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Motivational Story: जरूरत है दरवाजे को खोलने की
Motivational Story: आप अपने अच्छे स्वभाव से कई लोगों के दिल जीत सकते हैं साथ ही आपकी एक मुस्कराहट कई काम आसानी से बना सकती है।
Time to Open Your Mind (Image Credit-Social Media)
Motivational Story: इस बार गुवाहाटी से बंगलुरु जाने वाली फ्लाइट में हमें आपातकालीन निकास द्वार के तुरंत पीछे वाली सीट मिली, जो कि पहली बार का अनुभव था। विमान परिचालक द्वारा जब अब निकास द्वार के पास वाली सीटों पर बैठे यात्रियों को उस द्वार के उपयोग और निषेध आदि के बारे में जानकारी दी गई तो पूरी फ्लाइट में ध्यान बार-बार उसके आपातकालीन हैंडल पर ही जाता रहा। उसका एक कारण और भी था, खराब मौसम। गुवाहाटी से बंगलुरु की यात्रा में खराब मौसम के कारण बार-बार यात्रियों को अपनी सीट पर वापस जाने और सीट बेल्ट बांधे रखने की घोषणा सतर्क करती रहती थी। टर्बुलेंस के कारण असामान्य स्थिति का अहसास होता रहा। बीच-बीच में चमकती बिजली, लाल आसमान, काले बादल और नीचे की तरफ आने से बारिश दिखाई देती थी। पर यह अच्छा था कि कुछ सेकंड की इस असहज स्थिति के बाद फिर से सब सामान्य हो जाता था और राहत की सांस आती। और सहयात्री फिर से सोने में, मोबाइल के फ्लाइट मोड में प्रयोग में या महिलाएं बातचीत करने में व्यस्त हो जाती।
यात्रा कोई भी क्यों न हो, विशेषकर हवाई यात्रा जब तक जमीन पर लैंडिंग नहीं हो जाती है , मन में एक भय मिश्रित अलग सा भाव रहता है। क्रू के सदस्य हेल्पिंग होते हैं पर साथ ही अगर बनावटी , फीकी कमर्शियल मुस्कान की जगह अगर दिल से मुस्कुराते हैं तो यात्रा और अच्छी लगती है। एयरपोर्ट पर भीड़ का अधिक दबाव उसे रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड जैसा आभास कराता है। हवाई यात्रा अपेक्षाकृत शांत और खुला-खुला होती है, जहां अमूमन यात्रियों की भीड़ सामान्य होती है या फिर किसी समय में यात्रियों और विमान की अत्यधिक आवाजाही उस शांति को छीन लेती है। एयरपोर्ट वयस्त होना चाहिए पर अपनी क्षमता से अधिक व्यस्तता यात्रा करने वालों पर अत्यधिक मानसिक दबाव भी बना देती है। सिक्योरिटी चेकिंग के लिए लंबी-लंबी कतार, प्रक्षालन कक्ष के प्रयोग के लिए भी कतार विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए असहज स्थिति पैदा कर देती है। फ्लाइट का समय होता जा रहा होता है और सबको जल्दी होती है। सबको अपना काम पहले चाहिए होता है, इसी जद्दोजहद में तकरार होना स्वाभाविक ही होता है। दरअसल बात चाहे एयरपोर्ट की हो या हमारे अपने स्वयं की, दवाब किसी मशीन, संस्थान या मानव शरीर को अत्यधिक थका देता है।
तकनीक का युग है। तकनीक हमारे लिए सुविधा है पर समाधान नहीं है और ऐसे युग में जब हमारी एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है, हम एक दूसरे को धक्का मार कर आगे बढ़कर अपने काम में ही विश्वास रखते हैं। हम दिखने में भले ही सभ्य दिखाई देते हैं, नापतोल कर बात करते हैं,नापतोलकर हंसते और बोलते हैं लेकिन जब जरा सी भी हमारे लिए असहज स्थिति आती है हम अपना धैर्य खो बैठते हैं और अपनी संतुलित भाषा का प्रयोग करना भूल कर जाते हैं। यहां तक की आज की पीढ़ी को अगर सही सलाह भी देते हैं तो वह सोचती है कि वह उनके काम लायक नहीं है बल्कि उन्होंने जो सोचा है , जो निश्चित किया है वह ठीक है। यह ठीक है कि कैलकुलेटर हमारे दिमाग से तेज गणन करता है पर यह भी ठीक है कि अगर हम अपनी भावनाओं को खो देते हैं तो मानव दिमाग भी मशीनी कैलकुलेटर में परिवर्तित हो जाएगा। हम एक-दूसरे के साथ तकरार में इतने व्यस्त हैं कि हम अपनी स्वाभाविक मुस्कुराहट ही भूल गए हैं जो कि हमें प्रकृति ने मुफ्त दी है। जब हम हवाई यात्रा कर रहे होते हैं तो परिचालक दल के सदस्यों के पास आपको मुफ्त देने के लिए सिर्फ पानी और उनकी मुस्कुराहट ही होती है, जो कि हमारी यात्रा को सुगम बनाती है। अगर हमें अपनी किसी भी यात्रा को सुगम बनाना है तो मुस्कुराहट से ही काम लेना होगा बजाय तकरार के।
जीवन के इस कठिन दौर में मुस्कुराना वाकई आसान काम नहीं है, लेकिन अप्रिय स्थिति से बचने के लिए हमें धैर्य रखना और मुस्कुराते रहना बहुत जरूरी है। अगर हमारी हवाई यात्रा के क्रू के सदस्य मुस्कुराएंगे नहीं तो हमें हवाई यात्रा बोझिल लगने लगेगी। यही बात हमारी अपनी जीवन यात्रा पर भी लागू होती है। अगर हम एक -दूसरे के साथ मुस्कुराते हुए धैर्य बनाकर चलते हैं , तो यह यात्रा आसान हो जाती है लेकिन अगर इस यात्रा में चालाकी, स्वार्थ और अप्रियता होती है तो वह स्थिति हमेशा असहज करने वाली होती है और वह हमारी यात्रा को न केवल बोझिल बल्कि दुष्कर भी बना देती है। अब जबकि हमारा सामाजिक दायरा सिकुड़ता जा रहा है, हम दूसरों के साथ सोशल मीडिया की दोस्ती में हैं और उससे जब हमारी भावनाएं संप्रेषित नहीं होती हैं, हमारी भावनाएं संकुचित होती जाती हैं, वे हम बाहर नहीं निकाल पाते हैं, तो वे अंदर ही अंदर घूम कर दम तोड़ देती हैं। इसलिए जरूरत होती है दरवाजे को खोलने की, मुस्कुराने की और उन भावनाओं को हवा में उड़ जाने देने की। क्योंकि जब आप मुस्कुराते रहेंगे तब आप अपनी भावनाओं को अपने अंदर रखेंगे और धैर्य रखेंगे। और जब आप धैर्य रखते हैं,तब आपकी किसी से तकरार भी नहीं होगी। अन्यथा लंबी कतारों में लगे लोगों की भांति हम एक दूसरे से उलझते रहेंगे आगे बढ़ने को और धक्का मारते रहेंगे। इसलिए सहयोग कीजिए और मुस्कुराते रहिए क्योंकि मुस्कुराहट मुफ्त है।
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