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Ghoda Library: कुमाऊं पर्वतों पर घोड़ा लाइब्रेरी! मिसाल उम्दा, अनुकरणीय !!
Ghoda Library: संस्था के लाइब्रेरी कोर्डिनेटर शुभम बधानी ने एक ऐसी लाइब्रेरी की शुरुवात की जो पहाड़ों की चढ़ाई में निरंतर चले। उन्होंने इसका नाम रखा “घोड़ा लाइब्रेरी।” आपदा के बावजूद ठीक समय पर स्कूली पुस्तकें बच्चों को मुहैया कराई। वे खूब लाभान्वित हो रहे हैं।
Ghoda Library: दूर दराज के क्षेत्रों में पठन पाठन की दिक्कतें तो आम हैं ही। पर खराब मौसम में पहाड़ पर तो ज्यादा दुश्वारी होती है। अतः कुमाऊं पर्वतमाला के ऊबड़ खाबड़ इलाकों में घोड़ा लाइब्रेरी चला कर, युवा लाइब्रेरियन शुभम बधानी (मो. : 9756353142) और उनके साथी दीवान सिंह ने एक अनुकरणीय मिसाल पेश की है। इसका समुचित प्रचार भी “टाइम्स आफ इंडिया” की तरुण संवाददाता सोनाली मिश्र (मो. : 9126873748) ने किया। उसकी रपट आज (31 जुलाई 2023) लखनऊ व मुंबई के संस्करणों में छपी है। बड़ी दिलचस्प है। समूचे भारत हेतु एक उदाहरण है, खासकर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए। सोनाली संयोग से पत्रकार बनीं। वह भारतीय सेना में भर्ती हेतु प्रयासरत थीं। नैनीताल जनपद के कोटाबाग के दुर्गम गांव बाघनी, जलना, महलधुरा, आलेख, गौतिया, ढिनवाखरक, बांसी में भयंकर बरसात के बाद टूटी सड़कों और स्कूलों में छुट्टियों ने पढ़ाई को क्षति पहुंचाई। ऐसे में हिमोत्थान और संकल्प यूथ फाऊंडेशन संस्था की मदद से, बच्चों तक बाल साहित्यिक पुस्तकें पहुंचाई गई। संस्था के लाइब्रेरी कोर्डिनेटर शुभम बधानी ने एक ऐसी लाइब्रेरी की शुरुवात की जो पहाड़ों की चढ़ाई में निरंतर चले। उन्होंने इसका नाम रखा “घोड़ा लाइब्रेरी।” आपदा के बावजूद ठीक समय पर स्कूली पुस्तकें बच्चों को मुहैया कराई। वे खूब लाभान्वित हो रहे हैं।
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पहाड़ों पर जहां सड़के मौसम से अगम्य हो जाती हैं, स्कूली बच्चों की हालत कष्टदायक हो जाती है। वहां घोड़ा लाइब्रेरी का लाभ अतीव रहा। ऐसी विषम परिस्थिति में बच्चों के घर तक पुस्तकें पहुंचाने का लक्ष्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने रखा है। मूसलाधार वर्षा तथा गांवों में बादल फटने से जनजीवन तो प्रभावित होता ही है। छुट्टियों में विद्यालयों से छात्र दूर हो रहे हों, लेकिन पुस्तकों से नहीं हैं। नैनीताल जिले के सुदूरवर्ती कोटाबाग विकासखंड में भयंकर बरसात के बाद भी बाल साहित्य पहुंचाया जा रहा है। शुभम बधानी बताते हैं कि पर्वतीय गांव बाघनी, छड़ा एवं जलना के कुछ युवाओं एवं स्थानीय शिक्षा प्रेरकों की मदद से घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत की। शुरुआती चरण में ग्रामसभा जलना-निवासी कविता रावत एवं बाघनी क्षेत्र के सुभाष को इस मुहिम से जोड़ा गया। धीरे-धीरे गांवों के कुछ अन्य युवा एवं स्थानीय अभिभावक भी इस मुहिम से जुड़ते गए। इस मुहिम की सबसे खास बात यह है कि इसमें घोड़ों को समाज द्वारा दिया जा रहा है। अभिभावक ही हफ्ते में एक दिन के लिए अपना घोड़ा लाइब्रेरी को दे देते हैं।
