प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जयंती, 10 मई का दिन भुलाना नहीं - दीपक

आज का दिन राष्ट्रीय एकता का संदेश देता है और बतलाता है कि तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह सदृश सेनानियों ने बहादुर शाह जफर की अगुवाई में अंग्रेजों से निर्णायक युद्ध लड़ी थी ।

Deepak Mishra
Published on: 10 May 2025 9:59 PM IST (Updated on: 10 May 2025 10:00 PM IST)
First War Indipendence News
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First War Indipendence News (Social Media)

First War of Independence: दस मई का महान दिन भुलाना नहीं, यह कथन भगत सिंह का है, मैं बस दोहरा रहा हूं। 10 मई का दिन भारतीय इतिहास का स्वर्णाक्षरों में रेखांकित करने वाला प्रेरणाप्रदाई दिवस है। आज ही के दिन 1857 में क्रांति की शुरुआत हुई थी जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहते हैं। आज का दिन राष्ट्रीय एकता का संदेश देता है और बतलाता है कि तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह सदृश सेनानियों ने बहादुर शाह जफर की अगुवाई में अंग्रेजों से निर्णायक युद्ध लड़ी थी।

हिंदुस्तान समाजवादी गणतांत्रिक सेना के शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अप्रैल 1928 में कीरती में लेख लिख कर दस मई को महान दिन बताया था और सबसे कभी इस शुभ दिन को न भूलने की अपील की थी। राममनोहर लोहिया 10 मई और 9 अगस्त को जन पर्व के रूप मनवाना चाहते थे , 9 अगस्त को बयालीस की क्रांति की शुरुआत हुई थी। आज ही के दिन शायर ए आजम कैफ़ी आजमी ने महाप्रयाण किया । उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि वे गुलाम भारत में पैदा हुए, आजाद हिंदुस्तान में जवान हुए और सोशलिस्ट हिंद में मरना चाहेंगे । वे रहीम और रसखान की परंपरा के महान मुसलमान और भारतीय आत्मा के शायर के थे। उनके योगदान और व्यक्तित्व कोटिशः कृतज्ञ प्रणाम।

कैफ़ी की इन पंक्तियों का उल्लेख समीचीन है..

कर चले हम फिदा जानोतन साथियों

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

राह कुर्बानियों की न वीरान न हो

तुम सजाते ही रहना नए काफिले

फतह का जश्न इस जश्न के बाद है

जिंदगी मौत से मिल रही है गले

बांध लो अपने सर से कफ़न साथियों

खींच दो अपने खू से जमीं पे लकीर

इस तरफ आने पाए न रावन कोई

तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे

छूने पाए न सीता का दामन कोई

राम भी तुम तुम ही लक्ष्मन साथियों

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे इतनी महान शख्सियत का सानिध्य मिला। उनकी प्रेरणा से भगत सिंह को पढ़ने का सौभाग्य मिला। मेरी पहली पुस्तक भगत लोहिया और समाजवाद की भावभूमि में कहीं न कहीं कैफ़ी वैसे ही हैं जैसे फूल में खुशबू होती है। काफी के घर में ॐ का चुल्ला लगा था जो आज भी वैसे ही है। सांप्रदायिकता और आतंकवाद से जूझ रहे भारत को आज एक और कैफ़ी की जरूरत है.....

Ramkrishna Vajpei

Ramkrishna Vajpei

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