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2000 साल पुराने रिश्ते में आज चीन की दगाबाजी दोस्ती पर भारी

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे तो उनके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत-चीन के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र किया था।

Aradhya Tripathi
Published on: 23 Jun 2020 2:51 PM IST
2000 साल पुराने रिश्ते में आज चीन की दगाबाजी दोस्ती पर भारी
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पिछले कुछ दशकों में सीमा और क्षेत्र के कांटेदार बाड़ कई बार लहूलुहान होते रहे हैं और भारत-चीन के संबंध बिगड़ते चले गए हैं। लेकिन दुनिया की इन दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच दो शताब्दी से भी पुराना रिश्ता रहा है। आज से लगभग 2000 साल पहले भारत का बौद्ध धर्म चीन गया और आज यह वहां का प्रमुख धर्म बन गया है। भारत में बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए ह्वेन-सांग जैसे प्रसिद्ध चीनी यात्री आए और उनके लिखे संस्मरण भारतीय इतिहास के हर्षवर्धन के समय को जानने का अहम जरिया हैं। फाहियान और ह्वेन-सांग ने भारत के उन सभी विश्वविद्यालयों का विस्तार से वर्णन किया है जहां वे गए थे।

भारत-चीन के हैं ऐतिहासिक संबंध

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे तो उनके सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत-चीन के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र किया था। सिल्क रूट और स्पाइस रूट प्राचीन एशिया में व्यापार के साथ विचारों के आदान-प्रदान, संस्कृति, कला, धर्म और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देते थे, भारत इनमें से कई व्यापारिक रास्तों का केंद्र हुआ करता था और ये मार्ग समाज के साथ अपने सदियों पुराने ज्ञान को साझा करते थे। सिल्क मार्ग के जरिए भगवान बुद्ध ने शांति के संदेश का प्रसार किया था, जिसने चीनी सभ्यता पर एक अमिट छाप छोड़ी। बौद्ध धर्म की मिठास का निर्यात करने के साथ भारत ने ‘सुगर’ बनाने की तकनीक का आयात किया। और चीन से आयातित तकनीक के कारण ही भारत में शक्कर को आमफहम भाषा में ‘चीनी’ कहते हैं। प्राचीन काल में चीन में भारतीय संस्कृति प्रमुख आकर्षण का केंद्र थी।

औपनिवेशिक काल में भी दोनों देश एक-दूसरे का दर्द समझते थे। साम्राज्यवादी जापान का हमला हुआ था तो तत्कालीन भारतीय राजनीति के अगुआ महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने जापान के खिलाफ चीन का खुला समर्थन किया था। औपनिवेशिक भारत में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने गुलामी से भयमुक्त मन और एकला चलो रे जैसी कालजयी रचना की,जो आज चीन के प्रतिष्ठित पीकिंग विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है। पीकिंग विश्वविद्यालय परिसर में रवींद्रनाथ ठाकुर की भव्य आवक्ष प्रतिमा इस बात की गवाह है कि भारत और चीन का सांस्कृतिक रिश्ता कभी खत्म नहीं हो सकता। पीकिंग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अभी 25 के लगभग छात्र हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में छात्रों की संख्या कम हुई है।

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चीन में हिंदी, तमिल और बांग्ला भाषा के ज्ञान के प्रति छात्रों की गहरी रुचि है। इन सभी विद्यार्थियों को मीरा, सीता, राम, गंगा और ऐसे ही दूसरे हिंदुस्तानी नाम दिए गए हैं। ये सभी छात्र हिंदुस्तान आने के इच्छुक तो हैं ही, पर ये सभी चीन में भी हिंदी का विस्तार करना चाहते हैं। और क्या आप ‘डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी’ को भुला सकते हैं। महाराष्ट का यह युवा डॉक्टर युद्धग्रस्त चीन के लोगों के जख्मों को भरने के लिए वहां गया, कई लोगों को नया जीवन दिया और वहीं की मिट्टी में अपनी आखिरी सांसें लीं।

सुधरते रिश्तों में चीन ने दिया धोखा

कागज और शीशे का आविष्कार कर इतिहास रचने वाला चीन आज मानता है कि सूचना क्रांति के दौर में सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में वह भारत से पीछे छूट गया है। और इसका अहम कारण है, चीन के लोगों का अंग्रेजी में पिछड़ना और इसलिए अब वहां अंग्रेजी प्रशिक्षण पर खास ध्यान दिया जा रहा है। और यह बात तय है कि चीनी लोग जो भी सीखना शुरू करते हैं, उसमें सिद्धहस्त होकर ही मानते हैं। और इस क्षेत्र में चीन जल्द ही भारत को कड़ी टक्कर देने वाला है। तो प्रतिस्पर्द्धा और दोस्ती की यह ‘अमर कहानी’ तो चलती ही रहेगी। भारत और चीन का प्राचीन रिश्ता सिर्फ बौद्ध धर्म पर आधारित नहीं है और न ही सिर्फ बौद्ध भिक्षुओं तक केंद्रित है। भारत में स्वर्णिम गुप्तकाल और चीन में शांग वंश के समय में भी बौद्ध धर्म -ज्ञान और संस्कृति के आदान-प्रदान का अहम जरिया था।

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लेकिन आधुनिक शोधों से पता चलता है कि भारत और चीन का विभिन्न समय कालों और विभिन्न क्षेत्रों में ऐतिहासिक रिश्ता रहा है।भारत और चीन के बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि बंगाल के विद्वानों केशब चंद्र सेन और रोमेश चंद्र दत्त ने चीन में ब्रिटेन के अफीम के कारोबार की कड़ी आलोचना की थी। बहुत से भारतीयों को शायद यह बात नहीं मालूम होगी कि प्रथम विश्व युद्ध के समय सन यात सेन ने भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस की अंग्रजों की कैद से भागने में मदद की थी। 1947 में भारत की आजादी और 1949 में चीन के विमुक्तिकरण ने दो नए देशों को लोगों के बीच संबंधों की सदभावना को पुन:स्थापित करने और फिर से जीवंत करने का एक नया अवसर पैदा किया।

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1959 से पहले के दस सालों में हालांकि दोनों देशों का विकास आधार कमजोर था और संसाधन सीमित था, फिर भी दोनों के बीच आदान-प्रदान बहुत व्यस्त थे। दुर्भाग्य से, 1962 के सीमा युद्ध जैसे राजनीतिक घटनाओं ने एक स्वस्थ रिश्ते के स्वस्थ विकास को बाधित कर दिया। समग्र चीन-भारत संबंध का निरंतर स्थिर विकास प्रभावित होता चला गया। मोदी काल में लग रहा था सम्बन्ध सुधर रहे है ,मोदी स्वयं प्रत्यनशील भी थे लेकिन चीन की तो आदत में था धोखा देना, जो उसने दिया ,मोदी सरकार जो भ्रम पाले थी -शी जिनपिंग एक अच्छा दोस्त साबित होगा लेकिन उसने मोदी को वो दर्द दे दिया जिसका खामियाजा सारा देश भुगत रहा है।

Aradhya Tripathi

Aradhya Tripathi

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