यूं चलती फिरती लाइब्रेरी की अवधारणा 19वीं सदी में ही (1839 में) अमेरिका के टैक्सास और न्यूयॉर्क राज्यों में उपजी थी। मशहूर प्रकाशक हार्पर बंधु, अमेरिकी स्कूल लाइब्रेरी तथा स्मिथनोनियन संग्रहालय लकड़ी के बक्सों में किताबें रखकर मोटरकार द्वारा सुदूर शहरों में मुहय्या कराते रहें। ब्रिटेन में जॉर्ज मूर ने तो गांव में उत्कृष्ण साहित्य के प्रचार हेतु कई चलती फिरती लाइब्रेरी बनाई थी। यही विकास क्रम उतरोत्तर बढ़ता रहा। यह दृष्टांत 1935 से 1943 का है, जब Pack Horse Library Project खूब चला। बुक मोबाइल की योजना के तहत द्वितीय विश्व युद्ध के समय बमबारी से क्षतिग्रस्त इलाकों में भी पुस्तकों की आपूर्ति बनी रही। खच्चर और जीपों पर किताबें भेजी जाती रहीं। उस संकट के दौरान एक चिंतन खूब गहराया कि “बिना पुस्तकों के लोग” अर्थात “बिना खिड़की के घर” जैसे हैं। अतः किताब-यात्रा की योजना बनाई गई। मोबाइल लाइब्रेरी का अवदान खूब मजबूत हुआ। गत सदी (1957) का अमेरिकी वीडियो दिखाता है कि बघ्घी में किताबें भरकर भेजी जाती रहीं। “लाइब्रेरी इन एक्शन” योजना के तहत (1960) में अश्वेत बस्तियों में स्कूली किताबें भेजी जाती रहीं।
शिक्षार्थियों तक पुस्तकें पहुंचाने की मुहिम के नाना रूप दिखें। पूर्वोत्तर अफ्रीका में स्थित, पशुधन और काफी के लिए मशहूर, इथोपिया गणराज्य में तो गधों की पीठ पर मोबाइल लाइब्रेरी बनाई गई थी। इससे थोड़ा बेहतर था अफ्रीकी राष्ट्र कीन्या जहां 1996 में ऊंट पर ऐसे पुस्तकालय स्थापित किए गए थे। इस प्रकार अज्ञानता के विशाल सागर में पुस्तक संग्रहालय के मार्फत एक आलोकित द्वीप रचने का प्रयास सदियों से चलता रहा क्योंकि प्रगति हेतु सबसे सटीक और प्रभावी माध्यम किताबें ही होती हैं। मगर तस्वीर का एक दुखद पक्ष भी देखें। याद कीजिए नालंदा विश्वविद्यालय जो मानव चिंतन का गढ़ था। तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने आग लगवा दी थी।
कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तक थीं कि पूरे तीन महीने तक यहां आग धधकती रही थी। एलेक्जेंड्रिया के पुस्तकालय की तो दशा ज्यादा दयनीय थी। जब इस्लामी सेना ने काहिरा के पास इस सागरतटीय नगर पर कब्जा किया तो सेनापति ने खलीफा से पूछा गया कि : “इन असंख्य पुस्तकों का क्या किया जाए ?” इस्लामी खलीफा का आदेश बड़ा नपा तुला था : “यदि वे किताबें कुरान से असहमत हों तो पापी हैं। नष्ट कर दो। यदि कुरान से सहमत हैं, तो अनावश्यक हैं। जला दो।” नतीजन मानव अध्ययन और अर्जित ज्ञान सदियों पीछे ढकेल दिया गया। अतः इन सारे प्रसंगों के सिलसिले में कुमाऊं की दुर्गम पहाड़ियों पर मोबाइल लाइब्रेरी संचालित करने वालों युवाओं और रिपोर्टर सलोनी मिश्र के सब लोग आभारी रहेंगे। ज्ञान का दान सुगम कराया।