
Published on: 15 May 2020 4:49 PM IST
आयाम-हीन आकाश की अरुणाई!
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- गोपाल बघेल ‘मधु

आयाम-हीन आकाश की अरुणाई,

मिटा देती है मेरी तनहाई;

दिखा देती है कितनी ऊँचाई,

ले चलती है कितनी गहराई!

असीम से ससीम की मिलन पहेली,

उल्लास व पाशों की अविरल अठखेली;

आल्ह्वाद की अनवरत स्वर लहरी,

अन्तरात्म की सजग प्रहरी!

मुझे अनायास उड़ाये ले चलती है,

चिदाकाश के महासागर में;

द्योतना की विशाल गागर में,

अद्वैत के अथाह आयाम में!

मैं 'मैं' से दूर, महत-तत्व के व्योम में,

चल पड़ता हूँ, भूमा में अहं उपजाने;

चित्त की चादर तानने, व्योम को पसारने,

वायु के झोंकों में मचलने, अग्नि का रुख़ समझने!

जल में लय होने, भूमि की कठोरता देखने,

किसलय की कोमलता लखने, चिड़ियों के गीत सुनने;

'मधु' मानस का रस चखने, साधक की धुन में रमने;

जानने सगुण की प्रकृति, पहचानने निर्गुण की कृति!

Roshni Khan

Roshni Khan

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