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हिम्मत और संकल्प ने दिलाई परीक्षा में कामयाबी
आज भी मैं उस घटना को याद करती हूँ तो सिहर जाती हूँ। यदि उस समय मैं अपना हौंसला खो देती तो शायद आज मैं इस मुकाम पर न होती और साथ ही डायट की प्राचार्या ललिता प्रदीप जी की आभारी हूँ जिन्होंने मेरा हौंसला बढ़ाया।
घटना जुलाई 2005 की है। मैंने सरकारी विद्यालय के सहायक अध्यापिका के लिये फाॅर्म भरा था। उसकी परीक्षा देने के लिए मैं शाहनजफ रोड अपने परीक्षा केन्द्र जा रही थी। मेरे साथ मेरे आठ माह की बच्ची, मेरे पति, मेरी बड़ी बहिन व बहनोई भी थे। मेरी बड़ी बहिन भी परीक्षा देने जा रही थी। परीक्षा केन्द्र के सामने सड़क के उस पार हमने अपनी गाड़ी पार्क की।
मैं ज्यों ही गाड़ी पार्क करके सड़क पार कर रही थी, मेरी आठ माह की बच्ची,जो उसय मेरे पति के गोद में थी,रोने लगी। सहसा मेरा ध्यान सड़क से हटकर बेटी की तरफ चला गया इतने में पलक झपकते ही एक कार मुझे टक्कर मारते हुए निकल गई और मैं सड़क पर वहीं गिर गई, पर मैं बिजली की जैसी तेजी दिखाते हुए तुरन्त उठकर अपने गाड़ी तरफ दौड़ी एंव सीट पर जाकर लेट गई।
वो खतरनाक पल
पलभर के लिये मानो मेरे शरीर में जान नहीं रह गई । मेरे चेहरे व मुंह से खून निकल रहा था । जिसे देखकर मेरे पति व बहन काफी घबरा गये। उनकी घबराहट व अपने बच्ची को देखकर मैंने अपने आप को सम्भाला । लेकिन मैं ज्यों ही सीट से उठने की कोशिश की मेरा दाहिना हाथ बिल्कुल ही काम नहीं किया और मैं मेरे पति व बहन दाहिने हाथ की कुहनी को देखकर समझ गये कि शायद हाथ फैक्चर हो गया । किस्मत से यह घटना ठीक ट्रामा सेंटर के पास घटी, तो मुझे किसी तरह ट्रामा सेंटर ले जाया गया।
ट्रामा सेंटर में एक जूनियर डाॅक्टर ने मेरा हाथ देखा मैंने उन्हें बताया कि मेरी परीक्षा है और मेरे हाथ में भयंकर दर्द है । देखते-देखते मेरा हाथ काफी सूज गया। हाथ देखते ही उन्होंने मेरे पति से कहा मैं एक इंजेक्शन लगा रहा हूं। एक दवाई दे रहा हूं दर्द से तत्काल आराम हो जाएगा। लेकिन दाहिना हाथ बिल्कुल न उठा पाने के कारण यह परीक्षा नहीं दे पाएंगी । क्योंकि इनके हाथ में मेजर फ्रैक्चर लग रहा है । जाकर एक्स-रे कराइये। मेरी बहन ने भी कहा कि चलो हाॅस्पिटल एक्स-रे कराने। सभी के लाख मना करने के बावजूद मैं परीक्षा देने की जिद पर अड़ी थी क्योंकि मेरे दिमाग में परीक्षा का जुनून सवार था।
जुनून में दी परीक्षा
डाॅक्टर ने इंजेक्शन लगाया, मैं और मेरी बहन परीक्षा केन्द्र गये, परीक्षा प्रारम्भ हुई। प्रश्नपत्र में सभी प्रश्न बहुविकल्पीय थे लिहाज़ा सिर्फ सही गलत का निशान ही लगाना था। बांये हाथ से लिखने की आदत न होने के कारण काफी मुश्किल था। उसी समय डायट की प्राचार्या ललिता प्रदीप जी भी जो परीक्षा केन्द्र आई और आकर मुझसे मिलीं, उन्होंने मेरा हाथ खुद ही मेरे दुपट्टे से बांधा व मेरे सर पर हाथ फेरकर मेरा हौसला बढ़ाया।
किसी तरह बड़ी मुश्किल से बांये हाथ से प्रश्नपत्र हल किया। परीक्षा सम्पन्न होने के बाद सीधे हमलोग अपने फैमली डाॅक्टर (आर्थोपेडिक सर्जन) डाॅ. पी.आर. मिश्रा जी के पास गये उन्होंने एक्स-रे वगैरह करवाया और तुरंत आपरेशन की सलाह दी। दो दिनों के बाद मेरा आपरेशन हुआ। हाथ में राड डालना पड़ा और तभी से मजाक-मजाक में ही डाॅक्टर पी.आर. मिश्रा जी मुझे आयरन लेडी कहते थे ।
कामयाबी का मुकाम
कुछ ही दिनों में परीक्षाफल आया मैं प्रथम श्रेणी से पास हुई। मेरी नौकरी बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर लगी। इस समय मेरी नियुक्ति इं. प्रधानाध्यापिका के रूप् में प्रा.वि. उजरियांव गोमतीनगर में है। लेकिन आज भी मैं उस घटना को याद करती हूँ तो सिहर जाती हूँ। यदि उस समय मैं अपना हौंसला खो देती तो शायद आज मैं इस मुकाम पर न होती और साथ ही डायट की प्राचार्या ललिता प्रदीप जी की आभारी हूँ जिन्होंने मेरा हौंसला बढ़ाया।
सरिता शर्मा
गोमती नगर
लखनऊ