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जलवायु संकट: व्यक्तिगत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक
Climate Crisis: बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम और प्राकृतिक आपदाएं एक समस्या राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं आइये इसके बारे में विस्तार से समझते हैं।
Climate Crisis (Image Credit-Social Media)
Climate Crisis: जलवायु संकट अब एक दूर की चिंता नहीं रहा। बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम और प्राकृतिक आपदाएं हर भारतीय की जेब और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं। व्यक्तिगत बजटिंग से लेकर देश के राष्ट्रीय बजट तक, हर स्तर पर जलवायु को केंद्र में रखना अब अनिवार्य है। आइए, समझते हैं कि कैसे:
1. क्यों जरूरी है जलवायु-केंद्रित बजटिंग?
- व्यक्तिगत स्तर पर:
- बिजली बिलों में विस्फोट (तीव्र गर्मी → एसी/कूलर का अधिक उपयोग)।
- खाद्य महंगाई (सूखा/बाढ़ → फसल नुकसान)।
- स्वास्थ्य खर्च बढ़ना (गर्मी लहरें, वायु प्रदूषण)।
- राष्ट्रीय स्तर पर:
- कृषि संकट → जीडीपी व खाद्य सुरक्षा पर खतरा।
- बुनियादी ढांचे को नुकसान (चक्रवात/बाढ़ → मरम्मत पर अरबों का खर्च)।
- पेरिस समझौते के लक्ष्यों (500 GW नवीकरणीय ऊर्जा, 2070 तक नेट जीरो) को पूरा करने की चुनौती।
2. व्यक्तिगत बजटिंग: आप क्या कर सकते हैं?
- ऊर्जा दक्षता:
- 5-स्टार उपकरण खरीदें → लंबी अवधि में बिजली बिल 30% तक कम।
- सोलर पैनल लगाने की बचत योजना बनाएँ (सरकारी सब्सिडी का लाभ लें)।
- टिकाऊ यातायात:
- सार्वजनिक परिवहन/साइकिल को प्राथमिकता → ईंधन बचत।
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) खरीदने के लिए EMI योजना बनाएँ।
- जल संरक्षण:
- वर्षा जल संचयन (RWH) सिस्टम → पानी के बिल में 40% बचत।
- आपातकालीन निधि:
- 6 महीने के खर्च के बराबर बचत → जलवायु आपदाओं के लिए तैयारी।
3. भारत का राष्ट्रीय बजट: क्या बदलाव चाहिए?
- हरित ऊर्जा को बढ़ावा:
- 'पीएम सूर्यघर योजना' के लिए समय पर फंडिंग।
- ग्रिड मॉडर्नाइजेशन व बैटरी स्टोरेज पर निवेश।
- ई-मोबिलिटी रेवोल्यूशन:
- FAME-III योजना शुरू करना + चार्जिंग स्टेशनों का विस्तार।
- सार्वजनिक परिवहन (बस/मेट्रो) के विद्युतीकरण पर खर्च बढ़ाएँ।
- जलवायु-लचीला कृषि:
- प्राकृतिक खेती को सब्सिडी → रासायनिक खादों पर निर्भरता घटाएँ।
- पीएम फसल बीमा में सुधार → जलवायु जोखिमों का बेहतर कवरेज।
- हरित वित्त व्यवस्था:
- संप्रभु हरित बॉन्ड जारी करना जारी रखें।
- प्रदूषणकारी उद्योगों पर "पर्यावरण कर" बढ़ाएँ।
4. चुनौतियाँ और समाधान
- व्यक्तिगत स्तर पर:
- हरित उत्पादों (सोलर पैनल, EV) की ऊँची कीमत → सरकारी सब्सिडी का उपयोग करें।
- राष्ट्रीय स्तर पर:
- वित्तीय संसाधनों की कमी → अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन फंडिंग (Loss & Damage Fund) आकर्षित करें।
- कार्यान्वयन अंतराल → बजट की "जलवायु टैगिंग" (हर खर्च का जलवायु प्रभाव आकलन)।
5. निष्कर्ष: जुड़ी हुई है हमारी किस्मत
जलवायु संकट से लड़ाई व्यक्तिगत बचत और राष्ट्रीय बजट दोनों की मिली-जुली जिम्मेदारी है। जब आप सोलर पैनल लगाते हैं, तो न सिर्फ अपना बिजली बिल कम करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में भी योगदान देते हैं। जब सरकार FAME-III योजना लाती है, तो आपका EV खरीदना आसान होता है।
याद रखें:
- व्यक्तिगत बजट में हरित निवेश = भविष्य की वित्तीय सुरक्षा।
- राष्ट्रीय बजट में जलवायु प्राथमिकता = देश की आर्थिक & पारिस्थितिक सुरक्षा।
शुरुआत आज ही करें: अपने बजट में ‘जलवायु जोखिम’ श्रेणी जोड़ें, सरकार से मांगें कि वह हरित ऊर्जा और अनुकूलन पर GDP का कम से कम 2% खर्च करे। क्योंकि एक सुरक्षित कल के लिए, बजटिंग सबसे शक्तिशाली हथियार है!
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