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पूरी शर्ट में महज एक बटन... जब 'इदरीश मियां' थे डिजाइनर, ये कहानी उस दौर की
Faishon Purane Jamane ka: इदरीश मियां से जुड़ी एक घटना जो हर किसी के जीवन से जुड़ी कुछ यादों को ताजा कर देगी।
Old Faishon: ये जनाब हैं मेरे गांव के प्रिय परिजन 81 साल के इदरीश मियां। मेरे जीवन के बाल्यकाल के अहम किरदार। मेरी गोलोकवासी अम्मा बताती थीं कि जब मैं कुल बारह दिन का हुआ था तो बरही के अवसर पर पहली बार इन्हीं के सिले कपड़े तन पर पाए थे। इसके बाद तो सोलह सत्रह साल तक इन्ही के सिले कपड़े पहनता रहा।
इदरीश मियां से जुड़ी एक घटना मेरे जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण और चिरस्थायी है, आप लोगों को बताना चाहता हूं। कक्षा चार पांच के दौरान मेरी बहुत बुरी आदत थी अपने दांतों से शर्ट के बटन कूंचने की। एक शर्ट तो कूंच कूंच कर बिना बटन वाले हो गया था। बाबू ने पिटाई शुरू की तो अम्मा ढाल की तरह आ गईं। फिर कान पकड़ ( करीब करीब नोचते हुए )बाबू इदरीश दर्जी के यहां ले गए।बोले कि इसे ऐसा शर्ट बनाओ जिसमे बटन ही न हो। आदेश का पालन हुआ और इदरीश मियां ने ऐसी शर्ट सिली जिसमें सिर्फ एक काज़ और बटन का प्रावधान था। मतलब पूरे शर्ट में महज एक बटन। कुछ समय तक ऐसी ही शर्ट बनीं।
जब छह हजार रुपये कीमत वाली उपहार स्वरूप मिली शर्ट
बचपन, युवावस्था, पत्रकारिता के करीब साढ़े चार दशक बाद एक दिन मैं मुम्बई के कोलाबा स्थित सीडी शर्ट्स के शोरूम गया और कुछ कपड़े पसंद करने लगा तो ब्रांड के चेयरमैन राजू दासवानी मुझे देखकर पास आ गए। मैं गुजरे ढाई दशक से ज्यादा वक्त से सीडी यानी चरागदीन की शर्ट्स पहनता हूँ और साल में पांच छह या फिर और बार वहां जाना होता है तो राजू भाई और उनके सुपुत्र योहान से दोस्ताना सा रिश्ता हो गया है।
राजू दासवानी जी ने कहाकि इस बार मैं आपको एक यूनीक डिज़ाइन की शर्ट प्रेजेंट करता हूँ तिवारी जी। लिनेन फैब्रिक में अद्भुत डिज़ाइन की पार्टी शर्ट है। दुनिया के करीब ढाई सौ देशों में अपनी शर्ट बेचने वाले चरागदीन के स्वामी के इस प्रेममय आफर को लेकर मेरी उत्सुकता अनन्त आकाश में उड़ान जैसी थी। साढ़े छह हजार रुपये कीमत वाली उपहार स्वरूप मिली शर्ट शर्ट देखी तो साढ़े चार दशक पीछे की स्मृति एकदम से मानस पटल पर उभर आई।
सिर्फ कपड़े का फर्क था और बाकी सबकुछ मियां इदरीश वाली उसी शर्ट का अक्स, जो बटन कुतरने की आदत की पेशबंदी का नतीजा था।पुरानी कहानी, सीडी शर्ट्स के स्वामी को बताई और कल जब परिवार के मांगलिक कार्यक्रम में अपने गांव पहुंचा तो वहां घंटों से मेरी राह देख रहे इदरीश मियां को भी। फिलहाल पत्नी की बीमारी से परेशान हैं इदरीश दर्जी लेकिन उनकी अपनी आंखों पर अभी भी चश्मे की जरूरत नहीं पड़ी है।