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अंतत: रार नहीं ठानूंगा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ शायद ही कभी निशंक रह पाए हों...

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 1:48 PM IST
अंतत: रार नहीं ठानूंगा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ शायद ही कभी निशंक रह पाए हों...
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U'KHAND: जांच में अगर निकले बाहरी, तो खदेड़े जाएंगे ये लोग

आलोक अवस्थी

राजनीति की लंबी पारी खेलने के बाद भी डॉक्टर रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ शायद ही कभी निशंक रह पाए हों.. एक कवि की भावना को समझना बड़ा मुश्किल होता है.. सक्रियता के पर्याय इंसान को जब हाशिए से बाहर ‘मार्ग देखू’ बना दिया जाए तो समझ लीजिए उस पर क्या बीतेगी? और वह भी जब यह सजा निशंक को मिल जाए.. जनरल साहिब तो चलो उम्र दराज ठहरे और भगत दा अति वरिष्ठ लेकिन बेचारे निशंक तो अभी ठीक से सठियाए भी नहीं हैं इनको क्यों मैदान से बाहर बैठा दिया गया। बड़ी उम्मीद थी कि मोदी जी की टीम में उत्तराखंड का गौरव बढ़ाएंगे कोशिश डॉक्टर साहब ने जी तोड़ हाय री किस्मत!!

कोई भी बाद लॉबी काम ना आई। कई बार लगा बस अब दांव लगा..अब लगा लेकिन हर बार सांप सीढ़ी के खेल में 98 वाला सांप फिर नीचे ले आया लेकिन डॉक्टर निशंक पुराने डॉक्टर हैं भाजपा के। शह और मात दोनों के जानकार हैं हार नहीं मानते कवि जो हैं। अटलजी लिख गए हैं हार नहीं मानूंगा.. रार नहीं ठानूंगा। तो भाई जी अटल जी के कहे पर एक कवि नहीं चलेगा तो कौन चलेगा तो निशंक जी ने ना हार मानी है ना ही मानेंगे। रही बात रार की तो अब बहुत हो गया वह भी ठान ही ली।

लोहिया जी बता गए हैं कि जिंदा कौमें इंतजार नहीं करतीं तो बस महापुरुष चाहे किसी भी दल के हो उनके कहे का पालन तो करना ही होगा। निशंक बाबू ने चाय पर चर्चा के बहाने सारी दुखी जनों को अपने घर बुला ही लिया भगत दा तो कब से व्याकुल थे कोई तो चाय पर चर्चा करो, जज साहब भी बहुत दिनों से देहरादून आने का बहाना ढूंढ रहे थे तो वह भी पधार गए। माननीय शिव प्रकाश जी बी कब तक कहां तक शिवरात्रि का इंतजार करते वह भी आ ही गए.. क्या पता.. कब हर हर महादेव का नारा बुलंद हो जाए..।

तो भाई हो गई चाय पर चर्चा बदले माहौल में बदले का मन में ठाने सिपाहियों ने अपने-अपने सर गिनवाकर तय किया कि पहले मंगल पांडे का रोल मूंछ वाले राजा साहब उर्फ हर खेल के पुराने चैंपियन साहब करेंगे और ठाकुर साहब ने अपनी म्यान से तलवार निकालकर शंखनाद कर दिया इस बार की संघर्ष यात्रा में सहायकों की भूमिका निभाने के लिए ‘हाथों’ की कमी नहीं है उनको खुलकर यलगार करने का अभ्यास भी है। हरीशदा के जमाने के योद्धा हैं इस बार ज्यादा मज़ा आएगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जीरो टालरेंस तक जाकर अगर त्रिवेंद्र सिंह रावत लड़ सकते हैं तो क्या सारा टालरेंस निगलकर बचने के लिए हाथ पर हाथ धरे रखें। अरे राजनीति करने निकले हैं कब तक गोल्वरकर के वर्कर बन कर ध्ज प्रणाम करते रहें और अब तो अंधकार से बाहर निकलने के लिए माननीय शिव जी का प्रकाश भी साथ है शिवजी का क्या है जो चाहे तप करके साध ले सम्मान के भूखे हैं जो करेगा उसी का साथ देंगे।

उनका क्या है वरदान कोई भी पा सकता है चाहे भस्मासुर हो यह रावण। त्रिवेन्द्र जी को भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से बचना चाहिए कई अपनों के दिलों को भी ठेस पहुंचती है और जब आप यह कहते हैं के अपनों को भी नहीं छोड़ेंगे और कत्लेआम करके रहेंगे तो अपने और परायो की मिली जुली फौज को चुनौती देते हैं अब भोगिये, ग्रह युद्ध का वातावरण तो आपने ही बनाया है आपको क्या लगता था आप भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का एलान करेंगे और नेतृत्व के अभाव में कोई अपनी रक्षा करने के लिए तलवार भी नहीं निकालेगा डॉक्टर साहब की चाय में बड़ी ताकत है न आपको मोदी मोदी करवा दिया तो नाम नहीं।

(संपादक उत्तराखंड संस्करण)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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