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भाजपा: बिना ब्रेक की गाड़ी

हरयाणा और महाराष्ट्र के चुनावों के जो 'एक्जिट पोल' आए हैं, वे क्या बता रहे हैं? दोनों राज्यों में कांग्रेस का सूंपड़ा साफ है। विरोधी दल बुरी तरह से पटकनी खा रहे हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 23 Oct 2019 7:52 AM GMT
भाजपा: बिना ब्रेक की गाड़ी
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हरयाणा और महाराष्ट्र के चुनावों के जो 'एक्जिट पोल' आए हैं, वे क्या बता रहे हैं? दोनों राज्यों में कांग्रेस का सूंपड़ा साफ है। विरोधी दल बुरी तरह से पटकनी खा रहे हैं। हरयाणा की 90 सीटों में से भाजपा को 70 के आस-पास और महाराष्ट्र की 288 सीटों में से भाजपा-शिवसेना गठबंधन को 200 से 244 तक सीटें मिलने की संभावना बताई जा रही है। यदि ये भविष्यवाणियां कमोबेश सिद्ध हो गई तो मानना पड़ेगा कि भाजपा को दोनों प्रांतों में अपूर्व सफलता मिल रही है।

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ऐसा क्यों हैं ? इसके बावजूद भी क्यों हैं कि लाखों लोग बेरोजगार होते जा रहे हैं, व्यापार-धंधे चौपट होते जा रहे हैं, बैंक दीवालिया हो रहे हैं, विदेश व्यापार का घाटा बढ़ रहा है, सरकार चार्वाक नीति पर चल रही है याने कर्ज ले रही है और घी पी रही है (ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत) और नोटबंदी व जीएसटी ने अर्थ-व्यवस्था को लंगड़ा कर दिया है ? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत के विपक्ष को लकवा मार गया है।

जनता के दुख-दर्दों को जोरदार ढंग से गुंजाने की बजाय वह सरकार और भाजपा की निंदा ऐसे मुद्दों पर करता है, जो उसे टाटपट्टी पर बिठा देते हैं। ये मुद्दे हैं, भावकुता से भरे हुए। वह चाहे बालाकोट का हो, कश्मीर के पूर्ण विलय का हो, सावरकर का हो या ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ (फर्जीकल) का हो। कांग्रेस पार्टी का हाल तो यह है कि लगभग हर राज्य में उसके नेता उसे छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। देश की अन्य लगभग सभी पार्टियां प्रांतीय पार्टियां हैं। उनमें से एक भी नेता ऐसा नहीं है, जो सारे देश की जनता की आवाज बन सके।

हर विरोधी नेता डरा हुआ है कि उसका हाल कहीं चिंदम्बरम-जैसा न हो जाए। जनता के मन का हाल क्या है ? वह मजबूर है। उसके सामने कोई विकल्प नहीं है। उसका उत्साह ठंडा पड़ता जा रहा है। इसका प्रमाण है- दोनों राज्यों में हुए मतदान का गिरता हुआ प्रतिशत! महाराष्ट्र में वह 65 से 60 प्रतिशत और हरयाणा में 76 से 63 प्रतिशत हो गया। विरोधी दलों का हाल जो भी हो, इस माहौल में भाजपा की जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।

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भाजपा के नेताओं को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वे बिना ब्रेक की गाड़ी चला रहे हैं। उन्हें वह काफी सोच-समझकर चलानी होगी। सिर्फ भौंपू बजाते रहने से काम नहीं चलेगा। भौंपू की भड़कीली आवाज से जनता चमकेगी और आकर्षित भी होगी लेकिन बिना ब्रेक की गाड़ी ने जैसे नोटबंदी और जीएसटी को कुचल डाला, किसी दिन वह किसी खंभे से टकरा सकती है, किसी गड्ढे में उतर सकती है, किसी नदी में छलांग लगा सकती है। भगवान करे, ऐसा न हो।

Dr. Ved Pratap Vaidik

Dr. Ved Pratap Vaidik

डॉ. वेद प्रतापवैदिक अपने मौलिक चिंतन, प्रखर लेखन और विलक्षण वक्तृत्व के लिए विख्यात हैं।अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युगारंभ करनेवालों में डॉ.वैदिक का नाम अग्रणी है।

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